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बढ़ती आबादी से सरकार को डरने की जरूरत नहीं, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 15, 2020 12:56 IST

देश में जनसंख्या की बढ़त प्रति परिवार 3.2 थी जबकि अब वह घटकर 2.2 रह गई है. अब पति-पत्नी स्वयं सजग हो गए हैं. अब 36 में से 25 राज्यों में जनसंख्या-वृद्धि की दर 2.1 हो गई है.

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ठळक मुद्देसंसद में एक विधेयक पेश किया और मांग की कि दो बच्चों का कानून बनाया जाए.भारत की जनसंख्या लगभग डेढ़ अरब के आंकड़े को छू रही है.

पिछले साल भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने संसद में एक विधेयक पेश किया और मांग की कि दो बच्चों का कानून बनाया जाए यानी दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने को हतोत्साहित किया जाए.

इस मुद्दे पर अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी लगा दी. उस पर सरकार ने साफ-साफ कह दिया है कि वह परिवारों पर दो बच्चों का प्रतिबंध नहीं लगाना चाहती है क्योंकि ऐसा करना लोगों की स्वतंत्नता में हस्तक्षेप करना होगा और यो भी लोग स्वेच्छा से जनसंख्या-नियंत्रण कर ही रहे हैं.

अब से 20 साल पहले देश में जनसंख्या की बढ़त प्रति परिवार 3.2 थी जबकि अब वह घटकर 2.2 रह गई है. अब पति-पत्नी स्वयं सजग हो गए हैं. अब 36 में से 25 राज्यों में जनसंख्या-वृद्धि की दर 2.1 हो गई है. सरकार का यह तर्क तो ठीक है लेकिन भारत की जनसंख्या लगभग डेढ़ अरब के आंकड़े को छू रही है. शायद हम चीन को भी पीछे छोड़नेवाले हैं.

हम दुनिया के सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश बनने वाले हैं. सरकार का लक्ष्य है- प्रति परिवार 1.8 बच्चों का! यदि डेढ़ अरब लोगों के इस देश में सब लोगों को भरपेट खाना मिले, उनके कपड़े-लत्ते और रहने का इंतजाम हो तो कोई बात नहीं. उन्हें शिक्षा और चिकित्सा भी थोड़ी-बहुत मिलती रहे तो भी कोई बात नहीं लेकिन असलियत क्या है?

देश में गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, बेरोजगारी और भुखमरी भी बढ़ती ही जा रही है. उससे निपटने की भरपूर कोशिश हमारी सरकारें कर रही हैं लेकिन यदि आबादी की बढ़त रुक जाए तो ये कोशिशें जरूर सफल हो सकती हैं. यह ठीक है कि रूस, जापान, रोमानिया जैसे कुछ देश आबादी की बढ़त पर रोक लगाकर अब परेशान हैं. उनकी आबादी काफी तेजी से घट रही है.

यदि भारत में भी 10-15 साल बाद ऐसा ही होगा तो उस कानून को हम वापस क्यों नहीं ले लेंगे? यह ठीक है कि इस वक्त देश के ज्यादातर पढ़े-लिखे, शहरी और ऊंची जातियों के लोग स्वेच्छा से ‘हम दो और हमारे दो’ की नीति पर चल रहे हैं लेकिन गरीब, ग्रामीण, अशिक्षित, मजदूर आदि वर्गो के लोगों में अभी भी ये आत्म-चेतना जागृत नहीं हुई है. यह चेतना जागृत करने के लिए उन्हें दंडित करना जरूरी नहीं है लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है. क्या सरकार ऐसा करने में संकोच करती है? उसे ऐसे कौन से डर हैं, वह जरा बताए.

टॅग्स :संसदभारत सरकारचीननरेंद्र मोदी
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