आत्मनियंत्रण से थमेगा सांसों का जहर, दिल्ली वायु प्रदूषण पर पकंज चतुर्वेदी का ब्लॉग
By पंकज चतुर्वेदी | Published: November 18, 2023 02:23 PM2023-11-18T14:23:21+5:302023-11-18T14:23:21+5:30
दिल्ली के आसपास जिस तरह सीएनजी वाहन अधिक हैं, वहां बरसात नए तरीके का संकट ला सकती है। विदित हो सीएनजी दहन से नाइट्रोजन ऑक्साइड और नाइट्रोजन की ऑक्सीजन के साथ गैसें जिन्हें ‘ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन’’ का उत्सर्जन होता है।
जब दिल्ली और उसके आसपास दो सौ किलोमीटर की सांसों पर संकट छाया और सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नजरिया अपनाया तो सरकार का एक नया शिगूफा सामने आ गया -कृत्रिम बरसात। दिवाली के तीन दिन पहले बरसात होने से हवा की गुणवत्ता में कुछ सुधार आया है लेकिन आनंद विहार जैसे इलाके अभी भी खतरनाक की श्रेणी में ही हैं।
वैसे भी दिल्ली के आसपास जिस तरह सीएनजी वाहन अधिक हैं, वहां बरसात नए तरीके का संकट ला सकती है। विदित हो सीएनजी दहन से नाइट्रोजन ऑक्साइड और नाइट्रोजन की ऑक्सीजन के साथ गैसें जिन्हें ‘ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन’’ का उत्सर्जन होता है।
चिंता की बात यह है कि ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन गैस वातावरण में मौजूद पानी और ऑक्सीजन के साथ मिलकर तेजाबी बारिश कर सकती है, जिस कृत्रिम बरसात का झांसा दिया जा रहा है, उसकी तकनीक को समझना जरूरी है, जिसके लिए हवाई जहाज से सिल्वर-आयोडाइड और कई अन्य रासायनिक पदार्थों का छिड़काव किया जाता है इससे सूखी बर्फ के कण तैयार होते हैं।
असल में सूखी बर्फ ठोस कार्बन डाईऑक्साइड ही होती है। सूखी बर्फ की खासियत होती है कि इसके पिघलने से पानी नहीं बनता और यह गैस के रूप में ही लुप्त ओ जाती है। यदि परिवेश के बादलों में थोड़ी भी नमी होती है तो यह सूखी बर्फ के कानों पर चिपक जाते हैं।
दुर्भाग्य है कि दिल्ली और उसके समीपवर्ती इलाकों में वायु प्रदूषण एक मानव-जन्य त्रासदी है लेकिन हम इसका हल मशीनों या यूं कहें कि तकनीक के नाम व्यापार में तलाशते हैं। प्रकृति को संरक्षित करने के लिए उसके प्रदूषण का निदान तलाशने से बेहतर होता है प्रदूषण कम करने के तरीके इजाद करना। हमें जरूरत है आत्म नियंत्रित ऐसी प्रक्रिया की जिससे वायु को जहर बनाने वाले कारक ही जन्म न लें।