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गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: राष्ट्रीय चेतना जगाने में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: January 11, 2020 05:30 IST

हिंदी भाषा हजार-बारह सौ वर्षो से भारत में प्रयुक्त हो रही है. इतिहास में आप जाएंगे तो पाएंगे कि इस भाषा के भिन्न-भिन्न रूपों को लेकर सृजन की एक लंबी परंपरा रही है. भारत का स्वतंत्नता संग्राम जिस ढंग से भारतीय समाज द्वारा लड़ा गया उस लड़ाई में हिंदी की अहम भूमिका थी.

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हिंदी भाषा हजार-बारह सौ वर्षो से भारत में प्रयुक्त हो रही है. इतिहास में आप जाएंगे तो पाएंगे कि इस भाषा के भिन्न-भिन्न रूपों को लेकर सृजन की एक लंबी परंपरा रही है. भारत का स्वतंत्नता संग्राम जिस ढंग से भारतीय समाज द्वारा लड़ा गया उस लड़ाई में हिंदी की अहम भूमिका थी. देश के अधिकांश नेताओं ने देश और समाज के कार्य में हिंदी का खूब उपयोग किया. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस समेत हिंदी के क्षेत्न से बाहर के अनेक नेताओं ने इसे लोक में संवाद का माध्यम बनाया. समाज में हिंदी की व्यापक उपस्थिति थी इसलिए यह निश्चय किया गया और संविधान में व्यवस्था की गई कि भारत को जिस संपर्क की जरूरत है उस संपर्क के लिए हिंदी ही सबसे ठीक भाषा होगी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस बात की बहुत अच्छे ढंग से वकालत की और इसके लिए काम भी किया.

इस पूरी पृष्ठभूमि में आप देखेंगे तो पाएंगे कि हिंदी को एक प्रकार से बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय स्वीकृति प्राप्त थी. लेकिन आजादी मिलने के बाद दक्षिण भारत में कुछ राजनीतिक उथल-पुथल हुई जिसमें हिंदी का विरोध किया गया और धीरे-धीरे एक  ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई जिसमें भारत सरकार को यह व्यवस्था देनी पड़ी कि जब तक सब लोग तैयार न हो जाएं तब तक हिंदी का प्रयोग सर्वत्न न किया जाए. उसके बाद भाषा को लेकर कुछ ऐसी तटस्थता और उदासीनता का दौर शुरू हुआ और कुछ ऐसा होता चला गया कि हम इसकी निरंतर उपेक्षा करते रहे.

यदि साहित्य की रचना की दृष्टि से देखें तो हिंदी ने भिन्न-भिन्न साहित्य की शैलियों में और जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्नों में प्रगति की है. उसके प्रकाशन में अभूतपूर्व  वृद्धि हुई है. इसके साथ ही मीडिया के क्षेत्न में हिंदी की उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज हुई है और भारत से बाहर जहां भी प्रवासी भारतीय रहते हैं वहां भी हिंदी का प्रयोग हो रहा है. भारत सरकार ने रुचि ली और विशेष रूप से  अटल बिहारी वाजपेयी व सुषमा स्वराज ने बड़े प्रयास और मनोयोग से संयुक्त राष्ट्र में हिंदी की ध्वजा फहराई. इस बात का प्रयास किया गया कि हिंदी का अधिकाधिक उपयोग हो और इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं.

लेकिन आज  ज्ञान के मामले में भाषा का गहरा विभेद हम देख रहे हैं. भाषा को कैसे सामथ्र्यवान बनाया जाए इसके प्रति जो रुझान समाज में होना चाहिए, जो गर्व होना चाहिए, वह घटा है. अच्छी हिंदी का हम उपयोग करें, जो हमारी बातों को अच्छे ढंग से प्रस्तुत कर सके, अच्छी तरह से संवाद कर सके, इसके लिए अंदर से एक प्रकार का उत्साह होना चाहिए. इसके लिए सांस्कृतिक चेतना के जागरण का प्रयास करना होगा.

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