Elections 2023- 2024: प्रधानमंत्री मोदी ही संदेश हैं, संदेशवाहक भी और माध्यम भी, जातीय राजनीति की देन नहीं हैं नए मुख्यमंत्री
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 22, 2023 12:39 PM2023-12-22T12:39:40+5:302023-12-22T12:41:13+5:30
Elections 2023- 2024: राजनीतिक भविष्यवक्ता या मीडिया विशेषज्ञ ने दूर-दूर तक अनुमान नहीं लगाया था कि विधानसभा चुनावों में मोदी की लहर के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नए ‘सीईओ’ कौन होंगे.
Elections 2023- 2024: यह नई राजनीति का ‘नमोस्ते’ है. इस राजनीति का संदेश मीडिया को समझ में नहीं आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही संदेश हैं, संदेशवाहक भी हैं और माध्यम भी, एक में ही सभी समाहित है.
किसी भी राजनीतिक भविष्यवक्ता या मीडिया विशेषज्ञ ने दूर-दूर तक अनुमान नहीं लगाया था कि विधानसभा चुनावों में मोदी की लहर के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नए ‘सीईओ’ कौन होंगे. एक बार जब त्रिमूर्ति के नाम स्क्रीन पर चमकने लगे, तो सैकड़ों पत्रकारों ने तीनों नए मुख्यमंत्रियों के गुणों की तलाश की.
उनकी सबसे स्पष्ट विशेषता यह है कि तीनों का चयन मोदी ने किया है. राजस्थान के पहली बार के विधायक भजन लाल शर्मा, मध्य प्रदेश के तीन बार के विधायक मोहन यादव और छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्य पार्टी प्रमुख विष्णुदेव साय के बीच समानता यह है कि संघ की विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है.
इन तीनों को सुर्खियों में लाकर मोदी ने मीडिया पंडितों को भरपूर मसाला प्रदान किया. बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित जाति, क्षेत्र और संघ से जुड़ाव जैसे कारकों का उपयोग करके निर्णय का विश्लेषण करने लगे. निस्संदेह, 2024 के चुनावों में इनकी प्रासंगिकता है लेकिन सत्ता में आए इन नए चेहरों का परिचय कुछ और ही कहानी कहता है.
क्या मोदी ने जातीय गणित का इस्तेमाल किया है? इस सवाल का जवाब ‘नहीं’ है. पिछले नौ वर्षों में कैबिनेट मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों का उनका चयन कई बार चकित करता रहा है. मोदी की अपनी मंडली में पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों की तलाश सफलतापूर्वक जारी है. छत्तीसगढ़ के लिए आदिवासी नेता विष्णुदेव साय का चयन आदिवासी क्षेत्र से प्राप्त भाजपा के भारी चुनावी लाभ से प्रभावित था.
जिसके बारे में प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि यह 2024 में भी जारी रहेगा. छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 29 सीटों में से भाजपा ने इस बार 17 सीटें जीतीं, जबकि 2018 में सिर्फ तीन सीटें जीती थीं. 15 साल तक राज्य पर शासन करने वाले रमन सिंह के बाद इतने बड़े नेता की जगह लेने के लिए साय के अलावा कोई नहीं था.
राजस्थान में पहली बार विधायक बने ब्राह्मण भजन लाल शर्मा दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी की पसंद थे. चूंकि राजस्थान भाजपा गुटों में बंटी हुई है, इसलिए मोदी ने साफ-सुथरे ट्रैक रिकॉर्ड वाले पिछली पंक्ति के नेता को चुना. उन्होंने शक्तिशाली गुर्जरों, मीणाओं और जाटों के दावों की उपेक्षा करते हुए एक सोचा-समझा जोखिम उठाया है.
जिनकी जीती गई 115 सीटों में से एक तिहाई से अधिक सीटें हैं. मध्य प्रदेश में, 58 वर्षीय मोहन यादव मुख्यमंत्री बने क्योंकि वह तीन बार के गुट-निरपेक्ष विधायक हैं. संख्याबल के खेल में, अगले साल लोकसभा चुनाव में यादव शायद ही कोई महत्वपूर्ण कारक हों. राजस्थान में ब्राह्मण भी कोई खास महत्वपूर्ण नहीं हैं.
ये तीनों नए मुख्यमंत्री कट्टर हिंदुत्ववादी हैं, जिन्होंने आरएसएस के माध्यम से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की है. मोदी की उपमुख्यमंत्रियों की पसंद में भी जाति महज एक संयोग थी. नए छह उपमुख्यमंत्रियों में से केवल दो ब्राह्मण हैं: मध्य प्रदेश में राजेंद्र शुक्ला और छत्तीसगढ़ में विजय शर्मा. बाकी चार अलग-अलग समुदाय से हैं.
इससे पता चलता है कि मोदी जाति की दीवारें तोड़ने के फॉर्मूले को ध्यान में रखकर फैसले लेते हैं. यह प्रक्रिया महाराष्ट्र और हरियाणा से शुरू हुई थी. नागपुर के एक युवा ब्राह्मण देवेंद्र फड़नवीस को मराठा बहुल महाराष्ट्र को चलाने के लिए मुख्यमंत्री चुना गया था. हरियाणा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे पंजाबी व्यक्ति मनोहरलाल खट्टर पहली बार विधायक होने के बावजूद मुख्यमंत्री बने.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जब विधायक नहीं थे तब भी मुख्यमंत्री पद के लिए आखिरी समय में उनका नाम सामने आया. आनंदीबेन पटेल को उत्तरप्रदेश का राज्यपाल बनाने के बाद गुजरात में उनकी जगह किसी अन्य पटेल को नहीं, बल्कि जैन विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया. वर्तमान में भाजपा के 12 मुख्यमंत्री हैं और उनके पीछे कहीं भी जाति का रंग नहीं है.
एक ब्राह्मण, दो ओबीसी, एक अनुसूचित जनजाति से और बाकी उच्च जाति से हैं. तीन नए मुख्यमंत्रियों के चयन से इतना तो स्पष्ट है कि भाजपा अब भविष्य में संबंधित क्षेत्र के संघ से जुड़े श्रेष्ठ स्थानीय नेताओं को आगे लाएगी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाएगी.
राज्य पर्यवेक्षकों की पसंद और दिल्ली में सीमित गुप्त बातचीत से संकेत मिलता है कि राज्य के नेताओं की अपना सीएम चुनने में बहुत कम हिस्सेदारी थी. बैठक से ठीक पहले दिल्ली से पर्यवेक्षक राज्यों की राजधानियों में पहुंचे. पुरानी भाजपा में, इसका संसदीय बोर्ड पर्यवेक्षकों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री चुनने के लिए बैठक करता था.
इस बार ऐसी कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई; पर्यवेक्षकों ने प्रधानमंत्री द्वारा चुने गए नाम वाला एक सीलबंद लिफाफा ले लिया, जिसे अंतिम समय में खोला जाना था.केंद्रीय पर्यवेक्षकों के चयन से यह स्पष्ट हो गया कि उन्हें नामों के बारे में पहले ही जानकारी दे दी गई थी.
मोदी ने यह काम केवल अपने वफादार समर्थकों को ही सौंपा था: मध्य प्रदेश के लिए खट्टर, राजस्थान के लिए राजनाथ सिंह और छत्तीसगढ़ के लिए अर्जुन मुंडा. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, आदिवासी नेता मुंडा, एक अन्य आदिवासी को मुख्यमंत्री के रूप में सम्मानित करने के लिए छत्तीसगढ़ गए. बेहद लोकप्रिय शिवराज सिंह चौहान की भावनाओं को शांत करने के लिए खट्टर को लगाया गया था.
राजपूत दिग्गज और पूर्व भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को ठाकुरों और राजघरानों के प्रभुत्व वाले सामंती राज्य में एक नया, अपरंपरागत चेहरा सामने लाने का काम सौंपा गया था. क्या 2024 में भाजपा में ये नई व्यवस्था काम आएगी? इसकी संभावना बहुत कम है. 2014 और 2019 दोनों राष्ट्रीय चुनाव राज्य के क्षत्रपों द्वारा नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी के जबरदस्त करिश्मे द्वारा जीते गए थे.
2018 में भाजपा तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हार गई थी. फिर भी, मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में इन राज्यों से 65 में से 62 सीटें हासिल कीं. मोदी राज्यों के मामलों पर काफी ध्यान देते हैं. उनका एजेंडा ‘एक राष्ट्र, एक नेता’ है और उद्देश्य ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ सुनिश्चित करना है.
मोदी भाजपा के जाति-तटस्थ शुभंकर हैं और शीघ्रता से अप्रत्याशित निर्णय लेना उनकी विशेषता है. इस तरह की सोच-समझकर चली गई चालों से ही प्रधानमंत्री अपनी पार्टी पर मजबूत नियंत्रण रखने वाले कुशल रणनीतिकार साबित हुए हैं.