डॉक्टर विजय दर्डा का ब्लॉग: युवाओं के देश में लोकतंत्र का महापर्व

By विजय दर्डा | Published: March 18, 2024 06:49 AM2024-03-18T06:49:44+5:302024-03-18T06:55:29+5:30

भारत में पहली बार वोटिंग की पात्रता वाले मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा है। यदि हम 30 साल से कम उम्र के युवा मतदाताओं की संख्या का हिसाब लगाएं तो यह आंकड़ा 21 करोड़ 50 लाख से ज्यादा है। इसीलिए मैं इसे युवाओं के देश में लोकतंत्र का महापर्व कह रहा हूं।

Dr. Vijay Darda's blog: Great festival of democracy in the country of youth | डॉक्टर विजय दर्डा का ब्लॉग: युवाओं के देश में लोकतंत्र का महापर्व

फाइल फोटो

Highlightsभारत में पहली बार वोटिंग की पात्रता वाले मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा है30 साल से कम उम्र के युवा मतदाताओं के आंकड़े पर बात करें तो यह 21 करोड़ 50 लाख से ज्यादा हैयही कारण है कि लोकसभा चुनाव 2024 देश के युवाओं के लिए सबसे बड़ा लोकतंत्रिक महापर्व है

लोकसभा के चुनाव को लेकर मैं अभी विश्लेषण कर रहा था तो एक दिलचस्प जानकारी उभर कर सामने आई कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जितने मतदाता पहली बार वोट देंगे उतनी तो दुनिया के 130 से ज्यादा देशों की आबादी भी नहीं है! पहली बार वोटिंग की पात्रता वाले मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा है। यदि हम 30 साल से कम उम्र के युवा मतदाताओं की संख्या का हिसाब लगाएं तो यह आंकड़ा 21 करोड़ 50 लाख से ज्यादा है। इसीलिए मैं इसे युवाओं के देश में लोकतंत्र का महापर्व कह रहा हूं।

ये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय लोकतंत्र की व्यापकता कितनी है। आबादी के लिहाज से तो हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं ही, इतिहास के हिसाब से दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र भी हैं। आपको याद दिला दें कि विश्व में सबसे पहले भारत में लिच्छवि शासनकाल के दौरान वैशाली में लोकतंत्र की नींव रखी गई थी। जिस तरह आधुनिक काल में हमारे पास संसद है, उसी तरह लिच्छवि शासनकाल में एक सभा हुआ करती थी। प्रसन्नता की बात है कि तमाम बाधाओं और विषमताओं के बावजूद हमारा लोकतंत्र निरंतर परिपक्व होता जा रहा है।

लोकसभा के पहले चुनाव के समय भारत की आबादी करीब 36 करोड़ थी जिसमें से मतदाता सूची में केवल 17 करोड़ 32 लाख लोगों के ही नाम थे। 2024 में आबादी 140 करोड़ के पार है और मतदाता सूची में 96 करोड़ 80 लाख से ज्यादा मतदाता शामिल हैं।

यह कुल आबादी का करीब 66.76 प्रतिशत है। 2019 की तुलना में मतदाताओं की संख्या करीब 6 प्रतिशत बढ़ी है। सुकून की बात यह है कि महिला मतदाताओं की संख्या भी अच्छी-खासी बढ़ी है। जहां 3 करोड़ 22 लाख पुरुष मतदाता बढ़े हैं वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 4 करोड़ से ज्यादा बढ़ी है। 80 साल से ज्यादा उम्र वाले करीब 1 करोड़ 85 लाख मतदाता हैं तो उनमें 2 लाख 18 हजार से ज्यादा ऐसे हैं जिन्होंने उम्र की सेंचुरी लगा ली है।

सबसे अच्छी बात है कि युवा वोट देने के लिए उतावले नजर आते हैं। पहली बार वोट डालने वाले कई ऐसे लोग हैं जो नौकरी के सिलसिले में घर से बाहर रह रहे हैं। मैं ऐसे कई युवाओं को जानता हूं जिन्होंने शनिवार को चुनावों की तारीख घोषित होने के साथ ही मतदान के लिए घर पहुंचने के लिए ट्रेन टिकट करा लिया। ये वो युवा हैं जो वोट डालने के लिए अपनी जेब से खर्च करेंगे।

एक बात और याद दिलाना चाहता हूं कि पहले घर के बड़े बुजुर्ग जिसे वोट देने को कहते थे, पूरा परिवार उसे ही वोट देता था। अब ऐसा नहीं है। पत्नी, बेटा, बेटी सब अपनी पसंद के अनुरूप वोट देते हैं। पहले कुछ राज्यों में कमजोर वर्ग को वोट देने से रोक दिया जाता था, बूथ कैप्चर हो जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। हर व्यक्ति अपने वोट को लेकर सतर्क हो गया है। इसे कहते हैं लोकतंत्र का जज्बा! यही जज्बा राष्ट्र को गौरव प्रदान करता है।

हमारे देश की एक बड़ी समस्या अपराध और राजनीति के गठजोड़ की रही है। इस पर भी अंकुश लगता नजर आ रहा है। इस बार चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि सभी राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवार का क्रिमिनल रिकॉर्ड बताना होगा। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट करना होगा कि उस उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया गया है? और उस क्षेत्र से किसी दूसरे व्यक्ति को टिकट क्यों नहीं दिया गया है? यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग के इस निर्देश का किस तरह पालन करते हैं और कैसी व्याख्या करते हैं।

बहरहाल, यह तो पूरा देश चाहता है कि हमारी राजनीति साफ-सुथरी हो, अपराधियों की इसमें कोई सहभागिता नहीं हो। यही कारण है कि चुनावी बांड को लेकर भी अभी बवाल मचा हुआ है। लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही है कि जिन लोगों के दामन पर आर्थिक अपराध के दाग लगे, उनसे चंदा कैसे स्वीकार किया गया? कितना बेहतर हो कि चंदा उन्हीं से स्वीकार किया जाए जिनका दामन पूरी तरह साफ हो! मैं हमेशा कहता रहा हूं कि चुनाव को आर्थिक रूप से पारदर्शी बनाने का एकमात्र तरीका यह है कि चुनावी खर्च की सीमा को वास्तविकता के धरातल पर लाना चाहिए। अभी लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा अधिकतम 95 लाख रु. है। क्या इतने में चुनाव होते हैं? इस बात पर गौर करने की जरूरत है।

चुनाव को लेकर एक खबर और आई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर 18 हजार से ज्यादा पेज की रिपोर्ट सौंप दी है। जाहिर सी बात है कि इस पर लोकसभा चुनाव के बाद ही कोई चर्चा होगी। मौजूदा चुनाव सात चरणों में कराया जा रहा है और यह कहा जा रहा है कि पहले पूरे देश में एक चरण में चुनाव तक तो पहुंचें! फिर एक साथ चुनाव की बात करेंगे! वैसे हमारा चुनाव आयोग जितने व्यापक पैमाने पर चुनाव कराता है, वह किसी विकसित राष्ट्र के लिए भी असंभव सा काम है।

हमारे यहां 10 लाख 50 हजार से ज्यादा मतदान केंद्र हैं, केंद्रीय पुलिस बल और राज्य पुलिस बल के करीब 3 लाख 40 हजार जवान चुनाव में तैनात होंगे। 55 लाख ईवीएम मशीनें होंगी और कोई दबाव और पक्षपात न हो इसलिए चुनाव तक पूरे देश की मशीनरी को चुनाव आयोग संभालेगा!

जाहिर सी बात है कि जब राष्ट्र  इतना सजग होता है तो स्वाभाविक रूप से यह उम्मीद मजबूत होती है कि हमारे लोकतंत्र का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। सत्ता भले ही राजनीतिक दल और उसके नेता संचालित करते हैं लेकिन कमान तो अंतत: मतदाताओं के हाथों में ही होती है! अपनी इस ताकत को अपने पास रखिए। न भावनाओं में बहिये, न जाति और धर्म की आंधी में और न निजी प्रलोभन में। अपने राष्ट्र से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ हो ही नहीं सकता!

Web Title: Dr. Vijay Darda's blog: Great festival of democracy in the country of youth

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