Blog: क्या भारत में विफल रही है नौकरशाही?

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 30, 2018 08:47 AM2018-06-30T08:47:25+5:302018-06-30T08:47:25+5:30

निजी क्षेत्र के कुशल लोगों के लिए, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान करना चाहते हैं, नौकरशाही के दरवाजे खोलने के भारत सरकार के हालिया निर्णय ने कुछ लोगों के लिए सुनहरा अवसर प्रदान किया है।

Has India failed in bureaucracy? | Blog: क्या भारत में विफल रही है नौकरशाही?

Blog: क्या भारत में विफल रही है नौकरशाही?

डॉ. एस.एस. मंठा: निजी क्षेत्र के कुशल लोगों के लिए, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान करना चाहते हैं, नौकरशाही के दरवाजे खोलने के भारत सरकार के हालिया निर्णय ने कुछ लोगों के लिए सुनहरा अवसर प्रदान किया है। वरिष्ठ स्तर के दस पदों, जो नीति निर्माण और सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए, ऐसा लगता है कि सरकार ने एक आभासी भानुमती का पिटारा सा खोल दिया है। एक ऐसा क्षेत्र, जो अब तक केवल नौकरशाहों के लिए ही खुला था, जिसमें यूपीएससी द्वारा ली जाने वाली परीक्षा पास करने वाले लोग ही जा सकते थे, उसे अब बाहरी क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए भी खोला जा रहा है। सिविल सेवा को सरकार से स्वतंत्र होना चाहिए जिसमें पेशेवरों की नियुक्ति मेरिट के आधार पर होती है, न कि सरकार उन्हें नियुक्त या निर्वाचित करती है, जिनका संस्थागत कार्यकाल आमतौर पर  राजनीतिक नेतृत्व के संक्रमण से बचता है।  कॉलिन पॉवेल ने एक बार कहा था : ‘‘विशेषज्ञों के झांसे में मत आओ. उनके पास प्राय: निर्णय से अधिक डाटा होता है।’’

यह प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए एक अभिनव प्रशासनिक नवाचार है या प्रशासन का ट्रैक बदलने के लिए विचारधारात्मक रूप से प्रतिबद्ध लोगों को लाने का विघटनकारी राजनीतिक नवाचार- यह समय ही तय करेगा, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है, फिर एक बार कॉलिन पॉवेल के ही शब्दों में, ‘‘संगठन वास्तव में किसी भी चीज की पूर्ति नहीं करते हैं, न ही योजनाएं बनाने भर से कुछ पूरा होता है। प्रबंधन के सिद्धांतों से कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई भी प्रयास उसमें शामिल लोगों की वजह से सफल या विफल होता है. केवल सर्वश्रेष्ठ लोगों को आकर्षित करके ही आप महान कार्यो को पूरा करेंगे।’’  

नेताओं के भीतर अगर पर्याप्त इच्छाशक्ति है तो वे शासन करने के लिए नए विचार और तरीके अपनाते हैं, नौकरशाही को सरकार की नीतियों को लागू करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, न कि शासन की राजनीति में दखल देने के लिए। इन अर्थो में, उनसे अपेक्षा की जाती है कि उन्हें जो काम सौंपा जाएगा उसे निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ क्रियान्वित करेंगे। उनका काम बहुत जिम्मेदारी भरा होता है क्योंकि वे लोगों की ओर से राज्य की संपत्ति के संरक्षक होते हैं।

शासन सामूहिक समस्या में शामिल लोगों के बीच बातचीत और निर्णय लेने की प्रक्रिया है जो सामाजिक मानदंडों और संस्थानों के निर्माण, सृदृढ़ीकरण या पुनरुत्पादन की ओर ले जाता है। आम संदर्भ में, इसे औपचारिक संस्थानों के बीच मौजूद राजनीतिक प्रक्रियाओं के रूप में वर्णित किया जा सकता है। शासन की भावना प्रशिक्षण की वह भावना भी है, जिससे महत्वाकांक्षी सिविल सेवक देश में विभिन्न स्थानों पर गुजरते हैं। शासन में अनुभव की कमी और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विशाल जरूरतों को देखते हुए आजादी के बाद सिविल सेवा प्रणाली को स्वतंत्र भारत के लिए सबसे अच्छी ब्रिटिश विरासत में से एक माना जाता था। लेकिन 1990 के दशक में उदारीकरण के बाद कुछ वर्गो द्वारा नौकरशाही को निष्क्रिय माना गया था। आगे,  नौकरशाही की यह कहकर आलोचना की गई कि यह अक्षम है, पेचीदा है या वैयक्तिक तौर पर बहुत ही कठोर है।

यह विरासत हमें ब्रिटिश काल में ले जाती है. यूनाइटेड किंगडम में सिविल सेवा में सिर्फ क्राउन अथवा केंद्र सरकार के कर्मचारी ही शामिल होते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र जैसे शिक्षा और राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के कर्मचारियों को सिविल सेवक नहीं माना जाता है। पुलिस अधिकारी और कर्मचारी भी सिविल सेवक नहीं हैं. अब बदलते समय के साथ, शासन के नए मॉडल आवश्यक हैं जिन पर बहस होनी चाहिए।  हर पेशे में, प्रणाली के बाहर बेहतर व्यक्ति हो सकते हैं। यदि उन्हें प्रणाली के भीतर लाया जाता है तो जाहिर है कि सुधार करने के लिए ही तो क्या इसका मतलब यह है कि वर्तमान प्रणाली में कुछ कमी है? दूसरा पहलू हमें हमेशा मौजूदा पद्धतियों की आलोचना करने की अनुमति देगा। क्या यह अज्ञात को बेहतर बनाता है? क्या कुछ मंत्रियों को बदल देना या उनके विभागों में परिवर्तन करके या फिर ज्यादा कुशल व्यक्तियों की नियुक्ति से ज्यादा कामयाबी हासिल की जा सकती है?

केंद्रीय स्तर पर आयोग की कड़ी परीक्षा में पास होने के लिए लोग भरपूर प्रयास करते हैं। सरकार भी उन्हें देश और विदेशों के प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण दिलाने के लिए काफी खर्च करती है। अगर वे परिणाम देने में असफल होते हैं तो उन्हें जवाबदेह क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए? क्या पुलिस सेवा में भी फिर ऐसा करने की अनुमति मिल सकती है? उदाहरण के लिए यदि पुलिस आयुक्त परिणाम देने में विफल रहें तो क्या हम उनकी जगह नागरिक समाज से किसी को लाकर बिठा सकते हैं? क्या हम राजस्व या बैंकिंग अथवा विदेश सेवा के लिए ऐसा ही कर सकते हैं? यह कहावत कि ‘आप जब तक कोशिश न करें, नहीं जान सकते कि आप क्या कर सकते हैं,’ इनोवेशन के लिए प्रेरित करती है। क्या सरकार वास्तव में ऐसा ही इनोवेशन करना चाहती है? किसी भी संगठनात्मक परिवर्तन के लिए सरकार को उससे संबंधित सभी पक्षों की राय लेनी चाहिए, तभी बाहर से विशेषज्ञों को शामिल किए जाने को सही ठहराया जा सकेगा।

 

Web Title: Has India failed in bureaucracy?

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