रमेश ठाकुर‘कृषि आमदनी’ में घाटे का प्रमुख कारण कृषकों में आधुनिक खेती-किसानी करने के तरीकोंके ज्ञान की कमी सामने आई है. कृषि-क्रियाओं में मिट्टी के परीक्षण की तकनीक कितनी उपयोगी साबित हो सकती है, इस सच्चाई से अन्नदाता फिलहाल वाकिफ होने लगे हैं. ग्लोबल वामिर्र्ग का असर कहें या नित बदलते मौसम की विषमताएं, किसान संकट में हैं.
कृषि और किसानों की इन समस्याओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने समूचे भारत में किसानों की सुविधाओं के लिए मिट्टी के परीक्षण अर्थात मृदा विज्ञान का प्रचार-प्रसार तेजी से शुरू किया है. इससे किसानों को कौन सी फसल कब और किस तरह की मिट्टी में बोनी है, आदि की उपयुक्त जानकारी सुलभ कराई जा रही है. मृदा जांच तकनीक से खेत की मिट्टी को कैसे उपजाऊ बनाया जाए, फसलों को कीटनाशकों से किस तरह से बचाया जाए और साथ ही कौन सी खाद कब देनी है आदि की जानकारियां मुहैया कराई जा रही हैं.
खेती-किसानी का स्वरूप बदल चुका है. इसलिए बदलते समय के साथ ही किसानों को भी चलना होगा. उन्हें कृषि से संबंधित आधुनिक जानकारियों से अपडेट रहना होगा. फसल लगाने से पहले खेत की मिट्टी को स्थानीय कृषि प्रयोगशाला में ले जाकर जांच करानी चाहिए. जांच रिपोर्ट आने के बाद उसी के अनुसार फसल लगानी चाहिए. इससे भूमि का उपजाऊपन बना रहता है और फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है. बिना जांच के खेतों में अत्यधिक रासायनिक खादों के प्रयोग से हवा, पानी, व मृदा प्रदूषण में लगातार वृद्घि हो रही है और इससे मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.
पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, केरल, आंध्रप्रदेश से कुछ उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए हैं. इन परिणामों की देखादेखी ही दूसरे प्रांतों के किसानों में भी अभिरुचि जगी है. हिंदुस्तान के अनेक राज्य ऐसे हैं जहां के किसान पूर्णत: विज्ञान आधारित कृषि पर निर्भर हो गए हैं. वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाने के बाद उनकी फसलों की उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी हुई है. मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल से ही देशभर में ‘किसान मेले’ का आयोजन शुरू किया है जिसमें किसानों को कृषि से संबंधित तमाम नवीनतम वैज्ञानिक खोजों की और नई-नई दवाइयों की जानकारी दी जाती है. मेले के जरिए किसानों को उन्नत खेती के तरीके भी सिखाए जाते हैं. जमीन के मृदा प्रशिक्षण के बाद किसानों को फसलों की बुआई से दवा छिड़कने तक आसानी हो जाती है.
दरअसल मौजूदा दौर में जमीनें पहले जैसी उपजाऊ नहीं रह गई हैं. ज्यादा उपज लेने के चक्कर में किसानों ने अपने खेतों में अनावश्यक रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उड़ेलकर मानो जमीन की आत्मा को ही खींच लिया है. घटती मृदा उर्वरता के लिए तीनों कारक बराबर के जिम्मेदार हैं. खेती में रासायनिक उर्वरकों के अनुचित व असंतुलित प्रयोग का मृदा उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.
रासायनिक उर्वरकों का इतना अधिक असंतुलित प्रयोग हो रहा है कि अब दुष्परिणाम स्पष्ट दिखने लगे हैं. फसलों की गुणवत्ता और पैदावार में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है.
फसल लगाने से पहले मिट्टी की जांच से खेत में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्र, अम्लीयता, क्षारीयता, कार्बनिक पदार्थ, मृदा की भौतिक संरचना और किसी फसल विशेष के लिए भूमि की उपयुक्त जानकारी मिल जाती है. वैज्ञानिकों की मानें तो प्रत्येक किसान को अपनी सघन खेती वाले क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष और एकल फसल वाले क्षेत्र में तीन साल के अंतराल में मिट्टी की जांच करवानी चाहिए.