उथली नदियों में कैसे समाएं सावन-भादों!, कई दशकों के रिकॉर्ड टूटा

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: October 22, 2025 05:17 IST2025-10-22T05:17:07+5:302025-10-22T05:17:07+5:30

तपती धरती के लिए बारिश अकेले पानी की बूंदों से महज ठंडक ही नहीं ले कर आती  हैं, यह समृद्धि, संपन्नता की दस्तक भी होती है.

How months Sawan and Bhadon contained shallow rivers Records of several decades were broken blog Pankaj Chaturvedi | उथली नदियों में कैसे समाएं सावन-भादों!, कई दशकों के रिकॉर्ड टूटा

सांकेतिक फोटो

Highlightsउथली हो गई नदी प्रकृति की अनुपम देन वर्षा को अपने में समेट ही नहीं पाई.नतीजतन बाढ़ और तबाही के मंजर दिखते हैं.बरसात से बिहार में नदियों में पानी की आवक प्रभावित होती है.

इस साल आषाढ़ से बादल बरसने शुरू हुए तो आश्विन माह में भी चैन नहीं लिया. बिहार के वे जिले जो बाढ़ के लिए कुख्यात हैं और बीते कुछ हफ्तों से उफनती नदियों से बेहाल थे, आज  सूखी  नदियों को देख कर आने वाले आठ महीने के भयावह प्यासे दिनों की कल्पना से सिहर जा रहे हैं. कुछ तो जलवायु परिवर्तन की मार है और उससे अधिक मानव-जन्य कारक, नदियों में जहां पानी होना चाहिए, वहां गाद भर गई और फिर समाज के लिए नदी पानी सहेजने के स्थान से अधिक बालू निकालने की खान हो गई. इसके कारण उथली हो गई नदी प्रकृति की अनुपम देन वर्षा को अपने में समेट ही नहीं पाई.

तपती धरती के लिए बारिश अकेले पानी की बूंदों से महज ठंडक ही नहीं ले कर आती  हैं, यह समृद्धि, संपन्नता की दस्तक भी होती है. लेकिन यह भी हमारे लिए चेतावनी है कि यदि बरसात वास्तव में औसत से छह फीसदी ज्यादा हो जाती है तो हमारी नदियों में इतनी जगह नहीं है कि वह उफान को सहेज पाए, नतीजतन बाढ़ और तबाही के मंजर दिखते हैं.

बिहार में यह पिछले साल भी हुआ था लेकिन इस बार इसकी गति बहुत तेज है, यहां नदियों में पानी ठहर नहीं रहा, उनका जलस्तर तेजी से नीचे चला जा रहा है. नदियां लबालब तो होती हैं लेकिन दो से तीन दिन में पानी गायब हो जाता है. यह सभी जानते हैं कि नेपाल में होने वाली बरसात से बिहार में नदियों में पानी की आवक प्रभावित होती है.

कुछ दिनों पहले ही गंगा, कोसी, गंडक आदि आधा दर्जन नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से सारी नदियों का पानी दो-तीन दिनों में ही अचानक नीचे चला जाता है. फल्गु नदी में जल आगम के इस साल कई दशकों के रिकॉर्ड टूट गए, बड़ी तबाही हुई, लेकिन तीन दिनों में ही नदी से पानी गायब हो गया.

यह बिहार और झारखंड के लिए जीवन-मरण का सवाल है कि जो पानी साल भर यहां के जीवन का आधार है वह शरद ऋतु में ही लुप्त हो गया. असल में हो यह रहा है कि बिहार की उफनती नदियों का पानी गंगा के रास्ते बंगाल की खाड़ी में जाकर बेकार हो रहा है. यही हाल उत्तर व दक्षिण बिहार की सभी नदियों का है जिनका मिलन गंगा नदी में होता है.

यह राज्य के जल संसाधन विभाग का आंकड़ा है कि हर दिन पांच से दस लाख क्यूसेक पानी गंगा होते हुए बंगाल की खाड़ी में जा रहा है. इसके चलते  एकबारगी तो गंगा का जल स्तर बढ़ता है लेकिन कुछ ही समय में यह नीचे आ जाता है. अकेले बिहार ही नहीं, देश के बहुत से हिस्सों में हर साल दर्जनों नदियों को गाद लील जाती है.

गाद के चलते पहले नदी की धारा मंथर होती है, फिर सूखे बहाव क्षेत्र को कचरा घर बना दिया जाता है और फिर कोई खेती करता है तो कोई बस्ती बसा लेता है. वर्ष 2016 में केंद्र सरकार द्वारा गठित चितले कमेटी ने कहा था कि नदी में बढ़ती गाद का एकमात्र निराकरण यही है कि नदी के पानी को फैलने का पर्याप्त स्थान मिले. गाद को बहने का रास्ता मिलना चाहिए. तटबंध और नदी के बहाव क्षेत्रा में अतिक्रमण न हो और अत्यधिक गाद वाली नदियों के संगम क्षेत्र से नियमित गाद निकालने का काम हो. जाहिर है ये सिफारिशें ठंडे बस्ते में बंद हो गईं.

Web Title: How months Sawan and Bhadon contained shallow rivers Records of several decades were broken blog Pankaj Chaturvedi

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे