गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: विविधता के बीच भावनात्मक एकता

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 26, 2018 02:51 PM2018-12-26T14:51:12+5:302018-12-26T14:51:12+5:30

समाज में सामाजिक-आर्थिक विषमताएं तो पहले से मौजूद थीं परंतु विदेशी अंग्रेजी राज की गुलामी की पीड़ा से सभी भारतवासी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक स्तरों पर त्नस्त थे.

Girishwar Mishra's Blog: Emotional Unity Between Diversity | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: विविधता के बीच भावनात्मक एकता

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: विविधता के बीच भावनात्मक एकता

 संविधान का निर्माण कर देश ने शासन के लिए ‘जनतंत्न’ को स्वीकार किया जिसने औपनिवेशिक इतिहास को पार कर राजनैतिक रूप से एक स्वतंत्न परिवेश में समाज को जीने का सुअवसर प्रदान किया. निश्चय ही यह एक नए युग का सूत्नपात था जिसमें देश (भौगोलिक अर्थ में) और काल दोनों ही बदले और हमको स्वयं को पुन: परिभाषित करने की चुनौती प्राप्त हुई.

एक बड़े देश के रूप में जिस समाज को स्वतंत्नता की देहरी पर हमने खड़ा पाया था वह अपने स्वरूप में अद्भुत था. इस बिंदु पर भावनाओं के स्तर पर सभी छोटे-बड़े समुदाय एक किस्म की कही अनकही एकता के सूत्न में बंधे थे. समाज में सामाजिक-आर्थिक विषमताएं तो पहले से मौजूद थीं परंतु विदेशी अंग्रेजी राज की गुलामी की पीड़ा से सभी भारतवासी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक स्तरों पर त्नस्त थे. यह सबके लिए एक समान सा आधार था और इससे छुटकारा पाने के लिए कमोबेश सभी इच्छुक थे.

दूसरी ओर भौतिक जीवन के स्तर पर अर्थात् भाषा, धर्म, जाति, वेशभूषा, खान-पान, रूप-रंग, आचार-विचार आदि में सभी समुदायों की विशिष्ट पृष्ठभूमि थी. भिन्न भौगोलिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों में आकार पाने वाले विभिन्न समुदायों के समानता और भिन्नता के अपने-अपने दायरे बनते थे जो आपस में जुड़ते व टकराते थे. 

देश के सांस्कृतिक मानचित्न में प्राचीन काल से ही धर्म और सामाजिक जीवन के कुछ आंतरिक सूत्न ऐसे भी विद्यमान हैं जो सबको आपस में जोड़ते रहे हैं . प्राचीन काल में ज्ञान की धारा भी देश के एक छोर से दूसरी छोर तक बहती थी. भिन्न-भिन्न स्थानों पर जन्म लेने पर भी रामानुजाचार्य, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, ज्ञानेश्वर, कबीर, गुरु नानक, महर्षि रमण आदि गुरुओं का प्रभाव क्षेत्न एक स्थान पर स्थिर नहीं रहा. वे सभी भारत नामक एक भाव-प्रवाह के अटूट हिस्से थे और उससे जुड़ना सबके लिए प्रीतिकर अनुभव होता था. गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी जैसी नदियां भारत के हर कोने में पवित्न और पूज्य बन गईं. हिमालय, विंध्य, शिवालिक, मलय, सह्याद्रि, नीलाद्रि आदि पर्वत श्रेणियां सबको प्रिय हैं. कृष्ण और राम की नानाविध उपस्थिति भी अखिल भारतीय स्तर पर दिखती है. यह सब सांस्कृतिक एकता का ठोस आधार प्रदान करता है जो श्वास-प्रश्वास में व्याप्त है. विविधताओं के बावजूद भावनात्मक एकता सबको निकट ले आती है.

 

English summary :
Socio-economic disparities were already present in society, but all Indians from the pain of slavery of foreign English rule were stagnant at economic, mental and physical levels.


Web Title: Girishwar Mishra's Blog: Emotional Unity Between Diversity

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