पॉलीथिन पर पाबंदी के लिए वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी, पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग

By पंकज चतुर्वेदी | Published: August 27, 2021 02:30 PM2021-08-27T14:30:22+5:302021-08-27T14:31:33+5:30

प्लास्टिक के सामान पर दो चरणों में पाबंदी लगेगी- पहला चरण जनवरी 2022 से शुरू होगा जिसमें प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे और कैंडी स्टिक बंद होंगी.

environmental crisis ban on polythene necessary Campaign seize shops many years Pankaj Chaturvedi's blog | पॉलीथिन पर पाबंदी के लिए वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी, पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग

अभियान में तेजी आई थी लेकिन कोविड की विभीषिका में वह अभियान असफल हो गया.

Highlightsकांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे, रैपिंग, पैकिंग फिल्म्स, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट आदि चीजों के उत्पादन व इस्तेमाल पर पाबंदी लग जाएगी.कई राज्यों की सरकारें गत पांच सालों से प्लास्टिक या पॉलीथिन को हतोत्साहित करने के लिए कार्य कर रही हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ‘एक बार इस्तेमाल वाली’ पॉलीथिन का इस्तेमाल न करने की अपील की.

एक बार फिर उम्मीद जगी है कि देश के लिए लाइलाज नासूर बन रहे सबसे बड़े पर्यावरणीय संकट का निदान हो जाएगा. अगले साल 15 अगस्त 2022 अर्थात स्वतंत्रता दिवस तक पूरे देश में प्रयोग होने वाली प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर नियमों के तहत पाबंदी की घोषणा सरकार ने की है.

 

एक बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक के सामान पर दो चरणों में पाबंदी लगेगी- पहला चरण जनवरी 2022 से शुरू होगा जिसमें प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे और कैंडी स्टिक बंद होंगी और फिर एक जुलाई 2022 से प्लेट, कप, ग्लास, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे, रैपिंग, पैकिंग फिल्म्स, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट आदि चीजों के उत्पादन व इस्तेमाल पर पाबंदी लग जाएगी.

वैसे तो कई राज्यों की सरकारें गत पांच सालों से प्लास्टिक या पॉलीथिन को हतोत्साहित करने के लिए कार्य कर रही हैं. तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ‘एक बार इस्तेमाल वाली’ पॉलीथिन का इस्तेमाल न करने की अपील की तो इस अभियान में तेजी आई थी लेकिन कोविड की विभीषिका में वह अभियान असफल हो गया.

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में कई सालों से दुकानों से पॉलीथिन जब्त करने का अभियान तो चल रहा है, लेकिन हकीकत यही है कि यह अभी जनभागीदारी अभियान नहीं बन पाया है. गाजियाबाद नगर निगम ने तो  भंडारे आदि में डिस्पोजेबल के इस्तेमाल को रोकने के लिए बाकायदा बर्तन बैंक बनाया लेकिन वहां से बर्तन लेने के लिए लोग ही आगे नहीं आए.

तीन साल पहले मध्य प्रदेश सरकार ने भी ‘पन्नी मुक्त’ प्रदेश का अभियान चलाया था लेकिन हाल ही में राज्य के बहुत से शहरों में आई बाढ़ बताती है कि उन इलाकों के सीवर व नालियां असल में पॉलीथिन के चलते जाम थे और थोड़ी सी बरसात में उनके घर-मुहल्ले दरिया बन गए.

देश में कई सौ ऐसे शहर हैं जहां पॉलीथिन पर पाबंदी है परंतु इसके उत्पादन पर तो रोक है नहीं, सो किसी न किसी जरिये से प्लास्टिक कचरे का हमारे शहर-मोहल्लों में अंबार लगता जा रहा है. अब तो धरती, भूजल और यहां तक कि समुद्र के नमक में भी प्लास्टिक के अवगुण घुलने लगे हैं.

इसका असल कारण एक तो जहरीली पन्नियों का उत्पादन बंद नहीं होना और दूसरा उसके उपभोक्ताओं को विकल्प उपलब्ध नहीं होना है. कच्चे तेल के परिशोधन से मिलने वाले डीजल, पेट्रोल आदि के साथ ही पॉलीथिन बनाने का मसाला भी पेट्रो उत्पाद ही है. यह इंसान और जानवर दोनों के लिए जानलेवा है. घटिया पॉलीथिन का प्रयोग सांस और त्वचा संबंधी रोगों तथा कैंसर का खतरा बढ़ाता है.

पॉलीथिन की थैलियां नष्ट नहीं होती हैं और धरती की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर इसे जहरीला बना रही हैं. साथ ही मिट्टी में इनके दबे रहने के कारण मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी कम होती जाती है, जिससे भूजल के स्तर पर असर पड़ता है. फिर भी बाजार से सब्जी लाना हो या पैक दूध या फिर किराना या कपड़े- पॉलीथिन के प्रति लोभ न तो दुकानदार छोड़ पा रहे हैं, न खरीदार.

यदि वास्तव में पॉलीथिन का विकल्प तलाशना है तो पुराने कपड़े के थैले बनवाना एकमात्र विकल्प है.   सबसे बड़ी दिक्कत है दूध, जूस आदि तरल पदार्थो के व्यापार की. इसके लिए एल्युमीनियम या अन्य मिश्रित धातु के खाद्य-पदार्थ के लिए माकूल कंटेनर बनाए जा सकते है. सबसे बड़ी बात यह कि घर से बर्तन ले जाने की आदत फिर से लौट आए तो खाने का स्वाद, उसकी गुणवत्ता दोनों ही बनी रहेगी.

कहने की जरूरत नहीं है कि पॉलीथिन में पैक दूध या गरम करी पॉलीथिन के जहर को भी आपके पेट तक पहुंचाती है. प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बायो प्लास्टिक को बढ़ावा देना चाहिए. बायो प्लास्टिक चीनी, चुकंदर, भुट्टा जैसे जैविक रूप से अपघटित होने वाले पदार्थो के इस्तेमाल से बनाई जाती है.

यहां पर केरल सरकार का एक आदेश गौरतलब है जिसमें सरकारी कार्यालयों में इंक पेन के अलावा अन्य कलम पर पाबंदी लगा दी गई है. सरकार ने देखा कि हर महीने छह लाख से ज्यादा प्लास्टिक के कलम या रिफिल कचरे में शामिल हो रहे हैं.

आदेश को लागू करने से पहले हर कार्यालय में पर्याप्त इंक पेन व स्याही पहुंचाई गई और अब वहां आम लोग भी रिफिल वाले या एक बार इस्तेमाल के बॉल पेन की जगह इंक पेन प्रयोग में ला रहे हैं जो कि कम से कम एक साल तो चलते ही हैं. ठीक इसी तरह जब तक पॉलीथिन के विकल्प से बाजार को संतुष्ट नहीं किया जाता, इस बीमारी से मुक्ति पाना आसान नहीं होगा.

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