ब्लॉग: पूर्व मुख्यमंत्रियों का दलबदल नई बात नहीं!
By Amitabh Shrivastava | Published: February 17, 2024 03:31 PM2024-02-17T15:31:03+5:302024-02-17T15:33:23+5:30
इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो महाराष्ट्र में कांग्रेस छोड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या सबसे अधिक है। कुछ पार्टी से नाराज होकर गए और कुछ ने रणनीतिक कारणों से अपने दल से विदाई ली।
अक्सर राजनीतिक उठापटक के लिए छोटे प्रदेश, कभी बिहार, कर्नाटक जैसे राज्यों के नाम सामने आते हैं। मगर राजनीतिक उठापटक में महाराष्ट्र जैसा बड़ा राज्य भी कम नहीं है। यदि अतीत पर नजर दौड़ाई जाए तो राज्य के मराठा छत्रप शरद पवार की राजनीति का पहला और प्रमुख कदम अपनी पार्टी से बगावत और उसके बाद मुख्यमंत्री बनना था। हालांकि इन दिनों महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के बाद से राजनीतिक हलकों में खासी चिंता और चर्चा का वातावरण बन गया है। एक तरफ कांग्रेस में जहां उन्हें पार्टी की पीठ पर छुरा भोंकने वाला से लेकर डरपोक तक कहा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो राज्य में कांग्रेस छोड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या सबसे अधिक है। कुछ पार्टी से नाराज होकर गए और कुछ ने रणनीतिक कारणों से अपने दल से विदाई ली।
महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो सबसे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने वर्ष 1977 में पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकते हुए समाजवादी कांग्रेस का गठन किया था। उसके बाद शरद पवार ने वर्ष 1978 में कांग्रेस से विद्रोह करते हुए अपना नया संगठन प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा (पीडीएफ) बनाया था. जिसके बाद वह मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। बाद में उन्होंने वर्ष 1987 में कांग्रेस में वापसी की और दोबारा मुख्यमंत्री बने। एक बार फिर वर्ष 1999 में उन्होंने विद्रोह कर कांग्रेस से अलग राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया, जो अभी अजीत पवार के विभाजन के बाद दो-फाड़ हुई है। इसी प्रकार शिवसेना के नेता नारायण राणे वर्ष 1999 में भाजपा के साथ तत्कालीन गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वह कांग्रेस में शामिल होकर तत्कालीन कांग्रेस-राकांपा सरकार में मंत्री बने। वर्तमान में वह भाजपा के केंद्रीय मंत्री हैं। इनके अलावा स्वर्गीय विलासराव देशमुख ने कांग्रेस छोड़कर विधान परिषद का चुनाव लड़ा, लेकिन हार के बाद कांग्रेस में वापसी की और मुख्यमंत्री बने। वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना तोड़कर नई पार्टी का गठन कर राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं।
यदि पूर्व मुख्यमंत्रियों के पार्टी छोड़ने के कारणों की समीक्षा की जाए तो उसके पीछे कोई ठोस वजह नजर नहीं आती है। यदि शरद पवार के कांग्रेस छोड़ने के कारण देखे जाएं तो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से अधिक नजर कुछ नहीं आता है, क्योंकि पार्टी ने उन्हें काफी कुछ दिया था. यहां तक कि पार्टी छोड़ने के बाद भी उनका महत्व कम नहीं किया। इसी प्रकार शंकरराव चव्हाण ने भी व्यक्तिगत वजह से कांग्रेस छोड़ी, क्योंकि उस समय भी वह मुख्यमंत्री के पद पर आसीन थे। इसी प्रकार नारायण राणे शिवसेना के मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भी पार्टी को छोड़ कर चले गए। वहीं विलासराव देशमुख भी पार्टी को छोड़ते समय अच्छी स्थिति में थे। वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी हमेशा शिवसेना में अच्छे मंत्रालयों के मंत्री के रूप में काम किया। ताजा मामले में अशोक चव्हाण ने भी हर तरह के मंत्री पद के साथ संगठनात्मक भूमिका में भी काम किया। उन्होंने पार्टी को छोड़ते समय स्वीकार किया कि वह कांग्रेस की आलोचना की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया। यदि राज्य का नेतृत्व करने के बाद भी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं, कुछ काम करने की इच्छा मन में रह जाती है तो पार्टी छोड़कर मुख्यमंत्री बनने से कुछ आशा की जा सकती है। किंतु किसी दल में सामान्य सदस्य के रूप में शामिल होकर अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करना स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह निजी लाभ के लिए तो हो सकता है, व्यापक लाभ के लिए नहीं हो सकता।
इसका उदाहरण वर्तमान केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के रूप में भी समझा जा सकता है, जिन्हें भाजपा दोबारा राज्यसभा में भेजने के लिए तैयार नहीं है। स्पष्ट है कि किसी दल में दूसरे दल के पूर्व मुख्यमंत्री का शामिल होना खुशी और ताकत दिखाने का मौका हो सकता है। मगर नव आगंतुक की ताकत में वृद्धि की उम्मीद नहीं लगाई जा सकती है। प्रचार-प्रसार के दृष्टिकोण से किसी को झटका और किसी को लाभ मिलने का कयास लगाया सकता है। कुछ अपवाद स्वरूप मामले जैसे असम में हेमंत बिस्वा सरमा का आना भाजपा के लिए लाभदायक साबित हो रहा है।
महाराष्ट्र की तुलना में देश के अन्य राज्यों में गुजरात में शंकर सिंह वाघेला, आंध्र प्रदेश में एन चंद्रबाबू नायडू, तमिलनाडु में जयललिता, कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा, ममता बनर्जी जैसे कुछ प्रमुख नेता हैं, जिन्होंने अपने मूल दल से अलग हो कर नया दल गठित किया और मुख्यमंत्री का पद हासिल किया। हालांकि ये सभी नेता नए दलों का गठन करने के लिए जाने गए. इन नेताओं ने न तो मुख्यमंत्री बनने के लिए किसी दल में प्रवेश किया और न ही पद पाने के बाद अपनी पार्टी छोड़ी थी।
फिलहाल राजनीति के नए दौर में अनेक नेताओं के लिए ‘जिधर की हवा, उधर के हम’फार्मूला है। कुछ के लिए यह निष्क्रियता से बाहर निकलने का रास्ता है, कुछ के लिए मजबूरी का कोई सहारा है। यदि नई पारी में परिणाम नहीं मिलते हैं तो राजनीति के नेपथ्य में जाने का भी बड़ा खतरा बना रहता है। हालांकि यह हर नेता की अपनी ताकत, क्षमता और राजनीतिक कुशलता से जुड़ा विषय है। मगर इतना तय है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों की निष्ठा बदलना या निष्ठा बदल कर मुख्यमंत्री बनना कोई नई बात नहीं है। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के पाला बदलने को लेकर चौंका नहीं जाना चाहिए। न ही उनकी आलोचना की जानी चाहिए। हालांकि चौंकने के अवसर बार-बार नहीं आने के बारे में विचार अवश्य होना चाहिए।