Emergency Anniversary: आपातकाल से हमने कितना सीखा है सबक?, 50 साल होने पर संविधान हत्या दिवस मनाया

By राजकुमार सिंह | Updated: June 25, 2025 05:54 IST2025-06-25T05:54:18+5:302025-06-25T05:54:18+5:30

Emergency Anniversary: 1971 में पृथक बांग्लादेश बनवाने पर राजनीतिक विरोधियों द्वारा भी ‘दुर्गा’ के रूप में देखी गईं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ही 1975 में भारत पर आपातकाल थोप दिया.

Emergency Anniversary What Was India’s 1975 Emergency How much have learnt Constitution Assassination Day celebrated completion of 50 years blog raj kumar singh | Emergency Anniversary: आपातकाल से हमने कितना सीखा है सबक?, 50 साल होने पर संविधान हत्या दिवस मनाया

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Highlightsबड़े लोकतंत्र के सुरक्षित भविष्य के लिए और भी ज्यादा जरूरी है. इन 50 सालों में दो नई पीढ़ियां आ गई हैं,आपातकाल की बाबत उतना ही पता है, जितना राजनीतिक दलों ने अपने-अपने एजेंडा के तहत उन्हें बताया है.संजय गांधी को उत्तराधिकारी बना कर लोकतंत्र में भी राजवंश की स्थापना के सपने देखने लगी थीं.

Emergency Anniversary: भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय रहे आपातकाल की घोषणा को 50 साल होने पर संविधान हत्या दिवस मनाया जा रहा है. संविधान प्रदत्त नागरिक अधिकारों समेत कमोबेश लोकतंत्र को ही स्थगित कर देनेवाला आपातकाल दरअसल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में भी पनप सकनेवाली सत्ता-लोलुपता और राजनीतिक विकृतियों की ही देन था. इसलिए उसे याद रखना जरूरी है, पर उससे सही सबक सीखना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सुरक्षित भविष्य के लिए और भी ज्यादा जरूरी है. इन 50 सालों में दो नई पीढ़ियां आ गई हैं,

जिन्हें आपातकाल की बाबत उतना ही पता है, जितना राजनीतिक दलों ने अपने-अपने एजेंडा के तहत उन्हें बताया है. पहला जरूरी सबक तो उन परिस्थितियों से ही सीखना चाहिए, जिनके चलते 1971 में पृथक बांग्लादेश बनवाने पर राजनीतिक विरोधियों द्वारा भी ‘दुर्गा’ के रूप में देखी गईं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ही 1975 में भारत पर आपातकाल थोप दिया.

एकमात्र आधार भले न रहा हो, पर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बेटी होना बड़ा कारण रहा. 1969 में कांग्रेस विभाजन के बाद 1971 की चुनावी जीत से पार्टी और सत्ता में वर्चस्व स्थापित कर चुकीं इंदिरा छोटे बेटे संजय गांधी को उत्तराधिकारी बना कर लोकतंत्र में भी राजवंश की स्थापना के सपने देखने लगी थीं.

संजय गांधी संविधानेतर सत्ता-केंद्र बन गए थे. सत्ता-राजनीति में तेज दौड़ने की लालसा से युवा कांग्रेसी तो बेटे के जरिये मां को खुश करने के लिए कुछ बुजुर्ग कांग्रेसी उनके दरबार में हाजिरी लगाने लगे थे, जिनको ले कर बाद में आपातकाल और फिर 1977 के आम चुनाव के दौरान नारे भी सुनाई पड़े.

25-26 जून की दरम्यानी रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर से देश में आपातकाल घोषित किया गया था. आधी रात से ही विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं तो देश की राजधानी दिल्ली में अखबारों के दफ्तरों की बिजली तक काट दी गई. असहमति के तमाम स्वरों को दबाते हुए देश में ‘इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा’ जैसे नारे लगने लगे.

21 महीने चले आपातकालीन दमनचक्र के किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं. इसीलिए ‘लोकनायक’ जयप्रकाश की अगुवाई में ‘संपूर्ण क्रांति’ के रूप में 21 महीने चले संघर्ष के बाद मार्च, 1977 में हुए आम चुनाव में नवगठित विपक्षी दल जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत को दूसरी आजादी का नाम दिया गया.

आपातकाल का जन्म लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री की ही लोकतंत्र में घटती आस्था और बढ़ती सत्ता लोलुपता से पनपते वंशवाद से हुआ था. बेहद लोकप्रिय राजनेता और सख्ता प्रशासक रहीं इंदिरा को सत्ता और पुत्र के मोह ने ही तानाशाह बनने को प्रेरित किया था, पर विडंबना देखिए कि दूसरी आजादी के जरिये बनी सरकार आपातकाल जितने समय ही चल पाई.

जिस तरह 1947 में देश आजाद होते ही कांग्रेसियों में सत्ता-संघर्ष छिड़ गया था और महात्मा गांधी तक की किसी ने नहीं सुनी, उसी तरह सत्ता-संघर्ष में उलझे जनता पार्टी के क्षत्रपों ने भी बीमार जेपी की एक नहीं सुनी. नतीजतन जनवरी, 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में ही इंदिरा गांधी ने सत्ता में जोरदार वापसी कर ली. दरअसल अहमन्यता, सत्ता लोलुपता और वंशवादी सोच मूलत: अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है, पर हमारे राजनेता इसे समझने को तैयार नहीं हैं.

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