डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: सामाजिक समस्याओं के चितेरे प्रेमचंद 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 1, 2019 05:31 PM2019-08-01T17:31:45+5:302019-08-01T17:31:45+5:30

बाल मनोविज्ञान से संबंधित भी उनकी कई कहानियां हैं जिसमें गिल्ली-डंडा, ईदगाह जैसी कहानी आज भी प्रासंगिक हैं. प्रेमचंद ने स्त्रियों पर किए जाने वाले अत्याचारों का सदैव सशक्त विरोध किया.

Dr. Wishala Sharma's Blog: Premchand, the face of social problems | डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: सामाजिक समस्याओं के चितेरे प्रेमचंद 

डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: सामाजिक समस्याओं के चितेरे प्रेमचंद 

डॉ. विशाला शर्मा

शी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों के द्वारा भारत की समस्याओं को उकेरा था. अपनी रचनाओं के माध्यम से छुआछूत, सांप्रदायिकता एवं किसानों की बदहाल स्थिति के बारे में लोगों को समझाने का काम किया था किंतु उस समय उनके द्वारा जिन समस्याओं के प्रति समाज का ध्यान आकृष्ट किया गया, वे समस्याएं आज भी व्याप्त हैं. सद्गति, ठाकुर का कुआं, सवा सेर गेहूं एवं कफन में दलितों एवं निर्धन वर्ग पर किए गए जुल्मों को स्थान दिया गया है. 

बाल मनोविज्ञान से संबंधित भी उनकी कई कहानियां हैं जिसमें गिल्ली-डंडा, ईदगाह जैसी कहानी आज भी प्रासंगिक हैं. प्रेमचंद ने स्त्रियों पर किए जाने वाले अत्याचारों का सदैव सशक्त विरोध किया. पर्दा प्रथा, अनमेल विवाह, दहेज प्रथा के विरोधी रहे निर्मला उपन्यास में प्रेमचंद ने नारी समस्याओं का सजीव चित्रण किया है. 

सेवासदन उपन्यास में वेश्याओं की समस्या उठाई गई है. प्रतिज्ञा प्रेमचंद का नारी दृष्टि संबंधी एक ऐसा उपन्यास है जिसमें विधवा जीवन के मर्म चित्र अंकित हैं तो निर्मला में नारी की अंतरवेदना की अभिव्यक्ति अनमेल विवाह के माध्यम से हुई है और गोदान की नायिका निडर, स्वाभिमानी एवं व्यवहारकुशल नारियां प्रेमचंद की रचनाओं की जीवंत दुनिया हैं. उसमें शोषितों के प्रति सहानुभूति भी है, गांव, शहर, कस्बे भी हैं.

‘मानसरोवर’ के आठ भागों में प्रकाशित अमर कहानियां भी हैं, उपन्यास भी हैं, साहित्य का स्वरूप निबंध संग्रह भी हैं. नाटक का संसार भी व्यापक है. फिल्म जगत में उनकी कृतियों पर आधारित फिल्में भी हैं और पत्रकार के रूप में भी उनकी छवि हमारे मानस पटल पर स्थायी रूप से आज भी विद्यमान है.

प्रेमचंद की मृत्यु के पश्चात ‘रंगभूमि’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘हीरा और मोती’ बनीं. ‘हीरा मोती’ लघुकथा दो बैलों की कथा पर आधारित फिल्म थी. 1959 में कृष्ण चोपड़ा ने इस फिल्म का निर्देशन किया था. इस कहानी में प्रेमचंद ने मनुष्य की गुलामी और पशुओं की आजादी पर एक पैना और मर्मस्पर्शी व्यंग्य किया है. 

पत्रकार के रूप में प्रेमचंद की चर्चा कम दिखाई देती है. ‘माधुरी’, ‘जागरण’ और ‘हंस’ के द्वारा हिंदी पत्रकारिता के विकास-विस्तार में उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया. ‘हंस’ को भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधि पत्र बनाने का श्रम उन्होंने किया. प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य का आस्वादन लेना है तो उनके रिपोर्ताज, टिप्पणियां, लेख, समीक्षाएं सभी का गहन अध्ययन आवश्यक है. 1903 से 1930 तक उनकी पत्रकारिता जीवंत रही. 

संपादक के रूप में प्रेमचंद प्रतिकूलताओं के बीच खड़े होकर भी अपने धवल चरित्र और ऊंचे मनोबल के कारण अंग्रेजी साम्राज्यवाद का डटकर प्रतिरोध करते हैं और यही कारण रहा कि ‘हंस’ पांच महीनों तक बंद रहा. ‘जागरण’ को भी ब्रिटिश शासन ने बंद करने की मुहिम चलाई. प्रेमचंद ने तिलस्म और रोमांस की भूलभुलैया से बाहर निकलकर  हिंदी साहित्य को सामाजिक समस्याओं 
से जोड़ा.

Web Title: Dr. Wishala Sharma's Blog: Premchand, the face of social problems

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