उच्च मूल्य की कृषि फसलों के उत्पादन पर ध्यान दें, भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग
By भरत झुनझुनवाला | Published: December 8, 2020 12:36 PM2020-12-08T12:36:19+5:302020-12-08T12:38:19+5:30
समर्थन मूल्य के चलते किसानों को गन्ना, गेहूं एवं धान में इस प्रकार के मूल्य की गिरावट का संदेह नहीं रहता है और उन्हें पर्याप्त लाभ मिल जाता है. किसान की खुशहाली में समर्थन मूल्य की अहम भूमिका है.
किसानों द्वारा नए कृषि कानून को निरस्त किए जाने की मांग आंशिक रूप से सही है चूंकि इसके पीछे सरकार की मंशा समर्थन मूल्य को हटाने की दिखती है.
सरकार द्वारा दिए गए समर्थन मूल्य से कुछ विशेष फसलें जैसे गन्ना, गेहूं एवं धान से किसानों को उचित दाम मिल जाते हैं. इन समर्थन मूल्यों के चलते किसान इन फसलों का उत्पादन उत्तरोत्तर बढ़ा रहे हैं. उन्हें यह डर नहीं रहता है कि बाजार में फसल के दाम गिर जाएंगे और उन्हें नुकसान हो सकता है.
कुछ वर्ष पूर्व पालनपुर में किसानों ने अपनी आलू की फसल को सड़कों पर लाकर डंप कर दिया था. उनका कहना था कि मंडी में आलू के दाम 2 रुपए प्रति किलो रह गए हैं जिस मूल्य पर आलू को खोदकर मंडी तक पहुंचाने का भी खर्च वसूल नहीं होता है. अतएव अपना क्रोध जताने के लिए उन्होंने आलू को सड़कों पर डाल दिया था.
इसी क्रम में कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान में ग्वार की फसल ज्यादा होने से किसानों को भारी घाटा लगा था. लेकिन गन्ना, गेहूं एवं धान की फसल में ऐसी परिस्थिति नहीं आती है. किसान को निर्धारित मूल्य मिलता ही है, कितना भी उत्पादन बढ़ जाए. समर्थन मूल्य के चलते किसानों को गन्ना, गेहूं एवं धान में इस प्रकार के मूल्य की गिरावट का संदेह नहीं रहता है और उन्हें पर्याप्त लाभ मिल जाता है. किसान की खुशहाली में समर्थन मूल्य की अहम भूमिका है.
लेकिन हमारी कृषि सरकारी समर्थन पर खड़ी है न कि बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धा शक्ति पर. जैसे कोई व्यक्ति बैसाखी पर चलता है उसी प्रकार हमारे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान समर्थन मूल्य की बैसाखी पर आश्रित हैं. विदित हो कि इस समर्थन मूल्य का जो भार होता है वह अंतत: आम आदमी पर पड़ता है. सरकार के सामने दोतरफा चुनौती है. समर्थन मूल्य के बावजूद किसानों की आय में वृद्धि कछुआ चाल से हो रही है.
हमें इस मसले पर दूसरी तरह से सोचना पड़ेगा. हमें दूसरे देशों से सबक लेना चाहिए. आज छोटा सा देश नीदरलैंड एक वर्ष में 2500 करोड़ रुपए के केवल ट्यूलिप फूलों का निर्यात करता है. इटली और टय़ूनीशिया जैतून का संपूर्ण विश्व को निर्यात करते हैं. फ्रांस द्वारा विशेष गुणवत्ता के अंगूर का उत्पादन कर उससे शराब बनाकर संपूर्ण विश्व को निर्यात किया जाता है.
अमेरिका से सेब और अखरोट का संपूर्ण विश्व को निर्यात हो रहा है. दक्षिण अमेरिका के पनामा से केले, वियतनाम से काफी और मलेशिया से रबर का भारी मात्ना में निर्यात किया जा रहा है. इन तमाम देशों ने किसी विशेष फसल में अपनी महारत हासिल कर उस फसल के वैश्विक बाजार में अपनी पैठ बना ली है और उस विशेष फसल का निर्यात करके वे भारी रकम कमा रहे हैं. अत: हमें भी ऐसी फसलों की खोज करनी चाहिए जिन पर हम वैश्विक बाजार में अपनी सुदृढ़ पैठ बना सकें.
उन फसलों की गुणवत्ता अन्य सभी देशों की तुलना में अच्छी और दाम कम होने चाहिए जिससे हम प्रतिस्पर्धा में खड़े रह सकें. हमारे देश का सौभाग्य है कि यहां हर प्रकार की जलवायु बारहों माह उपलब्ध रहती है. जैसे सर्दियों में तमिलनाडु और महाराष्ट्र का तापमान कम रहता है तो गर्मी में हिमालयी राज्यों का तापमान कम रहता है. हम संपूर्ण विश्व को बारहों महीने गुलाब, ग्लाइडोलस और ट्यूलिप जैसी फसलें उपलब्ध करा सकते हैं. हमारे पूर्वोत्तर राज्यों में ऑर्किड नाम के फूल होते हैं जिनका संपूर्ण हिमालयी क्षेत्न में उत्पादन किया जा सकता है.
इन फूल की एक छड़ी 5000 रुपए तक में बिकती है. हमारे सामने चुनौती है कि हम अपनी जलवायु की विविधता का लाभ उठाकर ऐसी फसलों पर अपना ध्यान केंद्रित करें जिनका हम पूरे वर्ष भर उत्पादन कर निर्यात कर सकें. तब हम अपने किसानों को ऊंची आय उपलब्ध करा सकेंगे.
आज नीदरलैंड, इटली, फ्रांस और अमेरिका के खेत श्रमिकों को लगभग 8 हजार रुपया प्रतिदिन का वेतन इन्हीं फसलों के उत्पादन में मिल रहा है. हम भी अपने खेत श्रमिकों को 8 हजार रुपए प्रतिदिन की आय उपलब्ध करा सकते हैं, यदि हम इन विशेष फसलों के उत्पादन और निर्यात पर ध्यान दें. जलवायु से धनी भारतवर्ष द्वारा उच्च मूल्य की फसलें उगाकर विश्व बाजार में पैठ बनाई जा सकती है.