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ब्लॉग: लोकतंत्र के प्रति आस्था गहरी करनेवाला फैसला

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: February 22, 2024 10:48 IST

चंडीगढ़ के महापौर के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया, वह लोकतंत्र के प्रति न्यायपालिका की गहरी आस्था को परिलक्षित करता है। साथ ही इस फैसले से न्यायपालिका के प्रति आम आदमी का विश्वास भी मजबूत होगा।

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ठळक मुद्देभारत में लोकतंत्र की जड़ें बेहद मजबूत हैं लोकतंत्र की सशक्त प्रहरी संसद है न्यायपालिका लोकतंत्र के लिए एक मजबूत कवच की तरह है

भारत में लोकतंत्र की जड़ें बेहद मजबूत हैं और किसी एक व्यक्ति की इच्छा, विचारधारा या गतिविधि उसे कमजोर नहीं कर सकती। लोकतंत्र की सशक्त प्रहरी संसद है और न्यायपालिका लोकतंत्र के लिए एक मजबूत कवच की तरह है। चंडीगढ़ के महापौर के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया, वह लोकतंत्र के प्रति न्यायपालिका की गहरी आस्था को परिलक्षित करता है। साथ ही इस फैसले से न्यायपालिका के प्रति आम आदमी का विश्वास भी मजबूत होगा। चंडीगढ़ नगर निगम के महापौर के चुनाव में आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। नगर निगम में इन दलों के गठबंधन के पास  चुनाव जीतने के लिए स्पष्ट बहुमत था। 

भाजपा ने लोकतांत्रिक परंपराओं का पालन करते हुए अपना प्रत्याशी भी मैदान पर उतारा। लोकतंत्र में संख्याबल बेहद महत्वपूर्ण होता है। स्थानीय निकायों से लेकर संसद तक में विपक्ष विभिन्न चुनाव में अपनी हार सुनिश्चत जानकर भी प्रत्याशी खड़ा करता है। चुनाव पारदर्शी, निष्पक्ष तथा ईमानदार तरीके से लड़कर राजनीतिक पार्टियां या समूह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत ही बनाते हैं। यह बात अलग है कि कई बार  इन चुनावों में अनैतिक रास्ते भी अपनाए जाते हैं, लेकिन भारतीय लोकतंत्र को ऐसी अनैतिक घटनाओं ने कमजोर नहीं बनाया बल्कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ऐसी अग्निपरीक्षाओं में कुंदन की तरह निखरी है। चंडीगढ़ के महापौर चुनाव में शुरू से ही गड़बड़ी होने के संकेत मिलने लगे थे। 

पहले निर्वाचन अधिकारी के खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर चुनाव टाला गया। मामला कोर्ट तक पहुंचा। न्यायालय के सख्त रवैये के बाद चुनाव हुआ और निर्वाचन अधिकारी अनिल मसीह ने लोकतंत्र की मर्यादाओं को तार-तार करने का कुचक्र रचा। अपनी व्यक्तिगत विचारधारा को उन्होंने ज्यादा महत्व दिया और मतपत्रों के साथ छेड़छाड़ कर चुनाव नतीजों को प्रभावित किया। यह एक अक्षम्य अपराध था।

विजयी होने के पात्र उम्मीदवार के पक्ष में डाले गए मतपत्रों को छेड़छाड़ कर उसे अवैध घोषित कर निश्चित रूप से हार रहे प्रत्याशी को विजयी घोषित कर उन्होंने संबंधित नियमों-कानूनों की धज्जियां उड़ाईं तथा लोकतंत्र की गरिमा पर कुठाराघात करने की साजिश रची। यह अपराध करनेवाले अनिल मसीह भाजपा के सदस्य हैं। भाजपा की विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण अपनी जगह है। यह निष्ठा और समर्पण उन्हें लोकतंत्र की मर्यादाओं के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार नहीं प्रदान करती। 

भाजपा दुनिया की सबसे विशाल राजनीतिक पार्टी समझी जाती है और यह गौरव उसने लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रति अपनी गहरी आस्था का पालन करते हुए हासिल किया है। हर विफलता के बाद भाजपा ने प्रत्येक स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हिस्सा लेकर खुद को मजबूत बनाया और देश की जनता का विश्वास अर्जित किया। भाजपा की वास्तविक शक्ति उसका लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित संगठनात्मक ढांचा तथा कार्य हैं।

पार्टी ने हमेशा लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए ही योगदान  दिया है। ऐसे में विपक्ष का यह आरोप हास्यास्पद लगता है कि भाजपा नेतृत्व के इशारे पर अनिल मसीह ने चुनाव परिणामों में हेराफेरी की है। मसीह शायद इस मुगालते में थे कि पार्टी नेतृत्व को खुश करने के लिए लोकतंत्र की छवि धूमिल करने वाला अनैतिक कार्य भी किया जा सकता है, लेकिन नतीजा उल्टा हुआ। पार्टी उनसे बहुत नाराज हो गई और सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें दंडित करने का निर्देश दिया है। 

हमारे देश में लोकतांत्रिक गरिमा को ठेस पहुंचाने की घटनाएं पहले भी हुई हैं। सत्ता के लिए सामूहिक दलबदल और एक ही दिन में पार्टियां बदलने का अफसोसजनक दौर भी देश ने देखा। सत्ता के लिए धनबल का खेल अब भी दिखाई देता है लेकिन मतपत्रों से निर्लज्ज होकर निर्वाचन अधिकारी द्वारा छेड़छाड़ करने की घटना पहली बार सामने आई है।

देश का आम मतदाता इससे स्तब्ध रह गया। उसकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर थीं और अदालत ने उसे निराश नहीं किया। लोकतंत्र के चार स्तंभों में न्यायपालिका की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इससे हर कोई परिचित है। भारत में लोकतंत्र की असली ताकत उसके चारों स्तंभ तथा आम मतदाता की विवेकशक्ति है। 

लोकतंत्र के साथ जिस किसी पार्टी, संगठन, समूह या व्यक्ति ने खिलवाड़ करने की कोशिश की, मतदाता ने उसे करारा सबक सिखाया और लोकतंत्र के चारों प्रहरियों ने अपनी भूमिका का सशक्त निर्वाह किया। चंडीगढ़ के महापौर चुनाव में निर्वाचन अधिकारी का कृत्य निश्चित रूप से शर्मनाक था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा दूरगामी फैसला सुनाया, जिससे भविष्य में कोई ऐसे कृत्य की पुनरावृत्ति करने का दुस्साहस नहीं करेगा।

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