गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: गांवों की उन्नति से ही बनेगा आत्मनिर्भर भारत

By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 10, 2020 10:56 AM2020-06-10T10:56:28+5:302020-06-10T10:56:28+5:30

आत्मनिर्भर बनने की यात्ना में गांवों की भूमिका पर गहन विचार आवश्यक है. महात्मा गांधी का ‘ग्राम स्वराज’ देश की आत्मनिर्भरता के लिए मार्गदर्शक हो सकता है. श्रम पर आधारित जीवन और प्राकृतिक संसाधनों को महत्व देना इसका मुख्य आधार होगा.

Girishwar Mishra's blog says, Self-reliant India will be built with the advancement of villages | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: गांवों की उन्नति से ही बनेगा आत्मनिर्भर भारत

देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में बसती है.  

 कोविड-19 महामारी के दौर में जब संपर्क टूटने लगे और संसाधनों के आयात-निर्यात की सामान्य प्रक्रिया बाधित हुई तो हमें अपनी आर्थिक नीतियों को बदलना पड़ा और प्रधानमंत्नी को ‘आत्मनिर्भर भारत’ के  निर्माण के लिए आह्वान करना पड़ा.

अब तक विकास की अवधारणा शहरों को मॉडल मान कर चलती रही और उन्हीं को ‘स्मार्ट’ बनाने की योजना बनती रही. दूसरी ओर मानवोचित जीवन जीने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य आवश्यक जरूरी सुविधाओं की व्यवस्था की दृष्टि से गांव हाशिए पर पहुंच गए.   विकास के समीकरण में गांव धीरे-धीरे स्वावलम्बी की जगह परावलम्बी होते गए.

उनका अपना आधार खिसकता गया. चूंकि वे विकास के मॉडल में फिट नहीं थे, गांवों के विकास का कोई दीर्घकालिक खाका नहीं बन सका जो उन्हें सामथ्र्यवान बनाता. इसका परिणाम यह हुआ कि गांव वालों की नजर में शहर में ही जीवन का भविष्य ठहर गया. गांव उजड़ते गए और लोग पलायन कर शहर की शरण में पहुंचने लगे. शहरों को अपनी सीमा से परे जा कर अपार जन समुदाय के लिए आवश्यक जन-सुविधाएं जुटाने का काम संभालना पड़ा. उनका विस्तार होता गया और प्राय: यह विस्तार अनियंत्रित होने के कारण शहरों के लिए सिरदर्द बनता रहा. यह तब है जब देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में बसती है.  

आत्मनिर्भर बनने की यात्ना में गांवों की भूमिका पर गहन विचार आवश्यक है. महात्मा गांधी का ‘ग्राम स्वराज’ देश की आत्मनिर्भरता के लिए मार्गदर्शक हो सकता है. श्रम पर आधारित जीवन और प्राकृतिक संसाधनों को महत्व देना इसका मुख्य आधार होगा. बाजार, स्वार्थ, नफा और लिप्सा को उद्यमिता का आधार बनाने के दुष्परिणामों को हम सब देख रहे हैं.

गांव को विकेंद्रित शासन का केंद्र बनाने पर आत्मनिर्भरता को समाज के आधार के स्तर पर लाया जा सकेगा. पर शहर की आभासी दुनिया ने इतना चमत्कृत कर रखा है कि आज कृषि कर्म को अक्सर हिकारत भरी नजर से देखा जाता है. सच्चाई यह है कि जटिल होते परिवेश में मिट्टी, पानी, खाद, बीज, फसल का नियोजन, जैव विविधता की समझ आदि बुद्धि की अपेक्षा करते हैं. अच्छी खेती से स्वावलंबन, पर्यावरण संतुलन, स्वास्थ्य और संतुष्टि की प्राप्ति होती है.

आज लाखों की संख्या में मजदूर अपने गांवों की ओर वापस लौट रहे हैं. यदि कृषि और ग्रामोद्योग को बढ़ावा मिले और बाजार के शोषण से मुक्ति मिले तो इनकी समस्या का हल निकल सकता है. यह स्वस्थ और समर्थ भारत के लिए जरूरी कदम होगा.

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