गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग: बदल रही है भारत की विदेश नीति
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 18, 2019 06:58 AM2019-11-18T06:58:24+5:302019-11-18T06:58:24+5:30
नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग से विश्व के सारे प्रमुख नेताओं से मिलकर उन्हें समझाने का प्रयास किया कि संसार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह अत्यंत ही आवश्यक है कि सभी देश मिलकर आतंकवाद का मुकाबला करें. उन्होंने बिना झिझक यह भी कह दिया कि आतंकवाद का गढ़ पाकिस्तान है और जब तक पाकिस्तान को सबक नहीं सिखाया जाएगा तब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं होगा.
महीनों में भारत की विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन आया है. पंडित नेहरू ने गुटनिरपेक्ष विदेश नीति अपनाई थी और इतने दिनों तक वही चलता रहा. परंतु जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हुए उन्होंने भारत की विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन कर दिया जिसका पूरे देश ने एक स्वर से स्वागत किया.
पंडित नेहरू और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एन लाई के बीच जो पत्राचार हुआ है उसे देखकर ऐसा लगता है कि पंडित नेहरू ने चीन के साथ मित्रवत संबंध बनाने की पूरी कोशिश की. परंतु चीन के मन में खोट छिपा था जो बाद के वर्षों में 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय पूरी तरह उजागर हो गया.
भारत को स्वतंत्रता 1947 में मिली थी और चीन विदेशियों से स्वतंत्र 1949 में हुआ. पंडित नेहरू ने चीन को बहुत समझाया कि दोनों देशों का रिश्ता बहुत पुराना है और यदि दोनों देश मिलकर चलें तो वे एशिया का कायाकल्प कर देंगे. परंतु चीन कुछ और ही सोच रहा था. वह एशिया में सबसे मजबूत शक्ति बनकर उभरना चाहता था और इसके लिए उसने भारत के साथ पुराने संबंधों को कोई तरजीह नहीं दी.
पंडित नेहरू सरल स्वभाव के व्यक्ति थे.
उन्होंने चीन के इतिहास का पूरी तरह अध्ययन नहीं किया था. उनके मन में एक मिनट भी यह बात नहीं आई होगी कि चीन कभी धोखा भी कर सकता है. द्वितीय विश्वयुद्व के बाद संसार दो धड़ों में बंट गया. एक धड़े में सोवियत संघ और चीन के समर्थक थे और दूसरे धड़े में अमेरिका तथा पश्चिमी देश थे. परंतु पंडित नेहरू ने बीच का रास्ता निकाला और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति अपनाई. उनका कहना था कि हम दोनों में किसी गुट में शामिल नहीं होंगे. परंतु चीन भारत की इस गुटनिरपेक्ष नीति का मजाक ही उड़ाता था और उसे विश्वास नहीं हुआ कि भारत कभी पश्चिमी देशों के चंगुल से बाहर निकल सकता है. इस बीच चीन ने भारत को नीचा दिखाने के लिए पाकिस्तान से गहरी दोस्ती कर ली. उसने पाकिस्तान को न्यूक्लियर टैक्नोलोजी दे दी और उसे हर तरह से इस प्रकार मदद किया कि वह भारत का दुश्मन नंबर एक बनकर उभरे और भारत उसी में उलझकर रह जाए. अंदर ही अंदर उसने पाकिस्तान को सशक्त बनाने की पूरी कोशिश की.
दुर्भाग्यवश भारत इस बात को समझ नहीं पाया. अभी हाल में चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी वन-बेल्ट-वन रोड योजना बनाई जिसके लिए उसने पाकिस्तान से उसकी जमीन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण भाग ले लिया. इस योजना के अंतर्गत चीन ने पाकिस्तान में 7 अरब डॉलर का निवेश करने का फैसला किया है. वह अब सार्वजनिक रूप से घोषणा करता रहता है कि पाकिस्तान उसका निकटतम मित्र है और पाकिस्तान को सशक्तबनाने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन और पाकिस्तान दोनों से मित्रवत संबंध बनाने के पूरे प्रयास किए. पाकिस्तान तो शुरू से खार खाये बैठा था. उसने कभी भारत को तरजीह नहीं दी बल्कि अपने देश में आतंकवादियों को प्रशिक्षित करके सीमा पार आतंकी घटनाएं करवाता रहा. भारत को जब यह बात समझ में आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने उन्होंने विभिन्न देशों में घूम-घूमकर वहां के नेताओं को जागृत करने का प्रयास किया और कहा कि आज की तारीख में आतंकवाद सारी दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा है. अभी जब वे ब्रिक्स सम्मेलन में गए थे तो वहां भी उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि आतंकवाद की तस्वीर अत्यंत ही भयावह है. आतंकवाद से विश्व अर्थव्यवस्था को एक लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हो चुका है और यदि संसार के सारे देश मिलकर आतंकवाद का मुकाबला नहीं करेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा कि न्यूक्लियर बम आतंकवादियों के हाथ लग जाएंगे और सारी सृष्टि ही समाप्त हो जाएगी.
नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग से विश्व के सारे प्रमुख नेताओं से मिलकर उन्हें समझाने का प्रयास किया कि संसार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह अत्यंत ही आवश्यक है कि सभी देश मिलकर आतंकवाद का मुकाबला करें. उन्होंने बिना झिझक यह भी कह दिया कि आतंकवाद का गढ़ पाकिस्तान है और जब तक पाकिस्तान को सबक नहीं सिखाया जाएगा तब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं होगा.