फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: कोरोना संकट में नागरिकों को दें उनके स्वास्थ्य का अधिकार

By फिरदौस मिर्जा | Published: April 24, 2021 12:57 PM2021-04-24T12:57:10+5:302021-04-24T22:10:43+5:30

कोरोना महामारी के इस दौर में टीकों की कीमतों की घोषणा सवाल खड़े करती है. केंद्र और राज्यों को अब अलग-अलग कीमत पर टीका मिलेगा. इससे पता चलता है कि हम महामारी के खिलाफ एकजुट नहीं हैं.

Firdos Mirza blog: Coronavirus vaccine give citizens the right to their health | फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: कोरोना संकट में नागरिकों को दें उनके स्वास्थ्य का अधिकार

कोरोना महामारी के इस दौर में एकजुट होने की जरूरत (फाइल फोटो)

सरकार अपने नागरिकों के पोषण के स्तर को बढ़ाने और उनके जीवन स्तर व सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार पर अपने प्राथमिक कर्तव्य के रूप में विचार करेगी (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47). महामारी से लड़ने के लिए राष्ट्र से मिलकर काम करने की उम्मीद की गई थी, लेकिन हाल ही में टीकों की कीमतों की घोषणा की गई है, जिससे पता चलता है कि हम एकजुट नहीं हैं. 

उनके लिए अलग-अलग मूल्य चुकाना पड़ेगा, यहां तक कि केंद्र और राज्य सरकारों को भी वे अलग-अलग कीमतों पर मिलेंगे. इससे पता चलता है कि भारत में सभी के साथ समान रूप से व्यवहार नहीं किया जाता है, जो संविधान की भावना के विपरीत है. 

राष्ट्र नीतिगत पक्षाघात से पीड़ित है और हम ऑक्सीजन, दवाइयां हासिल करने के लिए भी राज्यों को संघर्ष करते देख रहे हैं. दुर्भाग्य से, केंद्र पर राज्यों द्वारा संसाधनों के वितरण में निष्पक्ष नहीं होने का आरोप लगाया जा रहा है. 
राजनीतिक नेता आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं और आम आदमी अपने प्रियजनों-परिजनों के लिए एक अदद ऑक्सीजनयुक्त बेड पाने की जद्दोजहद कर रहा है.

स्वास्थ्य हर नागरिक का है बुनियादी अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य को बुनियादी अधिकार माना जाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने 1980 में रतलाम नगरपालिका के मामले में कहा था कि स्वास्थ्य के अधिकार को भारत के संविधान द्वारा मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी दी गई है. यह अधिकार केवल तभी निलंबित किया जा सकता है, जब आपातकाल घोषित किया गया हो.

एक ओर जहां संविधान ने नागरिकों को अधिकार की गारंटी दी है, वहीं सरकार का यह कर्तव्य बताया है कि वह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त हो. लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं के वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह नहीं लगता कि सरकारों ने नागरिकों के इस अधिकार को गंभीरता से लिया है. 

हाल ही में, एक पत्रिका ने रेखांकित किया है कि 2012 में भारत सरकार ने 2020 तक स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिए बजटीय आवंटन को 2.5 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन दुर्भाग्य से 2021-22 तक यह 1.5 प्रतिशत को भी पार नहीं कर पाया है. 

केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य के लिए 2019-20 में 64609 करोड़ का बजटीय आवंटन किया था, जबकि 2020-21 के लिए यह 78866 करोड़ था. जाहिर सी बात है कि हम उम्मीद कर रहे थे कि महामारी के वर्ष में इसे बढ़ाया जाएगा. लेकिन आश्चर्य जनक रूप से 2021-22 के बजट में यह घटकर 71268 करोड़ हो गया. 

यदि भारत की जनसंख्या पर विचार किया जाए तो यह राशि सभी के लिए वैक्सीन खरीदने के लिए भी अपर्याप्त है. नागरिकों के अधिकारों की अवहेलना करने में राज्य भी केंद्र से पीछे नहीं हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य पर राज्यों का औसत खर्च लगभग 5 प्रतिशत है.

उपरोक्त आंकड़े यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बुरी हालत में क्यों हैं और कोविड पीड़ितों की दयनीय स्थिति का कारण क्या है. 

नेताओं से स्वास्थ्य के बारे में हम बात क्यों नहीं करते?

दुर्भाग्य से, एक मतदाता के रूप में हम कभी भी वोट मांगने वालों से स्वास्थ्य के बारे में उनकी भविष्य की नीतियों के बारे में पूछने की जहमत नहीं उठाते हैं और हमारे प्रतिनिधियों ने यह साबित किया है कि उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में कोई चिंता नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप 180 देशों के स्वास्थ्य सूचकांक में भारत 145 वें स्थान पर है. दुर्भाग्यवश, हम उन शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं जो नागरिकों को अपने स्वास्थ्य पर अपनी ही जेब से खर्च करने के लिए मजबूर करते हैं.

महामारी ने हमें सबक सिखाया है कि हमें अपनी प्राथमिकताओं को बुद्धिमानी से और मानवीय रूप से तय करना चाहिए, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कल्याणकारी राज्य हैं जिसका सर्वोपरि कर्तव्य प्रत्येक नागरिक का, विशेष रूप से समाज के वंचित वर्ग का कल्याण करना है. 

यह समय है कि स्वास्थ्य के अधिकार को सरकारों द्वारा समझा जाए. अगर चीन 15 दिनों में अस्पताल का निर्माण कर सकता है तो हम भी इतनी तेजी से काम क्यों नहीं कर सकते हैं? संसाधनों के समान वितरण को प्राथमिकता दी जाए. आपातकाल को देखते हुए सभी तरह के फंड को स्वास्थ्य सेवाओं की ओर मोड़ा जाना चाहिए.

हमें यह समझने की आवश्यकता है कि संविधान ने सरकार का एक कर्तव्य निर्धारित किया है जिसमें निर्वाचित और नियुक्त अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार किया जाना शामिल है. 

उन्हें कर्तव्य और दान के बीच अंतर को समझना चाहिए, अगर, वे बजटीय संसाधनों से कुछ कर रहे हैं या नागरिकों को कुछ राहत दिलाने के लिए कानूनों का उपयोग कर रहे हैं, तो वे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, और यदि वे अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से नागरिकों की बेहतरी के लिए कुछ खर्च कर रहे हैं तो यह दान है. 

जब तक वे दान नहीं कर रहे हैं, उन्हें अपना कर्तव्य निभाते हुए किसी भी तरह के श्रेय का दावा नहीं करना चाहिए क्योंकि लोगों ने इसी काम के लिए उन्हें भुगतान किया है, या तो वेतन के रूप में या वोट के रूप में.

कोरोना से लगाई में नागरिक भी नहीं भूले अपना कर्तव्य

सरकार के कर्तव्यों पर चर्चा करते हुए हम एक नागरिक के रूप में अपने संवैधानिक कर्तव्यों की उपेक्षा नहीं कर सकते. हमारा कर्तव्य है कि हम मास्क पहनें, शारीरिक दूरी बनाए रखें और सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करें. 

हमें नियमों और निर्देशों का पालन करना चाहिए. जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें बेड पर अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, उन्हें जरूरतमंदों को देना चाहिए. स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए उदारता के साथ दान करना चाहिए. इसी समय के लिए हमने धार्मिक स्थलों की दानपेटियों को भरा है. 

कृपया समाज को इसे वापस दें क्योंकि उसको अभी इसकी आवश्यकता है. किसी भी सरकार को गरीबी की दुहाई देते हुए अपने नागरिकों को संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का अधिकार नहीं है.  

Web Title: Firdos Mirza blog: Coronavirus vaccine give citizens the right to their health

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