ब्लॉग: वनों के बिना संभव नहीं इंसानों का अस्तित्व
By रमेश ठाकुर | Published: March 21, 2024 11:37 AM2024-03-21T11:37:19+5:302024-03-21T11:39:35+5:30
एजेंडे में उसी दिन यानी 21 मार्च से ये खास दिवस मनाना तय हुआ। आज के दिन न सिर्फ भारत में, बल्कि समूचे संसार में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते हैं जिसके जरिये लोगों को वनों-पेड़ों को बचाने और उसकी आवश्यकताओं के संबंध में बताया जाता है।
मानव के अस्तित्व के लिए पेड़ों और जंगलों का महत्व समझाने और जन-जन में जागरूकता फैलाने के मकसद से 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है। साल 1971 में जब यूरोपीय कृषि संगठनों का 23वां सम्मेलन आयोजित हुआ तो उसमें बेतहाशा घटते वनों पर सदस्य देशों ने गहरी चिंता व्यक्त की।
बैठक के एजेंडे में उसी दिन यानी 21 मार्च से ये खास दिवस मनाना तय हुआ। आज के दिन न सिर्फ भारत में, बल्कि समूचे संसार में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते हैं जिसके जरिये लोगों को वनों-पेड़ों को बचाने और उसकी आवश्यकताओं के संबंध में बताया जाता है।
दुनिया में 8।6 करोड़ से अधिक हरित रोजगार जंगलों के माध्यम से ही सृजित होते हैं जैसे रेशम, कीट-पालन, खिलौना निर्माण, पत्तियों की प्लेटें, प्लायवुड, जड़ी-बूटियां, आयुर्वेदिक दवाइयां, कागज व लुगदी जंगलों से ही संभव है। इसलिए कह सकते हैं कि धरती पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं, जिसका वास्ता वनों-पेड़ों से किसी-न-किसी रूप में न पड़ता हो।
वनों की महत्ता को देखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2011-2020 को अंतरराष्ट्रीय वन दशक घोषित किया। यूएन ने वृक्षारोपण पर ज्यादा जोर दिया ताकि हरियाली को बढ़ाया जा सके। पिछले वर्ष-2023 में विश्व वानिकी दिवस की थीम ‘वन और सतत उत्पादन व खपत’ रखी गई थी। वहीं, इस वर्ष की थीम ‘वन और नवाचार’ निर्धारित हुई है जो पूरी तरह डिजिटलाइज है जिससे लोगों को सोशल मीडिया के जरिये वनों के प्रति जागरूक किया जाए।
हिंदुस्तान का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र 8.09 करोड़ हेक्टेयर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत है। ‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट’ रिपोर्ट-2021 के मुताबिक, वर्ष-2019 के पिछले आकलन के बाद से देश में वन और वृक्षों के आवरण क्षेत्र में 2261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज हुई।
ये सुखद खबर है, इसका श्रेय पूर्ववर्ती और मौजूदा सरकार को दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनकी सतर्कता काम आई। ये भी सच है कि वनों की सुरक्षा, प्रबंधन और पुनर्स्थापन में जितना रोल सरकार का प्रौद्योगिकी विभाग निभा सकता है, उससे कहीं अधिक सामाजिक भागीदारी अपनी भूमिका अदा कर सकती है।
वनों को उजाड़कर आवासीय क्षेत्रों में तब्दील करने वाले दृष्टिकोण से लोगों को तौबा करना होगा। वनों को काटने से जंगली जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां भी तेजी से लुप्त हो रही हैं। वर्ष 2020 की वन-पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट की मानें तो एक हजार से भी ज्यादा जीवों की प्रजातियां भारतीय वनों में विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं।