ब्लॉग: आज भी प्रेरणा देती हैं भारत छोड़ो आंदोलन की यादें

By अरविंद कुमार | Updated: August 10, 2024 11:13 IST2024-08-10T11:11:25+5:302024-08-10T11:13:07+5:30

भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर इसके पहले काफी मंत्रणा तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में हुई थी. आंदोलन की भूमिका 5 जुलाई 1942 को वर्धा में गांधीजी से विचार मंथन के बाद बनी. बाद में 7 जुलाई और 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक भी हुई.

Independence Day 2024 Arvind Kumar Singh Blog Memories of the Quit India Movement still inspire | ब्लॉग: आज भी प्रेरणा देती हैं भारत छोड़ो आंदोलन की यादें

आज भी प्रेरणा देती हैं भारत छोड़ो आंदोलन की यादें

Highlightsलाखों लोगों की शहादत के बाद भारत को 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली थीआजादी के आंदोलनों की कड़ी में भारत छोड़ो आंदोलन मील का पत्थर माना जाता हैभारत छोड़ो आंदोलन की अलग अहमियत है

Independence Day 2024: दशकों के संघर्ष और लाखों लोगों की शहादत के बाद भारत को 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली थी. कई धाराओं के नायकों ने आजादी के आंदोलन में आहुति दी. कई क्षेत्रीय आंदोलन हुए. पर आजादी के आंदोलनों की कड़ी में भारत छोड़ो आंदोलन मील का पत्थर माना जाता है. 9 अगस्त को भारतीय जनमानस एक खास अंदाज में याद करता है. हालांकि 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड भी हुआ जिसकी शताब्दी मनाई जा रही है. 9 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी पर आखिरी परमाणु बम गिराया गया था. पर भारत छोड़ो आंदोलन की अलग अहमियत है.

8 अगस्त 1942 को हुई मुंबई कांग्रेस में भारत छोड़ो आंदोलन की पुष्टि ग्वालिया टैंक मैदान में भारी जनसमूह के बीच हुई थी. यह अब अगस्त क्रांति मैदान नाम से जाना जाता है. अगस्त क्रांति के ऐतिहासिक विस्तृत प्रस्ताव में कहा गया था कि भारत की आजादी की घोषणा के साथ एक अंतरिम सरकार की स्थापना होगी. हमारी आजादी एशिया के अन्य गुलाम देशों की आजादी का प्रतीक भी होगी. बर्मा, मलय, इंडो-चीन, डच ईस्ट इंडीज, ईरान और इराक को भी आजादी मिलनी चाहिए. हालांकि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने आजाद भारत की अपनी भविष्य की योजना को सामने रखा है, पर आजादी के बाद वह सत्ता हथियाने का कोई इरादा नहीं रखती. जब आजादी मिलेगी, वह पूरे भारत के लिए होगी.

भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर इसके पहले काफी मंत्रणा तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में हुई थी. आंदोलन की भूमिका 5 जुलाई 1942 को वर्धा में गांधीजी से विचार मंथन के बाद बनी. बाद में 7 जुलाई और 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक भी हुई.

मुंबई में 8 अगस्त को गांधीजी ने आंदोलन अहिंसक रखने के साथ चेतावनी दी थी कि अगर लोग क्रोधित होंगे और अंग्रेजों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करेंगे तो वह मुझे इसे देखने के लिए जीवित नहीं पाएंगे. उन्होंने जनता से अपील की थी कि हर आदमी को इस बात की स्वतंत्रता है कि वह अहिंसा का पालन करते हुए अधिक से अधिक जो कर सकता है वह करे.

8 अगस्त की बैठक के तेवरों को देख अंग्रेज इतना घबरा गए थे कि 9 अगस्त, 1942 को भोर में 5 बजे ही गांधीजी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद समेत सभी शीर्ष नायकों को गिरफ्तार कर लिया गया. कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर दिया गया. अंग्रेजों को लगा था कि अब मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं है, पर 10 अगस्त 1942 को करीब 10 हजार छात्रों के दल ने एसपी काॅलेज में आंदोलन को आगे जारी रखने का संकल्प लिया तो उनको समझ में आ गया.

देश छोड़ने के पहले अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े तमाम तथ्यों को नष्ट कर सबूत मिटाने का काम किया. इतिहासकार डॉ. मन्मथनाथ दास के मुताबिक इस आंदोलन में काफी मौतें हुईं. सेंसरशिप व पाबंदियों के कारण इतिहासकारों के लिए तथ्यों का संकलन बहुत कठिन रहा. डॉ. दास ने प्रधानमंत्री चर्चिल को ब्रिटिश वायसराय लार्ड लिनलिथगो के लिखे एक अति गोपनीय तार का खुलासा भी किया था जिसमें वायसराय ने कहा था कि मैं भारत में एक ऐसे इंकलाब के सामने हूं जो ब्रिटिश शासकों ने 1857 के बाद कभी नहीं देखा.

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