डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: बारूद के ढेर पर क्यों हैं सेवेन सिस्टर्स?

By विजय दर्डा | Published: May 8, 2023 07:16 AM2023-05-08T07:16:25+5:302023-05-08T08:24:38+5:30

सेवन सिस्टर्स के नाम से जाने और पहचाने जाने वाले राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा में शांति के लिए सख्त लेकिन प्रेमपूर्ण प्रशासनिक प्रयासों की खास जरूरत है. समस्याओं की जड़ पर प्रहार करना होगा. खासकर उग्रवादियों और ड्रग्स के काले कारोबार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति पर काम करना बहुत जरूरी है.

Dr. Vijay Darda's Blog on Manipur Violence: Why Seven Sisters north east states on a powder keg | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: बारूद के ढेर पर क्यों हैं सेवेन सिस्टर्स?

डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: बारूद के ढेर पर क्यों हैं सेवेन सिस्टर्स?

पूर्वोत्तर भारत की वादियां बहुत खूबसूरत हैं. इतनी खूबसूरत कि आप को पहली नजर में ही अपना बना लें!  ऊंचे खड़े पहाड़ों की गोद में कुलांचे भरती सैकड़ों नदियां और घना जंगल इस पूरे इलाके को नायाब बनाता है. आपसी बोलचाल की भाषा में हम पूर्वोत्तर के इन राज्यों को सेवेन सिस्टर्स यानी सात बहनें भी कहते हैं. 

सेवेन सिस्टर्स में शामिल हैं- असम, अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा. ये सारे राज्य जनजातियों से भरे हुए हैं और अपनी जरूरतों के लिए हमेशा से एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं इसलिए इन्हें सेवेन सिस्टर्स कहा गया. भारत के नक्शे को देखें तो एक छोटा सा गलियारा भारत की मुख्य भूमि से इन्हें जोड़ता है. इस गलियारे को चिकन नेक कहते हैं क्योंकि यह मुर्गी की गर्दन जैसा पतला सा इलाका है.

सेवेन सिस्टर्स की इन हसीन वादियों से जब आपसी हिंसा की खबरें आती हैं, सेना पर हमले की खबरें आती हैं, ड्रग्स के फैलते कारोबार की खबरें आती हैं तो दिल रो पड़ता है. हर किसी के मन में यह सवाल पैदा होता है कि छोटी-छोटी बातों पर आखिर क्यों होती है हिंसा? यहां क्यों पलता है उग्रवाद और आतंकवाद? 

ताजा मामला मणिपुर में अचानक फैली हिंसा का है और अब तो हिंसा की ज्वाला मेघालय तक भी जा पहुंची है. सामान्य तौर पर यह कहा जा रहा है कि गैर जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की कोशिश के कारण जनजातीय समूह गुस्से से आगबबूला हो रहे हैं. मणिपुर की कुल आबादी में 64 प्रतिशत आबादी मैतेई समुदाय की है. मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से ही हैं. 90 प्रतिशत घोर पहाड़ी इलाके में रहने वाली 33 जनजातियों के केवल 20 विधायक हैं. 

अब जरा इस बात पर भी गौर करिए कि मैतेई ज्यादातर हिंदू और थोड़े से मुसलमान हैं लेकिन नगा, कुकी और अन्य जनजातियां अमूमन ईसाई हैं. तो इस मामले ने धार्मिक रंग ले लिया है. मैं हमेशा यह कहता रहा हूं कि धर्म की राजनीति नहीं की जानी चाहिए. दुर्भाग्य से मणिपुर में यह खेल भी दिखाई दे रहा है!

लेकिन मामला केवल धर्म की राजनीति का ही नहीं है. एक बड़ा मामला ड्रग्स का भी है. न केवल मणिपुर बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत में नशे का घृणित अंतरराष्ट्रीय  कारोबार तेजी से फला-फूला है. हर महीने हेरोइन की बड़ी-बड़ी खेप पकड़ी जाती है. नशे के इस कारोबार की कहानी पर फिर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे. संक्षेप में कहानी यह है कि हमारे पड़ोसी मुल्क ने पहले तो लोगों में ड्रग्स की लत लगाई और अब भारत में बड़े पैमाने पर हेरोइन पहुंचा रहा है. म

मणिपुर में अवैध रूप से उगाया जाने वाला अफीम भी देश के दूसरे हिस्सों में पहुंच रहा है. चूंकि मणिपुर के मुख्यमंत्री नोंगथोंबम बीरेन सिंह ने ड्रग्स के खिलाफ जंग छेड़ रखी है, उनकी सरकार अफीम की खेती को नष्ट कर रही है इसलिए ड्रग्स माफिया भी उन्हें हर हाल में हटाने को उतावला है. मुझे लगता है कि पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र सरकार को मिलकर ड्रग्स माफिया के खिलाफ इतना सख्त कदम उठाना चाहिए, इतने कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए कि कोई भारत में ड्रग्स भेजने या भारत के भीतर ड्रग्स का धंधा करने की जुर्रत ही न कर पाए.

मणिपुर की ताजा घटना से अलग हट कर यदि हम पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों की बात करें तो आजादी के बाद से ही यहां कई समस्याएं रही हैं. मैंने एक पर्यटक के रूप में भी और संसदीय समिति के सदस्य के रूप में भी पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों की कई यात्राएं की हैं. मैंने पूर्वोत्तर को संसाधन विहीन देखा है और खुद को उपेक्षित महसूस करते भी देखा है. उस दौर में वहां रोजगार के साधन नहीं थे, रेल और विमान कम्युनिकेशन आज भी उतना नहीं है जितना होना चाहिए. वहां के युवा खिलाड़ी हैं लेकिन खेल की सुविधाएं नहीं थीं. 

उपेक्षा की ऐसी स्थिति में असंतोष तो पनपेगा ही! शांति कैसे आएगी? एक व्यक्ति ने अपनी दिल्ली यात्रा की चर्चा करते हुए जब कहा कि हिंदुस्तान जा रहा हूं तो मैं दंग रह गया! जनजातियों के कई समूह स्वयत्तता की मांग करते रहे हैं. पड़ोसी देशों ने आग में घी डालने का काम किया और उग्रवाद व आतंकवाद को बड़े पैमाने पर पाला-पोसा है. आज भी पूर्वोत्तर के कई राज्यों में ऐसे उग्रवादी सक्रिय हैं. नगालैंड की ओर जाने वाले मार्ग को महीनों तक बंद होते देखा है. 

ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया या विवाद को सुलझाने की कोशिश नहीं की. करीब-करीब सभी प्रधानमंत्रियों ने कोशिशें कीं. उग्रवादी समूहों से बातचीत में कुछ सफलताएं भी मिलीं लेकिन पूर्वोत्तर कभी भी पूरी तरह शांत नहीं रहा. बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ ही म्यांमार के घुसपैठियों ने हालात को और बदतर किया है.

मोदी जी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने शांतिपूर्ण, विकसित और संघर्षमुक्त पूर्वोत्तर के स्लोगन के साथ वहां की 50 से अधिक यात्राएं की हैं. नौ साल में एक खास इलाके में प्रधानमंत्री की इतनी यात्राएं कोई मामूली बात नहीं है. उनके और गृह मंत्री अमित शाह के प्रयासों का ही नतीजा है कि उग्रवादियों के कई समूह बातचीत की मेज पर आए. कई समझौते भी हुए हैं. राज्यों के बीच विवाद को सुलझाने की कोशिशें लगातार चल रही हैं. 

हाल ही में अरुणाचल और असम के बीच 123 गांवों का विवाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खत्म कराया. सरकारी आंकड़ा कहता है कि पिछले 9 सालों में करीब 8 हजार युवा हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हुए हैं. हिंसा में  67 प्रतिशत, सुरक्षा बलों की मृत्यु में 60 प्रतिशत तथा नागरिकों की मृत्यु में 83 प्रतिशत की कमी आई है.

बहरहाल आंकड़ों में उलझने से ज्यादा जरूरी इस बात पर ध्यान केंद्रित करना है कि पूर्वोत्तर बारूद के जिस ढेर पर बैठा है, उस बारूद को ही नष्ट करने का स्थाई समाधान ढूंढ़ा जाए. जाहिर सी बात है कि यह सब एक दिन में नहीं हो सकता लेकिन देश के सारे दल, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, वहां के सभी विपक्षी नेता यदि ठान लें तो काम मुश्किल भी नहीं है. अब वक्त आ गया है कि पूर्वोत्तर के कई इलाकों में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट को समाप्त कर दिया जाए. वहां के युवाओं के लिए रोजगार के इतने साधन उपलब्ध करा दिए जाएं कि युवा कोई और रास्ता न तलाशें. 

इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों के प्रति सामान्य नागरिकों का नजरिया बदलना बहुत जरूरी है. इसके लिए सबसे पहले तो अरुणाचल, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड जाने के लिए इनर लाइन परमिट को खत्म किया जाए. इन राज्यों के लोग यदि दूसरे राज्यों में बिना रोकटोक जा सकते हैं तो दूसरे राज्य के लोग क्यों न जाएं?

आवाजाही बढ़ेगी तो हम मैदानी इलाके के लोग पूर्वोत्तर को शायद ज्यादा समझ पाएंगे. वहां पर्यटन को शानदार तरीके से विकसित करने और स्थानीय संसाधनों के माध्यम से विकास का रास्ता बनाने की आवश्यकता है. पूर्वोत्तर की समस्याओं को दूर करने के लिए सर्वदलीय समग्र नीति की बहुत जरूरत है.

Web Title: Dr. Vijay Darda's Blog on Manipur Violence: Why Seven Sisters north east states on a powder keg

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