संपादकीय: चुनाव का मौसम आनेवाला है, बहारें तो आएंगी ही!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 29, 2018 04:35 AM2018-12-29T04:35:41+5:302018-12-29T04:35:41+5:30
तो खुश होइए कि देश में चुनाव का मौसम आ गया है और बहारें आनी शुरू हो गई हैं. एक-दो महीने में जितना लूट सकें लूट लीजिए, बाकी तो फिर पांच साल तक रोना ही है!
चुनावों का मौसम नजदीक आते ही लोगों के अच्छे दिन आने शुरू हो गए हैं. महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी और अर्धसरकारी कर्मचारियों के लिए सातवां वेतन आयोग एक जनवरी से लागू करने का निर्णय लिया है. इसके पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में नवनिर्वाचित सरकारें किसानों की कजर्माफी का ऐलान कर चुकी हैं. उधर दिल्ली से भी खबर आ रही है कि सरकार किसानों के लिए कुछ करने की योजना बना रही है.
अगले कुछ दिनों में चुनावी आचार संहिता लागू होने के पहले जनता के लिए सरकार के पिटारे से और भी बहुत कुछ निकलने की उम्मीद है. यह सब चुनावी मौसम का कमाल है. कुछ लोगों की शिकायत रहती है कि चुनावों में देश का बहुत सारा पैसा बर्बाद होता है और सभी राज्यों की विधानसभाओं व संसद के चुनाव एक साथ हों तो देश का काफी पैसा बचेगा. लेकिन चुनावी मौसम की बहार को देखते हुए क्या ऐसा नहीं लगता कि हर समय यह मौसम बना रहना चाहिए!
कम से कम इसी बहाने जनता को कुछ मिलता तो है! विकास कार्यो के लिए जो सरकारें पांच साल तक धन की कमी का रोना रोती हैं, चुनाव नजदीक आते ही वे जनता की भलाई के लिए अपना खजाना खोल देती हैं. कुछ दिन पहले ही उड़ती-उड़ती खबर आई थी कि नोटबंदी के बाद लगभग पूरा का पूरा पैसा वापस आ जाने से रिजर्व बैंक के खजाने में जो बाढ़ आई है, उसमें से सरप्लस के ढाई-तीन लाख करोड़ रु. सरकार लोक-लुभावन योजनाओं के लिए हासिल करना चाहती है. वह तो रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उजिर्त पटेल उसकी राह की बाधा बन गए और अपना इस्तीफा देकर भी उन्होंने सरकार की दाल नहीं गलने दी, वरना जनता तो अब तक मालामाल हो जाती!
राजनीतिक दलों को अगर सिर्फ पांच साल के लिए ही सत्ता मिलनी है तो वे उसके आगे की चिंता क्यों करें! दीर्घावधि में देश भले ही कंगाल हो जाए, उन्हें तो अपने वर्तमान की चिंता करनी है! तो खुश होइए कि देश में चुनाव का मौसम आ गया है और बहारें आनी शुरू हो गई हैं. एक-दो महीने में जितना लूट सकें लूट लीजिए, बाकी तो फिर पांच साल तक रोना ही है!