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कोरोना महामारी के बीच संक्रमण के दौर में शिक्षा, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: June 29, 2021 16:32 IST

नई शिक्षा नीति के प्रावधान इक्कीसवीं सदी में  भारतीय  शिक्षा की उड़ान के लिए पंख  सदृश  कहे जा सकते हैं परन्तु सब पर (अल्प!) विराम लग गया है.

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ठळक मुद्देकोविड के बाध्यकारी दबाव के परिणाम तात्कालिक रूप से बाधक हैं.जहां ये साधन नहीं थे वहां औपचारिक पढ़ाई लगभग बंद सी हो गई थी. इस महामारी के बीच विद्यालय की अवधारणा ही बदल गई.

कोरोना महामारी का भारत के सामाजिक जीवन और व्यवस्था पर  सबसे गहन और व्यापक प्रभाव देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन को ले कर दिख रहा है जो मानव संसाधन के निर्माण के साथ ही युवा भारत की सामथ्र्य और देश के भविष्य से भी जुड़ा हुआ है.

देश ने बहुत दिनों बाद शिक्षा में सुधार का व्यापक संकल्प लिया था और उसकी रूपरेखा बनाई थी. उसके कार्यान्वयन में अतिरिक्त विलंब हो रहा है. नई शिक्षा नीति के प्रावधान इक्कीसवीं सदी में  भारतीय  शिक्षा की उड़ान के लिए पंख  सदृश  कहे जा सकते हैं परन्तु सब पर (अल्प!) विराम लग गया है.

कोविड के बाध्यकारी दबाव के परिणाम तात्कालिक रूप से बाधक हैं पर उसके कुछ पहलू तो अनिवार्य रूप से दूरगामी असर डालेंगे. बचाव और स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से तात्कालिक कदम के रूप में  शैक्षिक संस्थानों को प्रत्यक्ष भौतिक संचालन से  मना कर दिया गया और कक्षा  की पढ़ाई और परीक्षा जहां भी संभव था, आभासी (वर्चुअल) माध्यम से शुरू की गई.

जहां ये साधन नहीं थे वहां औपचारिक पढ़ाई लगभग बंद सी हो गई थी. इस व्यवधान के चलते आए बदलाव को हुए अब   डेढ़ साल के करीब होने को आए. स्वाभाविक रूप से बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए शिक्षा केंद्र में विद्यार्थी की भौतिक उपस्थिति विविध प्रकार के सीखने के अवसर और चुनौतियां  देती रहती है जो उसके समग्र विकास के लिए बेहद जरूरी खुराक होती है.

परंतु इस महामारी के बीच विद्यालय की अवधारणा ही बदल गई. बहुत से विद्यार्थी ऑनलाइन प्रवेश, ऑनलाइन शिक्षा और ऑनलाइन परीक्षा से गुजरने को बाध्य हो गए. लैपटॉप और मोबाइल के उपयोग की अनिवार्यता ने सभी लोगों के अनुभव जगत को बदल डाला है. इसी बहाने आई सोशल मीडिया की बाढ़ ने समय-कुसमय का ध्यान दिए बिना, वांछित और अवांछित हर किस्म का हस्तक्षेप शुरू किया है.

ऐसे में अपरिपक्व बुद्धि वाले छोटे बच्चों की जिंदगी में सोशल मीडिया के अबाध प्रवेश  पर रोक लगा पाना अब माता-पिता के लिए पहेली बन रहा है. उपर्युक्त  माहौल में शिक्षा की  जो भी और जैसी भी परिभाषा, उसका सुपरिचित ढांचा और स्वीकृत  प्रक्रि या थी, बदल गई. साथ ही प्राइमरी से उच्च शिक्षा तक की कक्षाओं के लिए नई ऑनलाइन प्रणाली के लिए हम पहले से तैयार न थे.

यह तकनीकी बदलाव सिर्फ डिलीवरी के तरीके से ही नहीं जुड़ा है बल्कि दुनिया और खुद से जुड़ने और अनुभव करने के नजरिये से भी जुड़ा हुआ है. नई शिक्षानीति प्रकट रूप से सामान्य हालत में भी ऑनलाइन पाठ्यक्रम के उपयोग को बढ़ावा देती है और अपेक्षा करती है कि विद्यार्थी कुछ सीमित संख्या में अपनी रुचि के पाठ्यक्रम की दूसरी संस्थाओं से भी ऑनलाइन पढ़ाई जरूर करे.

प्रस्तावित शिक्षा नीति इस अर्थ में लचीली है कि  छात्न-छात्नाओं को अपनी रुचि, प्रतिभा और सर्जनात्मकता को निखारने का अवसर मिल सकेगा. इस तरह की पढ़ाई से मिलने वाली क्रेडिट स्वीकार्य होगी और डिग्री की पात्नता से जुड़ जाएगी. देखना है कि नई शिक्षानीति का मसौदा कार्य रूप में  किस तरह व्यावहारिक धरातल पर उतरता है.

इसके लिए सबसे जरूरी है कि शिक्षा की आधार-संरचना में निवेश किया जाए और अध्यापकों की भर्ती और विद्यालयों को जरूरी सुविधाओं से लैस किया जाए.  कोरोना के आतंक ने शिक्षा में जो दखल दिया है उसने शिक्षा की पूरी प्रक्रि या को हिला दिया है.

उसने बोर्ड की परीक्षाओं की पुरानी प्रणाली को भी ध्वस्त कर दिया है और फौरी तौर पर विगत वर्षो में मिले अंकों की सहायता से एक फार्मूला बनाया गया है जो मूल्यांकन का एक काम चलाऊ नुस्खा है. हमारा समाज अभी भी शिक्षा के महत्व को देखने समझने की जरूरत को तरजीह नहीं दे पा रहा है.

शिक्षा उसकी वरीयता सूची से अभी भी बाहर ही है. आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी के पुनराविष्कार के लक्ष्य शिक्षा को समुन्नत किए बिना कोई अर्थ नहीं रखते. यदि इन्हें  सार्थक बनाना है तो हमें शिक्षा के प्रति उदासीनता के भाव से उबरना होगा. शिक्षा एक अवसर है जिसकी उपेक्षा करना आत्मघाती होगा.

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