पुलवामा हमले के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बड़ा फैसला लेते हुए अलगाववादी नेताओं को मिली सरकारी सुरक्षा वापस ले ली. अब ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक, शब्बीर शाह, हाशिम कुरैशी, बिलाल लोन, फजल हक कुरैशी, अब्दुल गनी बट और कुछ अन्य अपनी सुरक्षा खुद करेंगे. यह माना जाता है कि जम्मू-कश्मीर में कुछ लोगों के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों से रिश्ते हैं.
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने घाटी दौरे के दौरान सुरक्षा की समीक्षा कर इस संबंध में आदेश दिया था. दरअसल अलगाववादी हमेशा से ही शक के दायरे में रहे हैं. आए दिन उनकी गतिविधियों के चलते सरकार को कुछ न कुछ कदम उठाना ही पड़ रहा था. बीते दिनों में घाटी के कुछ नेताओं के आर्थिक आधारों पर भी कार्रवाई हुई थी. ताजा घटना के बाद केंद्र और राज्य सरकार कश्मीर घाटी के उस हर व्यक्ति को कड़ा संदेश देना चाह रही है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन करता है. यह भी बार-बार सिद्ध हो चुका है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद के शरणदाता बड़ी संख्या में हैं. कुछ रसद पहुंचाने वाले भी हैं. मगर राजनीति की आड़ या फिर कथित रूप से कश्मीरी जनता के पैरोकार बनकर कुछ नेता अपनी विध्वंसक गतिविधियों पर परदा डाले रखते हैं.
सरकार ने ताजा मौके को हाथ से न जाने देते हुए अलगाववादियों की सुरक्षा को हटाकर एक तरह से पाकिस्तान समर्थकों को कड़ा संदेश दे दिया है. यह पाकिस्तानी सलाहकारों और सहानुभूति रखने वालों के लिए भी जरूरी था. पुलवामा हमले के बाद हालात स्पष्ट रूप से बिगड़े हैं और बिना सख्ती के उन पर नियंत्रण संभव नहीं है. सीमा पर सेना अपना मोर्चा संभाल रही है, किंतु स्थानीय प्रशासन के लिए गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी है. चूंकि निर्णायक लड़ाई की ओर कदम बढ़ाने की बात कही जा रही है तो ऐसे में आगे भी नरमी से बचना होगा. तभी ताजा कार्रवाइयों के कुछ मायने रह पाएंगे. वर्ना अलगाववादी ताकतें देश के ही संरक्षण में देश को आंखें दिखाती रहेंगी.