विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका क्या एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप कर रहे हैं?, किसी की भी गरिमा के साथ खिलवाड़ नहीं हो...

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 23, 2025 05:14 IST2025-04-23T05:14:46+5:302025-04-23T05:14:46+5:30

सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है. अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभा का कोई मतलब नहीं है- इन्हें बंद कर देना चाहिए.

delhi legislature, executive judiciary interfering each other work No one dignity should be tampered with | विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका क्या एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप कर रहे हैं?, किसी की भी गरिमा के साथ खिलवाड़ नहीं हो...

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Highlightsजाहिर सी बात है कि कहीं न कहीं कोई चूक तो हो रही है!सबसे बड़ी चूक तो यह है कि जिसकी जो इच्छा हो रही है. भाजपा विधायक निशिकांत दुबे का ही मामला देखिए.

इस समय हर ओर इस बात की चर्चा जारी है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका क्या एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप कर रहे हैं? हमारे संविधान ने तीनों के कार्यों और अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या कर रखी है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए तीनों का ही अच्छी तरह से काम करना बहुत जरूरी है. संविधान ने ऐसी माकूल व्यवस्था कर रखी है कि तीनों अपनी डगर पर ठीक से चलते रहें तो एक-दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप की गुंजाइश ही नहीं रहेगी. तो फिर विवाद की यह स्थिति आखिर क्यों पैदा हो रही है? जाहिर सी बात है कि कहीं न कहीं कोई चूक तो हो रही है!

सबसे बड़ी चूक तो यह है कि जिसकी जो इच्छा हो रही है, वह वही बोले जा रहा है. अभी भाजपा विधायक निशिकांत दुबे का ही मामला देखिए. उनका संदर्भ जो भी रहा हो लेकिन उन्होंने जिस तरह की भाषा का उपयोग किया है, वह निश्चित रूप से आपत्तिजनक है, बेबुनियाद है और निंदनीय है. सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ इस तरह की बकवास को प्रकाशित नहीं करना चाहिए लेकिन संदर्भ के लिए आम लोगों को जानना जरूरी है इसलिए उन्होंने क्या कहा इसे अक्षरश: पढ़िए, ‘देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है.

सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है. अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभा का कोई मतलब नहीं है- इन्हें बंद कर देना चाहिए. इस देश में जितने भी गृह युद्ध हो रहे हैं, उनके जिम्मेदार केवल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया हैं.’ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी न्यायपालिका के अधिकारों पर सवाल उठा चुके हैं.

इस तरह की टिप्पणी से न्यायालय का आहत होना स्वाभाविक है. एक मामले में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने कहा भी कि हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण का आरोप लगाया जा रहा है. दुबे की टिप्पणी के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने कहा भी है कि शीर्ष अदालत की गरिमा बनाए रखी जानी चाहिए.

इस मामले में महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने निशिकांत दुबे के बयान से किनारा कर लिया है और कहा है कि इस तरह के बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है लेकिन सवाल यह उठता है कि दुबे के खिलाफ क्या भाजपा कोई कदम उठाएगी?

यदि सर्वोच्च न्यायालय के किसी फैसले से दुबे आहत भी हुए हैं तो वे संसद के सदस्य हैं और संसद में अपनी बात रख सकते हैं, राष्ट्रपति के पास जा सकते हैं लेकिन इस तरह से सार्वजनिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय की बेबुनियाद आलोचना को लोकतंत्र का कोई भी सच्चा समर्थक स्वीकार नहीं कर सकता है. यदि किसी मामले में न्यायपालिका से चूक होती है तो उसे तत्काल दुरुस्त करने की न्यायिक व्यवस्था भी है.

यही कारण है कि उच्च न्यायालयों के कई फैसले सर्वोच्च न्यायालय पलटता भी रहा है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए जितनी विधायिका जरूरी है, उतनी ही न्यायपालिका भी जरूरी है. इसलिए खास तौर पर इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि न्यायपालिका की शक्ति और साख दोनों ही बनी रहे. यह जिम्मेदारी लोकतंत्र में विश्वास करने वाले हर व्यक्ति और हर संस्था की है.  

Web Title: delhi legislature, executive judiciary interfering each other work No one dignity should be tampered with

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