संपादकीय: बढ़ते जलसंकट के साथ बढ़ती लापरवाही

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 29, 2019 08:42 PM2019-04-29T20:42:56+5:302019-04-29T20:42:56+5:30

यूं तो बरसात कम-ज्यादा हमेशा होती है, मगर जल संरक्षण के नाम पर हुए कामों से कोई ठोस परिवर्तन दिखाई नहीं देता है। यदि कुछ दावे किए भी जाते हैं तो ऐसा भी नहीं होता कि गर्मी में कहीं तो बरसात का बचा पानी दिख जाए।

Editorial: Increasing negligence with increasing water scarcity | संपादकीय: बढ़ते जलसंकट के साथ बढ़ती लापरवाही

संपादकीय: बढ़ते जलसंकट के साथ बढ़ती लापरवाही

भारत समेत दुनिया के अनेक इलाकों में जलसंकट आम है। यह बात इतनी सामान्य हो चली है कि राजनीतिक पार्टियां या सरकार को भी इसकी तरफ ध्यान देने की जरूरत समझ में नहीं आती है। सभी के लिए यह एक औपचारिकता है। यही वजह है कि हर साल जल समस्या का अलग रूप दिखता है। 

यूं तो बरसात कम-ज्यादा हमेशा होती है, मगर जल संरक्षण के नाम पर हुए कामों से कोई ठोस परिवर्तन दिखाई नहीं देता है। यदि कुछ दावे किए भी जाते हैं तो ऐसा भी नहीं होता कि गर्मी में कहीं तो बरसात का बचा पानी दिख जाए। हालांकि पानी की समस्या का शहर और ग्रामीण भागों में कोई अंतर नहीं है। ग्रामीण भागों में फिर भी कहीं-कहीं जीवित पुराने जलस्नेत हैं, लेकिन शहरी भाग में वे ढूंढने से भी नहीं मिल पाते हैं। यही वजह कि शहरी भागों में पानी का मुख्य जरिया टैंकर आसपास के गांवों से ही पानी लाते हैं। यदि जलस्नेतों पर ध्यान दिया जाए तो कुएं, तालाब, बावड़ी, बांध, नहर और नदी जैसे जल एकत्रीकरण के स्थान दिखते हैं।

पिछले कुछ सालों से देश की अधिकांश नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह में कमी हो रही है, छोटी नदियां तेजी से सूख रही हैं और लगभग सभी नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि नदियों की गहराई घटने से जल्द ही उनका पानी बाढ़ के पानी के रूप में इधर-उधर फैलने लगता है। वह आगे नहीं बढ़ पाता है। यही हालात कुओं और तालाबों के हैं, जिनमें गंदगी समाती जा रही है। ऐसे में भविष्य को लेकर न ही आम आदमी सजग नजर आता है और न ही सरकार के मन में बदलाव लाने की इच्छा दिखती है। यदि भारत छोड़ दुनिया के अन्य देशों में पानी की समस्या से निपटने के हालात को देखा जाए तो इजराइल और सिंगापुर समेत अनेक देशों ने उपाय कर जल समस्या को दूर किया है। मगर भारत में इस दिशा में कोई सोच दिखाई नहीं देती है। शायद इसकी एक वजह पानी के मामले से हर क्षेत्र का अलग-अलग ढंग से प्रभावित होना हो सकता है। किंतु कहीं ज्यादा और कहीं कम पानी की परिस्थिति को देखकर हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठा जा सकता है। 

पानी की समस्या के निराकरण के लिए जमीनी स्तर पर कदम उठाने होंगे। केवल सरकारी योजनाओं को बनाकर काम नहीं चलेगा। पेड़ों को लगाने के लक्ष्य निर्धारित कर पर्यावरण को सुधारा नहीं जा सकेगा। आज जरूरत इस बात की है कि पुराने जलस्नेतों का ईमानदारी से संरक्षण किया जाए। जल उपयोग के लिए जागृति लाई जाए। अन्यथा बिजली के संकट से इंसानी जीवन चल सकता है, लेकिन पानी के बिना मनुष्य का आगे बढ़ पाना मुश्किल होगा।

Web Title: Editorial: Increasing negligence with increasing water scarcity

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