Hit And Run Law: बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर चिंता, सख्त दंड नहीं है समाधान, जानें पूरा मामला
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 5, 2024 03:14 PM2024-01-05T15:14:50+5:302024-01-05T15:18:36+5:30
Hit And Run Law: हाल की ट्रक चालकों की हड़ताल ने मुझे उसकी याद दिला दी. केवल दो दिनों की हड़ताल ने देश भर में अधिकांश वाणिज्यिक परिचालन को ठप कर दिया.
Hit And Run Law: दो साल पहले एक प्रभावशाली परिवहन मंत्री से बात करते हुए मैंने बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर चिंता जताई थी और उनसे कुछ ठोस काम करने का आग्रह किया था. उनका ठेठ राजनीतिक उत्तर था: ‘दुर्घटनाएं होती रहेंगी, वास्तव में इसके बारे में कुछ खास नहीं कर सकते.’
मैं उस व्यक्ति से यह सुनकर हैरान रह गया, जिसकी मुख्य जिम्मेदारी लोगों के हित में परिवहन के बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र को सुव्यवस्थित करना था. हाल की ट्रक चालकों की हड़ताल ने मुझे उसकी याद दिला दी. केवल दो दिनों की हड़ताल ने देश भर में अधिकांश वाणिज्यिक परिचालन को ठप कर दिया.
जिससे नए साल के पहले दिन आम आदमी और छोटे व्यापारियों पर असर पड़ा. सामाजिक स्तर पर निचले स्तर पर बैठे और बड़े पैमाने पर अशिक्षित ट्रक ड्राइवरों और मालिकों के संयुक्त मोर्चे की त्वरित प्रतिक्रिया ने अर्थव्यवस्था के पहिये जाम कर दिए. वे शक्तिशाली सरकार को, जो अन्यथा उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थी, चर्चा की मेज पर ले आए.
मुद्दा सिर्फ भारतीय न्याय संहिता, नए कानून और उसके कड़े प्रावधानों के बारे में नहीं है, बल्कि सड़क पर होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या के बारे में है, जिनमें से कुछ को ‘हिट-एंड-रन मामलों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है. पिछले साल इसी कॉलम में मैंने बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के बारे में लिखा था और बताया था कि कैसे भारत हर साल बेशकीमती जानें गंवा रहा है.
नितिन गडकरी, जिनके पास सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय है, सड़क पर होने वाली मौतों के बारे में हमेशा ही मुखर रहे हैं; उन्होंने इस पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए थे. कई बार ऐसा कर पाने में अपनी घोर विफलता को उन्होंने स्वीकार भी किया.
इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा करने, आरटीओ को दोषी ठहराने और बदले में निहित स्वार्थों से आलोचना झेलने आदि के लिए हमें उन्हें सलाम करना चाहिए. वे शायद मोदी सरकार के एकमात्र ऐसे मंत्री हैं जो खुले, पारदर्शी हैं और अपनी विफलताओं को भी स्वीकार करते हैं. भाजपा सरकार के किसी भी मंत्री ने कभी भी अपनी विफलताओं को स्वीकार नहीं किया और माफी नहीं मांगी.
गडकरी एक दुर्लभ प्रजाति के राजनेता हैं. खैर, मुझे लगता है कि लापरवाह ड्राइविंग, खराब सड़कें, ट्रक ड्राइवरों और अन्य वाहन चालकों की भूमिका के परिणामस्वरूप मानव मृत्यु के प्रमुख मुद्दे अभी भी बरकरार हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भले ही तनाव को शांत करने के लिए ‘त्वरित’ हस्तक्षेप किया.
जिसके गंभीर होने का खतरा था, लेकिन यदि सरकार ने संबद्ध मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया तो ‘हिट एंड रन मामले’ अभी भी जारी रह सकते हैं जो अक्सर हमारी सड़कों को कब्रों में बदल देते हैं. पुनरावृत्ति का खतरा उठाकर भी मुझे कहना होगा कि सड़क दुर्घटनाओं से भारत में प्रति वर्ष 1.50 लाख से अधिक मौतें होती हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है.
सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2022 में यह आंकड़ा 1.68 लाख मौतों का था, यानी हर दिन हमने सड़क दुर्घटनाओं में 462 लोगों को खोया. क्या यह चौंकाने वाला नहीं है?
क्या ट्रक और बस ड्राइवर ही हमेशा दोषी होते हैं? या फिर इन दुर्घटनाओं के और भी कारण हैं जिन्हें कानून निर्माता नजरअंदाज कर रहे हैं?
आकार में बड़े और भरे हुए वाहनों द्वारा लापरवाही से गाड़ी चलाना इसका एक कारण है. किंतु सिर्फ वही कारण नहीं है. नए कानून की संबंधित धारा 106(2) टक्कर मारकर भागने के आरोपी ड्राइवर को भारी सजा का प्रावधान करती है. दुर्घटना में शामिल ड्राइवर, दुर्घटना का कारण चाहे जो भी हो, अपनी जान को खतरा होने के कारण अक्सर मौके से भाग जाते हैं.
किसी अन्य स्थान से पुलिस को सूचना देने पर उनके लिए राहत का प्रावधान है, फिर भी वाहन चालक भयभीत रहते हैं. सरकार इस बात को समझ नहीं रही है कि कोई भी चालक अपने लिए मुसीबत को न्यौता देने के लिए सड़कों पर गाड़ी चलाते समय जानबूझकर किसी को नहीं मारता. 10 साल की जेल की सजा के बजाय सरकार उनका लाइसेंस जब्त कर सकती है या वाहन का परमिट रद्द कर सकती है.
दुर्घटनाएं केवल ट्रक/बस चालक की लापरवाही से नहीं होतीं. स्कूटर चालक, बाइक सवार, बैलगाड़ी, गाय/भैंस या पैदल यात्री भी मौत का कारण बन सकता है. भारत में बाइक चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग करना कानून का वैसा ही घोर उल्लंघन है, जैसे दोपहिया वाहन पर दो या तीन लोगों को पीछे बैठाना और हेल्मेट पहनने की जहमत न उठाना.
कानून लागू करने वाली एजेंसियां और पुलिस आसानी से इन आम बन चुके दैनिक उल्लंघनों की ओर से नजरें फेर लेती हैं. हिट एंड रन मामलों की तो बात ही छोड़ दें. कई राजमार्गों पर ड्राइवरों को मार्गदर्शन देने के लिए उचित प्रकाश व्यवस्था और यातायात संकेतों का अभाव है. किसे दोष दिया जाए?
शहरों में यातायात सिग्नल प्रबंधन मुख्यतः नगर निकायों के पास रहता है जबकि यातायात संभालने की जिम्मेदारी पुलिस के पास होती है. समन्वय की कमी के कारण, जो कि आम बात है, दुर्घटनाएं होती हैं. सड़क इंजीनियरिंग और गुणवत्ता के बारे में तो जितना कम कहा जाए उतना बेहतर है.
नया कानून लाने के लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन वास्तविक जरूरत पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को संबोधित करने की है ताकि दुर्घटनाएं न्यूनतम हो सकें. ड्राइवरों को शिक्षित करना, अनिवार्य आराम, चिकित्सा जांच, वाहनों की फिटनेस, सड़क पर निगरानी, मवेशियों की आवाजाही पर प्रतिबंध आदि से एक साथ निपटना होगा. सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलेगा.