डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 24, 2019 11:42 AM2019-03-24T11:42:15+5:302019-03-24T11:43:12+5:30

चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास शुरू कर देती हैं. मतदाताओं में महिला-पुरुष, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित सब शामिल होते हैं.

Dr. S. S. Mantha's Blog: Women's Representation in Politics | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व

डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व

दुनियाभर में लैंगिक समानता के विषय पर चर्चा तो खूब होती है, लेकिन हकीकत में जब महिलाओं को पुरुषों के बराबर अवसर देने की बात आती है तो यह कोरी जुबानी चर्चा ही साबित होती है. नौकरी में वेतन का मामला हो या समान प्रतिनिधित्व का, पुरुषों को हमेशा अधिक महत्व दिया जाता है. महिलाओं और पुरुषों को वेतन देने में भेदभाव की शिकायत हॉलीवुड की अभिनेत्रियों से लेकर गूगल की इंजीनियरों तक ने की है.

चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास शुरू कर देती हैं. मतदाताओं में महिला-पुरुष, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित सब शामिल होते हैं. भारत में यह संयोजन अनगिनत जातियों की वजह से और जटिल हो जाता है. अलग-अलग विचारधाराओं से प्रेरित पार्टियां अपने मतदाता वर्गो पर जातिगत ढंग से विचार करने लगती हैं. लेकिन महिलाओं को समान प्रतिनिधित्व देने के बारे में हमेशा ही ना-नुकुर किया जाता है.

वर्ष 2015-16 के बेरोजगारी सव्रेक्षण के अनुसार पुरुषों को रोजगार मिलने का आंकड़ा 75 प्रतिशत था, जबकि सिर्फ 23.7 प्रतिशत महिलाओं को ही रोजगार मिला. स्नातकोत्तर शिक्षा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जहां 35 प्रतिशत है, वहीें स्नातक शिक्षा में तो यह सिर्फ 25 प्रतिशत ही है.

कामगार क्षेत्र में रोजगार के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पुरुषों का अनुपात जहां 72.1 प्रतिशत है, वहीं महिलाओं का सिर्फ 21.7 प्रतिशत है. 2017-18 के आर्थिक सव्रेक्षण के अनुसार महिला कामगारों को कम उत्पादक काम दिया जाता है और वेतन भी कम दिया जाता है. भारत की तुलना में द. अफ्रीका, ब्राजील और चिली जैसे देशों में महिलाओं को ज्यादा वेतन मिलता है.  

सभी राजनीतिक दल कहते हैं कि सत्ता में आने पर वे महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व देंगे. उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही जाती है, जबकि हकीकत में तो महिलाओं को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए. लेकिन पुरुषों को शायद डर है कि इससे उनका वर्चस्व खत्म हो जाएगा!

2014 के चुनाव के बाद हालांकि लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या बढ़ी है, फिर भी यह आंकड़ा 11 प्रतिशत ही है. देश की 136 करोड़ की जनसंख्या में महिलाओं की संख्या 64 करोड़ है. यह संख्या निश्चित रूप से राजनीति में प्रभावी असर डाल सकती है. इसलिए सभी राजनीतिक दल महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. 

Web Title: Dr. S. S. Mantha's Blog: Women's Representation in Politics