दिनकर कुमार का ब्लॉग: असम के डिटेंशन कैंपों पर उठ रहे सवाल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 19, 2019 05:43 AM2019-07-19T05:43:22+5:302019-07-19T05:43:46+5:30

असम में जिस तरह विदेशी घुसपैठियों को पकड़कर रखने के लिए बनाए गए डिटेंशन कैंपों में निदरेष भारतीय नागरिकों को गिरफ्तार कर रखने के मामले सामने आ रहे हैं, उससे ऐसे कैंपों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं.

Dinkar Kumar blog: Questions arising on Assam detention camps | दिनकर कुमार का ब्लॉग: असम के डिटेंशन कैंपों पर उठ रहे सवाल

मधुबाला मंडल। (फोटो साभार: द टेलीग्राफ)

असम में जिस तरह विदेशी घुसपैठियों को पकड़कर रखने के लिए बनाए गए डिटेंशन कैंपों में निदरेष भारतीय नागरिकों को गिरफ्तार कर रखने के मामले सामने आ रहे हैं, उससे ऐसे कैंपों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं. बीच-बीच में कई गरीब इन कैंपों में दम भी तोड़ते रहे हैं. गरीब नागरिक अपनी नागरिकता साबित करने के लिए महंगी कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकते. मानवाधिकार के इस संकट को हल किए बगैर सरकार अधिक संख्या में डिटेंशन कैंप बनाने की तैयारी कर रही है.

गलत पहचान की वजह से तीन सालों से कैद 59 वर्षीया मधुबाला मंडल को पिछले दिनों असम के कोकराझार में स्थित एक डिटेंशन कैंप से रिहा किया गया. मधुबाला की रिहाई तभी संभव हो सकी जब पुलिस ने एक विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि वर्ष 2016 में उसने मधुमाला दास को हिरासत में लेने की जगह मधुबाला मंडल को हिरासत में ले लिया था. चिरांग जिले के पुलिस अधीक्षक सुधाकर सिंह ने कहा- जांच से पता चला कि गलत पहचान की वजह से मधुबाला मंडल को गिरफ्तार कर डिटेंशन कैंप में बंद कर दिया गया था. 

मधुबाला मंडल के जिन रिश्तेदारों और नागरिक संगठनों ने उनकी रिहाई के लिए कानूनी संघर्ष किया, वे पुलिस की दलील को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. अखिल असम बंगाली युवा छात्न संघ के प्रवक्ता का कहना है- पुलिस जिस महिला मधुमाला दास को गिरफ्तार करने आई थी, उसका देहांत वर्षो पहले हो चुका है. इसके बावजूद वह दूसरी एक निदरेष महिला को पकड़ ले गई. पुलिस ने सोचा एक निर्धन और निरक्षर महिला अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई नहीं लड़ पाएगी. 

इसी तरह एक दूसरा मामला असम के सिलचर जिले में सामने आया है. एक सेवानिवृत्त हेडमास्टर को 24 साल पहले निर्वाचन विभाग के कर्मचारियों ने गलती से संदिग्ध नागरिक घोषित कर दिया था और मताधिकार से वंचित कर दिया था. इस गलती की वजह से हेडमास्टर के नाम को एनआरसी में शामिल करने से इंकार कर दिया गया. कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद अब निर्वाचन विभाग ने अपनी गलती सुधारने की प्रक्रि या शुरू की है.

महज संदेह के आधार पर किसी निदरेष व्यक्ति को अनिश्चित काल के लिए डिटेंशन कैंप में कैद कर देना और उसको नागरिकता के अधिकार से वंचित करना मानवाधिकारों का सरासर उल्लंघन ही माना जाएगा. लोकतंत्न पर आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसे डिटेंशन कैंपों का समर्थन नहीं कर सकता. ये कैंप आर्थिक रूप से कमजोर भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को यंत्नणा देने के लिए हथकंडे की तरह काम कर रहे हैं, जो देश के संविधान में दिए गए नागरिक अधिकारों का हनन करते हैं. 

Web Title: Dinkar Kumar blog: Questions arising on Assam detention camps

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