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ब्लॉग: चुनाव आयोग की गुजरात पहेली...आखिर क्यों नहीं हुआ हिमाचल प्रदेश के साथ तारीखों का ऐलान?

By हरीश गुप्ता | Updated: October 27, 2022 08:37 IST

निर्वाचन आयोग ने हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों की घोषणा तो कर दी लेकिन गुजरात के लिए मतदान की तारीखों को लेकर चुप्पी साध रखी है.

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बुरी तरह मात खाने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है. शायद, वह सोच रही हैं कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के खिलाफ महंगाई और सत्ता विरोधी लहर का लाभ उन्हें मिल सकता है. कांग्रेस ने निर्णायक भूमिका निभाने वाले सरकारी कर्मचारियों को लुभाने के लिए पुरानी पेंशन योजना को पुनर्जीवित करने का वादा किया है. 

भारतीय जनता पार्टी आलाकमान ने ठाकुर को बनाए रखने का फैसला किया है. यह याद रखना चाहिए कि उत्तराखंड में भाजपा ने छह महीने के भीतर तीन बार मुख्यमंत्री बदले थे और इसका उसे भारी मुनाफा भी हुआ था, कांग्रेस को यहां धूल चाटनी पड़ी थी. हिमाचल प्रदेश के लिए, भाजपा ने घोषणा कर दी है कि यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. कांग्रेस के अभियान ने यहां अब तक गति नहीं पकड़ी है क्योंकि राहुल गांधी दक्षिणी राज्यों में अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में व्यस्त हैं. 

सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे को बागडोर सौंपने के बाद अब शांति से बैठने का फैसला किया है. प्रियंका गांधी के हिमाचल प्रदेश के चुनावी मैदान में उतरने के निर्णय को चुनावी विश्लेषक एक जोखिम भरा फैसला मानते हैं. कांग्रेस का कोई भी दमदार केंद्रीय नेता हिमाचल में प्रचार करता नहीं दिख रहा है. वहीं दूसरी ओर, भाजपा ने प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह, जेपी नड्डा और अन्य वरिष्ठ नेताओं सहित अपनी पूरी मशीनरी को झोंक दिया है. 

पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन को लेकर पिछले दो महीनों में तीन आंतरिक सर्वेक्षण करवाए हैं. पंजाब में प्रियंका ने अपनी हैसियत दिखाते हुए नवजोत सिंह सिद्धू या राजस्थान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी देने का वादा किया था. उनका यह प्रयोग बुरी तरह विफल साबित हुआ. हिमाचल से उनका एकमात्र संबंध यह है कि वह वहां की एक जमीन की मालकिन हैं. क्या उनका यह दांव सफल होगा. लोगों को संदेह है.

चुनाव आयोग की गुजरात पहेली

प्रधानमंत्री मोदी पांच साल में एक बार लोकसभा, विधानसभाओं और अन्य निर्वाचित निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की वकालत करते रहे हैं. यह अलग बात है कि सरकार या चुनाव आयोग या किसी अन्य संस्था द्वारा कोई इस दिशा में कोई औपचारिक कदम नहीं उठाया गया. अब तो नरेंद्र मोदी ने भी इसके बारे में बात करना बंद कर दिया है. सत्तारूढ़ भाजपा को शायद यह एहसास हो गया होगा कि एक साथ चुनाव कराने से उसकी चुनावी संभावनाएं बढ़ने वाली नहीं हैं. लेकिन चुनाव आयोग ने इस समय एक असाधारण कदम उठाया है. 

उसने हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों की घोषणा तो कर दी लेकिन गुजरात के लिए मतदान की तारीखों को लेकर चुप्पी साध रखी है. इससे पहले, चुनाव आयोग, इन दोनों राज्यों में एक साथ चुनाव की तारीखों की घोषणा करता रहा है और उसी दिन आदर्श आचार संहिता भी लागू होती रही है. अगर दो या दो से अधिक राज्यों में छह महीने के भीतर चुनाव होते हैं तो चुनाव आयोग को इन राज्यों में एकसाथ तारीखें घोषित करने का अधिकार है. 

हिमाचल और गुजरात के मामले में, यह अंतर एक महीने से भी कम था और चुनाव आयोग से पिछले उदाहरणों और मानदंडों का पालन करने की उम्मीद की गई थी.

भाजपा इस अवसर का लाभ उठा रही है. क्योंकि गुजरात में फिलहाल आचार संहिता लागू नहीं है और मतदाताओं को लुभाने के लिए अनेक घोषणाएं की जा रही हैंं. प्रधानमंत्री ने 17 अक्तूबर को 50 लाख प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना-मां अमृतम (पीएमजेएवाई-एमए) योजना के तहत आयुष्मान कार्ड बांटते हुए कहा, ‘‘50 लाख परिवारों के लिए आयुष्मान कार्ड 5 लाख रुपए का एटीएम है. यह एक ऐसा एटीएम कार्ड है जो हर साल मुफ्त इलाज का लाभ देता रहेगा.’’ 

जब से आम आदमी पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में मुफ्त पानी और बिजली और सभी वयस्क महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपए देने की घोषणा की तब से भाजपा को केजरीवाल की घोषणाओं का मुकाबला करने के लिए समय चाहिए था. गुजरात सरकार ने घोषणा की कि हर घर को हर साल दो गैस सिलेंडर मुफ्त मिलेंगे. इसके अलावा, सीएनजी और पीएनजी की दरों में 6 रुपए और 7 रुपए प्रति यूनिट की कटौती की गई. 

लगभग एक लाख करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शुभारंभ करने के लिए प्रधानमंत्री केवल अक्टूबर में ही तीन बार गुजरात की यात्रा कर चुके हैं. अमूल डेयरी ने कहा कि दूध की दरों में दो रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी गुजरात में लागू नहीं होगी. यह एक असामान्य घोषणा है.

राज्यसभा में विपक्ष का नेता कौन होगा

नए कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर संभालने के साथ अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे के स्थान पर राज्यसभा में विपक्ष का नया नेता कौन होगा. लोकसभा में भी कांग्रेस को एक उपनेता नियुक्त करना होगा. यह तर्क दिया जा रहा है कि राज्यसभा में विपक्ष का नेता उत्तर भारत से होना चाहिए, क्योंकि इस क्षेत्र से प्रमुख पदों का प्रतिनिधित्व नहीं है. 

लोकसभा में कांग्रेस के नेता पश्चिम बंगाल (अधीररंजन चौधरी) से हैं और पार्टी अध्यक्ष कर्नाटक से हैं. पी. चिदंबरम (तमिलनाडु) और जयराम रमेश (कर्नाटक) दक्षिणी राज्यों से हैं. 

इसलिए राज्यसभा में विपक्ष का नेता हिंदी भाषी क्षेत्र से होना चाहिए, ऐसा तर्क दिया जा रहा है. ऐसी खबरें हैं कि प्रियंका गांधी चाहती हैं कि उनके समर्थक प्रमोद तिवारी को इस पद पर नियुक्त किया जाए, जबकि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के प्रभारी दिग्विजय सिंह के पक्ष में हैं. इसी तरह लोकसभा में भी उपनेता पद के लिए शशि थरूर और मनीष तिवारी के बीच मुकाबला है. दिलचस्प बात यह है कि खड़गे नहीं, बल्कि सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष की हैसियत से ये नामांकन करेंगी.

 

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