अवधेश कुमार का ब्लॉगः सधी वैश्विक कूटनीति से हासिल किया लक्ष्य
By अवधेश कुमार | Published: August 30, 2019 07:24 AM2019-08-30T07:24:13+5:302019-08-30T07:24:13+5:30
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह से अपनी विदेश नीति को पूरी तरह भारत के खिलाफ झोंक दिया है, उसमें दुनिया के एक हिस्से की नजर इस कारण भी थी कि मोदी वहां उपस्थित नेताओं से क्या बात करते हैं और नेतागण कश्मीर और भारत पर क्या बोलते हैं.
फ्रांस के समुद्र किनारे बसे मनोरम दृश्यों वाले शहर बियारित्ज में आयोजित जी-7 सम्मेलन पर दुनिया की नजर कई कारणों से रही होगी, किंतु विशेष आमंत्रित अतिथि के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति से इसका आयाम विस्तृत हो गया था. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह से अपनी विदेश नीति को पूरी तरह भारत के खिलाफ झोंक दिया है, उसमें दुनिया के एक हिस्से की नजर इस कारण भी थी कि मोदी वहां उपस्थित नेताओं से क्या बात करते हैं और नेतागण कश्मीर और भारत पर क्या बोलते हैं.
सबसे ज्यादा ध्यान मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बैठक पर था. अगर दुनिया के कूटनीतिक इतिहास के आईने में देखा जाए तो दोनों नेताओं की बैठक का एक दृश्य उसके अध्याय में शामिल हो गया. ज्यादातर मीडिया ने उसी तस्वीर को अपने यहां सुर्खियां दीं. ट्रम्प यह कहते हुए मोदी के बाएं हाथ पर अपने दाएं हाथ की थपकी देते हैं कि ये अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं लेकिन यहां बोलना नहीं चाहते. इस पर मोदी ठहाका लगाते हैं और अपने बाएं हाथ से उनके हाथ को पकड़े हुए दाएं हाथ से ज्यादा जोर से थपकी लगाते हुए पकड़ लेते हैं. इस तरह का दृश्य दो देशों के नेताओं के शिखर सम्मेलन में शायद ही कभी सामने आया हो. इसीलिए अनेक विश्लेषकों ने उसे उस दिन का दृश्य या सीन ऑफ द डे का नाम दे दिया.
कूटनीति में शब्दों के साथ बॉडी लैंग्वेज यानी हाव-भाव का व्यापक महत्व होता है. तो आइए यह समझने की कोशिश करें कि मोदी ट्रम्प के इस हाव-भाव और वहां दिए गए वक्तव्यों के मायने क्या हैं?
दोनों नेताओं के बीच प्रतिनिधि स्तरीय द्विपक्षीय बातचीत हुई. पत्रकारों के सामने आने के पहले रात में दोनों ने साथ भोजन किया था जिस दौरान भी बातचीत हुई थी. पत्रकारों ने कश्मीर पर सवाल पूछ लिया. प्रधानमंत्री मोदी ने जो जवाब दिया वह वाकई अद्भुत था. उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच कई द्विपक्षीय मामले हैं जिनका हम समाधान कर सकते हैं. हम इस पर दुनिया के किसी भी देश को कष्ट नहीं देना चाहते हैं. मोदी ने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान, जो 1947 से पहले एक ही थे, मिलजुल कर अपनी समस्याओं पर चर्चा और समाधान भी कर सकते हैं.
इस तरह के वक्तव्य की उम्मीद भारत में भी शायद ही किसी ने की होगी. हालांकि कश्मीर पर सवाल पूछा जाएगा इसकी पूरी उम्मीद मोदी को रही होगी इसलिए वे जवाब पहले से सोचकर गए होंगे. इस प्रकार से जवाब देने को आप श्रेष्ठ कूटनीति का उदाहरण मान सकते हैं.
मोदी यह भी कह सकते थे कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मामला है और अभी हमने जो किया है वह हमारा आंतरिक विषय है जिसमें कोई दूसरा पक्ष दखलंदाजी नहीं कर सकता या किसी पक्ष की दखलंदाजी की इजाजत हम नहीं देंगे. यह रूखी भाषा होती और शायद ट्रम्प जैसा नेता या दूसरे नेता इससे भीतर ही भीतर नाराज हो सकते थे. इसकी जगह उन्होंने एकदम सहज भाव से कह दिया कि हम किसी को कष्ट नहीं देना चाहते. यह एक परिपक्व देश के परिपक्व नेतृत्व की परिपक्व कूटनीति मानी जाएगी.
इस तरह सधी हुई कूटनीति से मोदी ने निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिया. वहां उपस्थित अन्य नेताओं से भी मोदी की बात हुई. जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल से, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से भी आमने-सामने की बातचीत हुई. हालांकि उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है और उसके बाद पत्रकार वार्ता भी नहीं हुई जिनसे हम कुछ अंदाजा लगाएं. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटारेस से मुलाकात के बाद मोदी ने ट्वीट भी किया कि महासचिव के साथ बैठक शानदार रही. उसमें जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता आदि की चर्चा की जानकारी थी.
एंटोनियो गुटारेस पाकिस्तान के हस्तक्षेप के अनुरोध को यह कहकर ठुकरा चुके हैं कि मामला द्विपक्षीय है. थोड़े शब्दों में कहा जाए तो भारत का लक्ष्य ट्रम्प से अपने अनुकूल वक्तव्य दिलवा देना था. इस तरह फ्रांस के बियारित्ज में परिपक्व और बुद्धिमत्तापूर्ण कूटनीति से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता पाई है. ट्रम्प का बयान भारत के लिए एक चुनौती बन गया था.
मोदी ने फोन पर हुई बातचीत में अवश्य संकेतों में उन्हें समझाया होगा. किंतु मुलाकात के बाद ट्रम्प का बयान बताता है कि उन्होंने अपने पूर्व के बयान पर पुनर्विचार किया है. आगे फिर उनमें कुछ बदलाव होता है तो देखेंगे. किंतु पाकिस्तान कितना हताश हो गया है इसका प्रमाण है इस मुलाकात के बाद इमरान खान का संबोधन जिसमें वे दुनिया को बता रहे हैं कि दोनों नाभिकीय शक्ति हैं और युद्ध हुआ तो केवल पाकिस्तान और भारत पर ही इसका असर नहीं होगा, दुनिया भी इसकी चपेट में आएगी. एक ओर इस तरह का उत्तेजनापूर्ण भाषण और दूसरी ओर सहजता से मामले को द्विपक्षीय बताने व किसी तरह की आक्रामक बात न करने के आचरण में दुनिया भी अंतर कर रही होगी.