चुनाव के मोड़ पर पहुंचता देश

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: July 12, 2018 01:01 PM2018-07-12T13:01:00+5:302018-07-12T13:01:00+5:30

मानिए या न मानिए, प्रधानमंत्नी भी चुनावी मूड में आ चुके हैं। 18 जुलाई से संसद का मानसून सत्न शुरू हो रहा है और उससे पहले मोदी रैलियों की तैयारियों में हैं।

Country reaches at the turn of the election | चुनाव के मोड़ पर पहुंचता देश

चुनाव के मोड़ पर पहुंचता देश

मानिए या न मानिए, प्रधानमंत्नी भी चुनावी मूड में आ चुके हैं। 18 जुलाई से संसद का मानसून सत्न शुरू हो रहा है और उससे पहले मोदी रैलियों की तैयारियों में हैं। 11 जुलाई को पंजाब के मलोट में रैली की तो 14 जुलाई को आजमगढ़ में रैली करेंगे। 15 जुलाई को बनारस और मिर्जापुर में रैली होगी तो 16 जुलाई को ममता बनर्जी के गढ़ पं। बंगाल के मिदनापुर में रैली होगी। दूसरी तरफ राहुल गांधी भी समझ रहे हैं कि चुनाव इसी बरस के अंत तक भी हो सकते हैं। अपनी जमीन को पुख्ता बनाने में वह भी लग चुके हैं। पहली बार मुस्लिम तुष्टिकरण को दिखलाने से दूर कांग्रेस की कमान संभाले राहुल गांधी ने 11 जुलाई को मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की। 12-13 जुलाई को राज्यों को लेकर दिल्ली में चिंतन होगा और 15-16 जुलाई को गुजरात के अमरेली-भावनगर में नजर आएंगे। 

लेकिन अब 2019 के चुनाव को लेकर जो हड़बड़ाहट मोदी और अमित शाह में दिखाई दे रही है, वह संकेत ये भी दे रही है कि जमीन पुख्ता नजर नहीं आई तो चुनाव पहले भी हो सकते हैं। इसके लिए प्लानिंग तीन स्तर पर चल रही है। पहली यूपी-बिहार को लेकर जहां कुल 120 सीट है और उसमें से भाजपा के पास 2014 में 104 सीट थी, अब 101 हो चुकी है। दूसरी प्लानिंग साउथ की है। दक्षिण के पांच राज्यों में कुल 129 सीट है और भाजपा के पास सिर्फ 21 सीट है। तीसरी प्लानिंग राजस्थान-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ को लेकर है जहां लोकसभा से सिर्फ 5 महीने पहले विधानसभा चुनाव होने हैं और यहां की कुल 64 सीट में भाजपा के पास 62 सीट है। 

साउथ की प्लानिंग तो खुद को टिकाये रखने की कवायद है क्योंकि 17 सीट जिस कर्नाटक से मिली वहां कुमारस्वामी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना गए। फिर डीएमके-एआईडीएमके से कोई समझौता हो नहीं पा रहा है। बिहार-यूपी की प्लानिंग पर लोकसभा चुनाव की तारीख जा अटकी है, जो फेल हुई तो लोकसभा चुनाव भी बरस के आखिर में हो जाएंगे। क्योंकि राजस्थान, मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ में जितनी सीटें हैं, उससे ज्यादा भाजपा जीत नहीं सकती। तीनों राज्य अगर अपने अपने बूते यानी भाजपा के तीन चेहरे वसुंधरा, शिवराज, रमन सिंह के भरोसे चुनाव लड़ेंगे तो ज्यादा आशंका गंवाने की होगी। और गंवाने के बाद सिर्फ 4 महीने का वक्त होगा लोकसभा चुनाव के लिए तो भाजपा संभलेगी कैसे ये सवाल उसके सामने होगा। इसलिए तीन राज्यों के साथ लोकसभा चुनाव की थ्योरी तभी फिट बैठेगी जब यूपी-बिहार में महागठबंधन भाजपा को रोकता हुआ दिखाई दे। पर जिस तरह नीतीश कुमार भाजपा को अपने कद के सामने छोटा आंक रहे हैं वह नई मुश्किल है।  

भाजपा के लिए कांग्रेस से ज्यादा बड़ा खतरा विपक्ष की एकजुटता के बीच मायावती का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उभरना भी है। और हर राज्य के क्षत्नप से मोदी छवि का टकराना है। और यही वह हालात हैं जिसके लिए मोदी-अमित शाह के पास अभी कोई चाणक्य नीति नहीं है। क्योंकि चंद्रगुप्त बने मोदी और चाणक्य बने अमित शाह इस सच से वाकिफ हैं कि मोदी के सामने विपक्ष का कोई एक चेहरा नहीं उभरा तो भाजपा के लिए मुश्किल होगी। मायावती को समूचा विपक्ष मान्यता देता है तो राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में दलित वोट किसी भी सोशल इंजीनियरिंग से टूट नहीं पाएगा। गठबंधन के साथी चंद्रबाबू, चंद्रशेखर राव के बाद शिवसेना के बोल डराने वाले हैं। और जिस तरह जिस वक्त दिल्ली में नीतीश कुमार भाजपा से सौदेबाजी को बढ़ाने के लिए रैली कर रहे थे। उसी वक्त मोदी सरकार के मंत्नी गिरिराज सिंह बिहार के नवादा पहुंचकर सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोपी विहिप और बजरंग दल के नेता से मिलते हैं और हिंदुत्व का राग खुले तौर पर गाते हैं। यानी भाजपा अपने रास्ते को कैसे बना रही है और उसके लिए कौन सी छवि ठीक है जिस तेजी से और जिस अंदाज में वह निकल पड़ी है उसके संकेत तो यही हैं कि चुनाव में जीत का रास्ता मई 2019 तक इंतजार करेगा नहीं।

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Web Title: Country reaches at the turn of the election

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