शोभना जैन का ब्लॉगः कश्मीर को लेकर भारत की दो-टूक और अमेरिकी ऊहापोह
By शोभना जैन | Published: August 31, 2019 07:27 AM2019-08-31T07:27:57+5:302019-08-31T07:27:57+5:30
यह बात अहम है कि अमेरिकी प्रशासन और राष्ट्रपति ट्रम्प के कश्मीर मसले पर अलग-अलग स्वर के बयान आते रहे हैं. कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने फ्रांस में जी-7 शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्नी मोदी के साथ जम्मू-कश्मीर पर बहुत विस्तार से बातचीत की थी.
हाल ही में फ्रांस में हुए बहुचर्चित जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कश्मीर मसले के समाधान के लिए मध्यस्थता के प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक दो-टूक शब्दों में खारिज कर दिया. तब ट्रम्प ने भी इस पर सहमति जताई थी. लेकिन मध्यस्थता प्रस्ताव को भारत द्वारा खारिज करने के चार दिन बाद ही अमेरिकी प्रशासन ने फिर एक नया बयान जारी कर कहा कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात पर अमेरिका लगातार नजर बनाए हुए है और लोगों की नजरबंदी और वहां लगातार जारी प्रतिबंधों से चिंतित है.
हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को भी परोक्ष रूप से चेतावनी दी है कि वह लाइन ऑफ कंट्रोल पर शांति बहाल रखे और सीमापार से आतंकवाद पर लगाम लगाए. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस नए बयान में कहा ‘हम मानवाधिकारों के लिए सम्मान, कानूनी प्रक्रि याओं के अनुपालन और प्रभावित लोगों के साथ एक समावेशी बातचीत का अनुरोध करते हैं.’ वैसे बयान में यह भी कहा गया कि हम प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के उस कथन का स्वागत करते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर जल्द ही एक सामान्य राजनीतिक स्थिति में लौट आएगा.
यह बात अहम है कि अमेरिकी प्रशासन और राष्ट्रपति ट्रम्प के कश्मीर मसले पर अलग-अलग स्वर के बयान आते रहे हैं. कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने फ्रांस में जी-7 शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्नी मोदी के साथ जम्मू-कश्मीर पर बहुत विस्तार से बातचीत की थी. चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने जोर देकर कहा था कि 1947 से पहले भारत और पाकिस्तान एक थे और दोनों देशों के बीच सभी मुद्दे भी द्विपक्षीय थे. इसमें किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता अस्वीकार्य है.
पिछले एक माह में ट्रम्प कश्मीर मुद्दे पर लगभग तीन बार मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं लेकिन अमेरिकी प्रशासन का कहना था कि वह इस मुद्दे के द्विपक्षीय हल के पक्ष में है. कश्मीर पर अमेरिका की ऊहापोह इन्हीं अलग-अलग स्वरों से समझी जा सकती है. हालांकि इसे डिप्लोमेटिक पैंतरेबाजी कहना सही नहीं होगा. अमेरिका की कश्मीर को लेकर चिंताओं का एक पहलू उसकी अपनी चिंताओं से जुड़ा है, जिसके तार अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजें हटाने को लेकर पाकिस्तान से फौरी मदद की दरकार से जुड़े हैं.
ट्रम्प ‘अमेरिका फस्र्ट’ के नारे से अगले वर्ष राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने पर तुले हैं और ऐसे में अफगानिस्तान से अपनी फौजों की वापसी उनके लिए अहम मुद्दा है. 17 साल से जारी अफगान युद्ध को समाप्त करने में अमेरिका पाकिस्तान की भूमिका को अहम मानता है. इस सब के बीच रिश्तों में संतुलन कायम करने की भी खासी अहमियत होती है और डिप्लोमेसी का यह एक अहम पक्ष है. अमेरिका की ऊहापोह इसी की परिचायक लगती है.