Delhi Chunav 2025 Updates: दिल्ली दंगल और यमुना की हकीकत!, जानें क्या है हकीकत
By विकास मिश्रा | Updated: February 4, 2025 05:54 IST2025-02-04T05:54:13+5:302025-02-04T05:54:13+5:30
Delhi Chunav 2025 Updates: पानी यदि दिल्ली पहुंच जाता तो बहुत से लोगों की जान चली जाती.’ स्वाभाविक रूप से दिल्ली जल बोर्ड ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया और कहा कि पानी को शुद्ध करने के बाद ही जलप्रदाय होता है.

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Delhi Chunav 2025 Updates: यदि बिल्कुल शाब्दिक अर्थ में कहें तो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का यह आरोप बेतुका लगता है कि ‘हरियाणा की भाजपा सरकार यमुना के पानी में जहर मिला रही थी और भला हो दिल्ली जल बोर्ड के अभियंताओं का जिन्होंने समय रहते इसका पता लगा लिया. वह पानी यदि दिल्ली पहुंच जाता तो बहुत से लोगों की जान चली जाती.’ स्वाभाविक रूप से दिल्ली जल बोर्ड ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया और कहा कि पानी को शुद्ध करने के बाद ही जलप्रदाय होता है.
इधर भाजपा चुनाव आयोग चली गई और केजरीवाल ने जवाब दिया कि उनका आशय यमुना में गंभीर मात्रा में बढ़े जहरीले अमोनिया को लेकर था. जब केजरीवाल ने यह आरोप लगाया था तो किसी ने भी इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि यह सभी समझते हैं कि कोई भी राज्य सरकार अपनी ही किसी नदी में जहर क्यों मिलाएगी?
लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि यमुना का पानी जहरीला है? और इस बात से भी कौन इनकार कर सकता है कि यमुना को प्रदूषित करने में किसी और की नहीं बल्कि दिल्ली की ही प्रमुख भूमिका है. दिल्ली पहले अपने गिरेबां में तो झांके! यमुनोत्री से निकलकर 1376 किलोमीटर के सफर के बाद प्रयागराज में गंगा में विलीन हो जाने वाली यमुना का केवल 2 प्रतिशत हिस्सा ही दिल्ली के इलाके में है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यमुना में जो गंदगी मिलती है उसमें अकेले दिल्ली का हिस्सा करीब 70 प्रतिशत है.
आज भी दिल्ली के सौ से ज्यादा नाले आकर यमुना में मिलते हैं. सबसे ज्यादा यदि यमुना को कोई प्रदूषित कर रहा है तो वह है नजफगढ़ नाला. इसके आसपास न जाने कितनी तंग बस्तियां बसी हुई हैं जिनकी सारी गंदगी यमुना में जाकर मिल रही है. दिल्ली में यदि आप यमुना के किनारे पर जाएं तो सहज ही अंदाजा हो जाएगा कि यमुना कितनी प्रदूषित है.
यमुना के प्रदूषण को समझने के लिए आपको किसी आंकड़े, किसी रिपोर्ट या किसी बयान की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. हर ओर सफेद झाग दिखेगी. वैसे हरियाणा और उत्तरप्रदेश के भी कई शहर यमुना को प्रदूषित करने में अच्छी खासी भूमिका निभाते हैं. सवाल यह है कि यमुना नदी की सेहत सुधारने के लिए क्या कुछ किया भी जा रहा है या फिर केवल राजनीति ही चल रही है?
सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार ने पिछले आठ वर्षों में सात हजार करोड़ से ज्यादा की राशि यमुना को साफ-सुथरा बनाने पर खर्च की है. फिर भी यमुना इसलिए साफ नहीं हो पा रही है क्योंकि दिल्ली की गंदगी उसमें लगातार मिल रही है. दिल्ली को पीने के पानी का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा इसी यमुना से मिलता है इसलिए दिल्ली की राजनीति में यमुना एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है.
अरविंद केजरीवाल ने पिछले चुनाव में अपनी सभाओं में कहा था कि आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने का मौका दीजिए, हम यमुना में नहाएंगे भी और यमुना का पानी पिएंगे भी. उनका आशय यमुना को निर्मल बना देने का रहा होगा लेकिन दुनिया जानती है कि वह चुनावी वादा था. असलियत में यमुना को निर्मल बना पाना टेढ़ी खीर है.
इस चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उनके इसी वादे पर प्रहार किया और कहा कि अरविंद केजरीवाल यमुना का पानी पीकर दिखाएं! केजरीवाल के लिए यह चुनौती स्वीकार करना बड़ा मुश्किल है क्योंकि यदि यमुना से कोई सीधे पानी पी ले तो उसका अस्पताल पहुंचना तय है. यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी ज्यादा है और कई बार नालों की गंदगी के कारण और इतनी ज्यादा हो जाती है कि उसका घातक असर होता है. इसके अलावा दूसरे रसायन भी नियंत्रित मात्रा से ज्यादा होते हैं.
चूंकि पानी को ट्रीटमेंट प्लांट में प्रदूषणमुक्त करने के बाद ही घरों तक भेजा जाता है इसलिए लोग इसके दुष्प्रभाव से बच जाते हैं लेकिन इसके किनारे तंग बस्तियों में रहने वाले लोगों की जिंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव होता है. अमोनिया और दूसरे रसायनों का प्रभाव कितना घातक हो सकता है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 2008 में चंबल नदी में 100 से ज्यादा घड़ियालों की मौत हो गई थी.
चंबल, यमुना की सहायक नदी है और दिल्ली से चंबल तक यमुना की लंबाई करीब 490 किलोमीटर है. घड़ियालों की मौत के बाद एक इंटरनेशनल टास्क फोर्स बनाया गया जिसे घड़ियालों की मौत की वजह तलाशने की जिम्मेदारी दी गई. करीब डेढ़ दशक की जांच पड़ताल और शोध के बाद पता चला कि यमुना का प्रदूषित पानी चंबल नदी में आया और वह इतना जहरीला हो चुका था कि घड़ियालों की जान ले ली.
आज जरूरत इस बात की है हम यमुना पर राजनीति न करें, इसे चुनावी मुद्दा न बनाएं बल्कि केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और दूसरे तमाम संगठन एकजुट हों और यमुना को बचाने के लिए पूरे संकल्प के साथ अभियान चलाएं. यह पौराणिक नदी है. हमारी सभ्यता और संस्कृति की वाहक रही है. हमने बचपन में सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता खूब पढ़ी है...
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे/ मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे.
ये नदी मेरे प्यारे कन्हैया की याद दिलाती है. इसे बचाना अपनी पौराणिकता की निशानी को बचाना है.