यूनेस्को विरासत में भारत का सांस्कृतिक आलोक
By योगेश कुमार गोयल | Updated: December 12, 2025 07:39 IST2025-12-12T07:38:52+5:302025-12-12T07:39:22+5:30
यह दृश्य केवल भावनात्मक नहीं था बल्कि एक सांस्कृतिक-राजनयिक संकेत था कि विश्व अब भारतीय परंपराओं को न केवल समझने बल्कि संरक्षित करने और साझा करने की इच्छा भी रखता है.

यूनेस्को विरासत में भारत का सांस्कृतिक आलोक
प्रकाश पर्व दीपावली अब विश्व संस्कृति के आकाश में अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक तेज के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है. यूनेस्को द्वारा इसे मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया जाना केवल किसी उत्सव के सम्मान का औपचारिक निर्णय नहीं है बल्कि यह भारतीय सभ्यता की उस दीर्घजीवी सांस्कृतिक चेतना का वैश्विक स्वीकार है, जिसकी जड़ें हजारों वर्षों के सामाजिक विकास, आध्यात्मिक साधना और लोक परंपराओं की निरंतरता में निहित हैं.
8 से 13 दिसंबर 2025 तक लाल किले में आयोजित यूनेस्को की 20वीं अंतर-सरकारी समिति के सत्र के दौरान जब यह घोषणा दुनिया के सामने आई तो वह क्षण भारतीय संस्कृति के प्रभाव और प्रतिष्ठा का प्रतीक बनकर उभरा. यह पहली बार था, जब भारत ने इस महत्वपूर्ण सत्र की मेजबानी की और उसी ऐतिहासिक धरोहर के प्रांगण में दीपावली को वैश्विक सांस्कृतिक विरासत का दर्जा मिला.
लाल किले की प्राचीरों के बीच जब विश्व के 194 देशों के प्रतिनिधि, अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ और सांस्कृतिक नेटवर्क के सदस्य मौजूद थे, उन ऐतिहासिक पलों में गूंजती ‘वंदे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ की स्वर लहरियों ने बतलाया कि संस्कृति की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता जब स्थलीय स्मृति और सामूहिक भावना से मिलती है तो वह किसी राष्ट्र की आत्मकथा बन जाती है. यह दृश्य केवल भावनात्मक नहीं था बल्कि एक सांस्कृतिक-राजनयिक संकेत था कि विश्व अब भारतीय परंपराओं को न केवल समझने बल्कि संरक्षित करने और साझा करने की इच्छा भी रखता है.
यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल होने के साथ ही दीपावली ने विश्व के सांस्कृतिक मानचित्र पर अपना स्थायी और गरिमामय स्थान प्राप्त कर लिया है. जिस राष्ट्र की मिट्टी ने ज्ञान, तप, कला और धर्म के अनगिन रूपों को जन्म दिया, उसी भूमि के हृदय स्थल में उसकी सबसे लोकप्रिय सांस्कृतिक परंपराओं में से एक को वैश्विक विरासत का दर्जा मिलना एक ऐतिहासिक अध्याय बन गया. यह मान्यता भारत की 16 सांस्कृतिक विरासतों की श्रृंखला में एक नया उज्ज्वल जोड़ है.
कुंभ मेला, दुर्गा पूजा, गरबा, योग, वेदपाठ, रामलीला, छऊ, ठठेरा कारीगरी, संकीर्तन और नवरोज की परंपरा के बाद अब दीपावली भी इस वैश्विक धरोहर का हिस्सा है. यह सूची बताती है कि भारत की संस्कृति केवल संरक्षित इतिहास और अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि जीवंत वर्तमान और भविष्य का सांस्कृतिक निवेश है.
दीपावली को यूनेस्को सूची में शामिल किया जाना इस बात की स्वीकृति है कि दीयों की यह परंपरा केवल भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं है बल्कि मानवीय भावनाओं, सामाजिक एकजुटता और आध्यात्मिक आकांक्षा का वैश्विक प्रतीक बन चुकी है. भारत द्वारा प्रस्तुत नामांकन दस्तावेज की विशेषता इसकी व्यापकता और समावेशिता में निहित रही.
आदिवासी समुदायों से लेकर शहरी कलाकारों तक, किसान समूहों से लेकर प्रवासी भारतीयों तक, कुम्हारों, रंगोली कलाकारों, मिठाईकारों और विभिन्न धार्मिक समुदायों के अनुभवों और प्रमाणों को इसमें शामिल किया गया. यह प्रक्रिया यह दर्शाती है कि दीपावली किसी एक धार्मिक समूह की परंपरा नहीं बल्कि भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे की साझा धरोहर है. इसी व्यापकता और जीवंतता ने इसे वह मानक प्रदान किया, जिसकी अपेक्षा यूनेस्को किसी भी तत्व में करता है.