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ब्लॉग: निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों पर लगाम कसी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 26, 2024 09:41 IST

आचार संहिता लागू करवाने के लिए चुनाव आयोग अपनी ओर से हरसंभव प्रयास करता है लेकिन उसे राजनेताओं, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं तथा प्रत्याशियों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता।

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ठळक मुद्देअनैतिक तरीकों के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए आदर्श आचार संहिता लागू की जाती हैआचार संहिता लागू करवाने के लिए चुनाव आयोग अपनी ओर से हरसंभव प्रयास करता हैजैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ता जा रहा है प्रासंगिक मुद्दे गौण या लुप्त होते जा रहे हैं

मौजूदा लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के बीच केंद्रीय चुनाव आयोग पर कार्रवाई करने में सुस्ती या पक्षपात बरतने के आरोप भी खूब लग रहे हैं। गुरुवार को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर सख्त तेवर अपनाकर चुनाव आयोग ने अपने आलोचकों को करारा जवाब देने के साथ-साथ यह स्पष्ट कर दिया है कि वह सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष करवाने के लिए प्रतिबद्ध है और आचार संहिता का उल्लंघन करने पर किसी को भी नहीं बख्शेगा। 

गुरुवार को चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन पर प्रधानमंत्री के खिलाफ विपक्षी दलों की शिकायतों का संज्ञान लिया. उसने विपक्ष पर भी रहम नहीं किया तथा उसके नेताओं के विरुद्ध शिकायतों पर भी जवाब-तलब किया है। हमारे देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा निर्भीक चुनाव करवाने, सत्ता के दुरुपयोग के किसी भी प्रयास को रोकने, राजनेताओं के आचरण को मर्यादित रखने एवं अनैतिक तरीकों के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है।  इसके तहत चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को किसी भी प्रकार का प्रलोभन देने, धर्म, संप्रदाय, भाषा, जाति के नाम पर वोट मांगने, किसी का चरित्र हनन करने,  सांप्रदायिक या धार्मिक भावनाएं भड़काकर वोट मांगने, सरकारी स्तर पर नई योजनाओं की घोषणा करने पर रोक लगाई जाती है। 

आचार संहिता लागू करवाने के लिए चुनाव आयोग अपनी ओर से हरसंभव प्रयास करता है लेकिन उसे राजनेताओं, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं तथा प्रत्याशियों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता। वे खुद आचार संहिता का खुला उल्लंघन करते हैं और दूसरे पर उंगली उठाने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं. ताजा लोकसभा चुनाव में दुर्भाग्य से राष्ट्र तथा आम जनता के हितों से जुड़े मसलों की चर्चा दिग्गज नेता कम कर रहे हैं। जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ता जा रहा है प्रासंगिक मुद्दे गौण या लुप्त होते जा रहे हैं। 

तमाम राजनीतिक दलों की पूरी ताकत मतदाताओं को उचित-अनुचित तरीकों से लुभाने, व्यक्तिगत हमले करने, धर्म, जाति तथा संप्रदाय के नाम पर ध्रुवीकरण पर लगी है। उन्हें इस बात की जरा भी चिंता नहीं है कि इससे देश का कितना अहित होगा तथा लोकतंत्र की जड़ें कितनी कमजोर होती चली जाएंगी लेकिन चुनाव आयोग के रवैये की सराहना करनी होगी। उसने मतदान के दूसरे चरण के पहले ही अपने सख्त रवैये का परिचय दिया है। यह देश के संसदीय इतिहास में संभवत: पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री के विरुद्ध आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों का संज्ञान लेकर निर्वाचन आयोग ने सत्तारूढ़ दल से जवाब-तलब किया है। 

चुनाव आयोग ने भाजपा से विपक्षी दलों की उस शिकायत पर जवाब मांगा है जिसमें प्रधानमंत्री पर राजस्थान के बांसवाड़ा में कथित रूप से आदर्श आचार संहिता की सीमा तोड़कर भाषण देने का आरोप लगाया गया है। आयोग ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के विरुद्ध शिकायत पर भी सबसे बड़े विपक्षी दल से सफाई देने को कहा है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि अपने नेताओं के आचरण तथा बयानों की मर्यादा की जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके नेता राजनीतिक विमर्श के उच्च मानकों तथा आदर्श आचार संहिता का अक्षरश: पालन करें। 

यह सच है कि भारत में चुनाव के दौरान प्रत्येक दल जातिगत तथा धार्मिक समीकरणों को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों का चयन करता है। वे इस गलतफहमी में रहते हैं कि मतदाता धर्म और जाति के नाम पर मतदान करते हैं। यह तथ्य कुछ अंश तक सही हो सकता है लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जा रहा है, मतदाता जागरूक होता जा रहा है। वह अपने वोट की कीमत समझने लगा है और राष्ट्रहित के व्यापक नजरिये को सामने रखकर मतदान करने लगा है। चुनाव प्रक्रिया को पवित्र तथा निष्पक्ष रखना सिर्फ चुनाव आयोग की ही नहीं, सभी राजनीतिक दलों के साथ-साथ सजग मतदाता की भी जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग के ताजा रुख से उम्मीद बंधी है कि चुनाव के अगले चरणों में मुद्दों पर आधारित प्रचार देखने को मिलेगा।

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