विजय दर्डा का ब्लॉग: हमारी समस्याओं की बड़ी वजह बढ़ती आबादी

By विजय दर्डा | Published: September 23, 2019 06:30 AM2019-09-23T06:30:08+5:302019-09-23T06:30:08+5:30

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अंदाजा था कि जनसंख्या एक दिन समस्या बनेगी. आंकड़े उस वक्त भी गवाही दे रहे थे. सन् 1901 में भारत की आबादी करीब 23 करोड़ 83 लाख थी जो 1951 आते-आते 36 करोड़ को पार कर चुकी थी. इस खतरे को भांपते हुए उन्होंने 1952 में भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत की.

Increasing population is the major reason for our problems | विजय दर्डा का ब्लॉग: हमारी समस्याओं की बड़ी वजह बढ़ती आबादी

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsसंजय गांधी ने ‘हम दो हमारे दो’ के लक्ष्य को पाने के लिए इतनी सख्ती कर दी कि करीब-करीब विद्रोह जैसी स्थिति पैदा हो गई. फिर धर्म आड़े आ गया और एक वर्ग आरोप लगाने लगा कि दूसरा वर्ग बहुत सारे बच्चे पैदा कर रहा है।

यह कितना आश्चर्यजनक है कि जिस देश ने 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत कर दी थी, वह देश अब आबादी के मामले में दुनिया में पहले पायदान पर पहुंचने के बिल्कुल करीब खड़ा है. करीब 142 करोड़ की आबादी के साथ चीन दुनिया में पहले क्रम पर है और 135 करोड़ की अनुमानित आबादी के साथ हिंदुस्तान दूसरे क्रम पर है. पिछले एक दशक में हमारी आबादी की वृद्धि दर साढ़े सत्रह प्रतिशत से ज्यादा रही है. हालांकि उसके पहले के वर्षो की तुलना में यह दर कम कही जाएगी, लेकिन इस रफ्तार को और थामना जरूरी है.

जब हम आजाद हुए थे तब हमारी आबादी महज 33 करोड़ के आसपास थी. पिछले 72 वर्षो में इसमें 100 करोड़ से ज्यादा का इजाफा हो चुका है. अनुमान है कि अगले दशक में हम चीन को पीछे छोड़ देंगे क्योंकि चीन की जनसंख्या रफ्तार वर्षो तक थमी रही है. 1979 में चीन ने प्रति दंपति एक बच्चे की नीति को सख्ती से लागू किया था. पिछले वर्षो में यह नीति हटा ली गई है. इसके बाद भी वहां जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार अत्यंत कम है. इसके ठीक विपरीत हमारी आबादी में हर दिन करीब-करीब 50 हजार की संख्या और जुड़ जाती है. भारत के बारे में विशेषज्ञों की राय है कि 2050 तक हम 160 करोड़ की संख्या को पार कर जाएंगे.

जरा सोचिए कि इतनी बड़ी आबादी के लिए हम संसाधन कहां से जुटाएंगे. मौजूदा आंकड़ों की ही बात करें तो दुनिया की आबादी करीब 770 करोड़ से थोड़ी ज्यादा है. इनमें से 17.5 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है जबकि भू-भाग के हिसाब से हमारे पास दुनिया की केवल 2.4 प्रतिशत जमीन ही है. केवल 4 प्रतिशत जल संसाधन है. विशेषज्ञों का मानना है कि आबादी की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए हमारा खाद्यान्न उत्पादन हर साल 54 लाख टन बढ़ना चाहिए लेकिन हम औसतन केवल 40 लाख टन का उत्पादन ही बढ़ा पा रहे हैं. जरा सोचिए कि 2050 में हम अपने लोगों का पेट कैसे भर पाएंगे? लोग रहेंगे कहां? इसके अलावा एक आंकड़ा और भी चौंकाने वाला है कि दुनिया में जितने लोग बीमार होते हैं या बीमारियों का दबाव रहता है उसका करीब 20 फीसदी दबाव भारत पर है. जाहिर सी बात है कि आबादी बढ़ती चली जाएगी तो इसका असर हमारी विकास की रफ्तार पर पड़ेगा. इतने लोगों के लिए रोजगार कहां से पैदा होगा? भरण-पोषण कहां से होगा?

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम जनसंख्या की रफ्तार को रोकने पर ध्यान दें. मौजूदा स्थिति यह है कि 1952 में शुरू हुआ परिवार नियोजन कार्यक्रम दम तोड़ चुका है. इसका बहुत बड़ा कारण नासमझी भी है. इसे आंकड़ों की भाषा में समङिाए. 1990 में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 बच्चों पर 129 थी जो 2017 में घट कर 39 हो गई. यानी बच्चों की मृत्यु दर आशा के अनुरूप कम हुई है. लोगों तक यह जानकारी ठीक से नहीं पहुंची इसलिए बच्चों की मौत को लेकर अशिक्षित और गरीब तबके में शंका बनी रही और लोगों ने बच्चों की संख्या कम करने पर विचार ही नहीं किया. इसके अलावा लिंग आधारित भेदभाव हमारे दिमाग में इस कदर बैठा है कि हर किसी की चाहत रहती है कि एक बेटा हो जाए! 2019-20 के आर्थिक सव्रेक्षण में भी इस बात का जिक्र है कि लड़के की चाहत में 2.1 करोड़ ज्यादा बच्चे पैदा हुए.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अंदाजा था कि जनसंख्या एक दिन समस्या बनेगी. आंकड़े उस वक्त भी गवाही दे रहे थे. सन् 1901 में भारत की आबादी करीब 23 करोड़ 83 लाख थी जो 1951 आते-आते 36 करोड़ को पार कर चुकी थी. इस खतरे को भांपते हुए उन्होंने 1952 में भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत की. इसके पहले किसी भी देश ने इस तरह के किसी कार्यक्रम की शुरुआत नहीं की थी. भारत जैसे देश में यह कठिन काम था लेकिन पंडित नेहरू ने इस चुनौती को स्वीकार किया. नेहरू के बाद के वर्षो में यह विभाग काम तो करता रहा लेकिन जिस वैज्ञानिक तरीके और जनमानस को बदलने की जरूरत थी, वह लक्ष्य पाने की रफ्तार पर शायद ध्यान नहीं दिया गया. 

संजय गांधी ने ‘हम दो हमारे दो’ के लक्ष्य को पाने के लिए इतनी सख्ती कर दी कि करीब-करीब विद्रोह जैसी स्थिति पैदा हो गई. फिर धर्म आड़े आ गया और एक वर्ग आरोप लगाने लगा कि दूसरा वर्ग बहुत सारे बच्चे पैदा कर रहा है, उसकी संख्या देश में ज्यादा हो जाएगी, हम कम रह जाएंगे! इस नजरिये ने भी परिवार नियोजन अभियान को धक्का पहुंचाया. फिर नेताओं ने इसके बारे में बात करना ही बंद कर दिया!

अब प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने छोटे परिवार की वकालत की है और जनसंख्या नियंत्नण पर अंकुश लगाने की बात कही है. सरकार जनसंख्या विनियमन विधेयक 2019 लेकर आई है, जिसके अंतर्गत दो बच्चों को आदर्श मानते हुए जनसंख्या नियंत्नण कानून बनाया जाएगा. उम्मीद करें कि यह देश जल्दी ही जनसंख्या वृद्धि पर काबू  पा लेगा! इसके साथ ही हमारी जो आबादी है उसके पालन-पोषण अर्थात रोटी कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा की अच्छी व्यवस्था भी सरकार करे. अगर लोगों के पास काम नहीं होगा तो ध्यान रखिए कि अपराध भी बढ़ेंगे. इन समस्याओं से दूर रहना है तो आबादी की वृद्धि पर काबू पाना ही होगा.

Web Title: Increasing population is the major reason for our problems

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