जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: भ्रष्टाचार कम तो हुआ, पर अभी भी करने होंगे काफी प्रयास
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 8, 2019 11:40 AM2019-12-08T11:40:29+5:302019-12-08T11:40:29+5:30
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट 2019 के तहत कई महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत हुई हैं. पिछले वर्ष 2018 में 56 फीसदी नागरिकों ने कहा था कि उन्होंने रिश्वत दी है
नौ दिसंबर को पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार निरोध दिवस मनाकर लोगों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जागरूक किया जाता है. ऐसे में यदि हम भारत की ओर देखें तो पाते हैं कि देश के करोड़ों लोगों की खुशहाली, अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने तथा विकास के ऊंचे सपने को साकार करने के लिए भ्रष्टाचार पर नियंत्नण की डगर पर अभी मीलों चलना जरूरी है. वस्तुत: सरकार के कई प्रयासों के बाद भी भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी देश की बड़ी आर्थिक-सामाजिक बुराई बने हुए हैं. पिछले माह 26 नवंबर को ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा वर्ष 2019 की दुनिया के 180 देशों की भ्रष्टाचार के मामले में प्रकाशित की गई सूची में भारत को 78वें स्थान पर रखा गया है. भ्रष्टाचार के मामले में ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की सूची में भारत की रैंकिंग पिछले साल के मुकाबले तीन पायदान सुधरी है. पिछले वर्ष भारत 81वें क्र म पर था.
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट 2019 के तहत कई महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत हुई हैं. पिछले वर्ष 2018 में 56 फीसदी नागरिकों ने कहा था कि उन्होंने रिश्वत दी है, जबकि इस वर्ष 2019 में ऐसे लोगों की संख्या घटकर 51 फीसदी रह गई है. खास तौर पर देश में पासपोर्ट और रेल टिकट जैसी आम आदमी से जुड़ी विभिन्न सुविधाओं में डिजिटलीकरण और कम्प्यूटरीकरण किए जाने से रिश्वत और भ्रष्टाचार में कमी आई है. इस सर्वेक्षण में यह बात भी उभरकर आई कि सरकारी दफ्तरों में अभी भी बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी की जा रही है.
देश में भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि केंद्र सरकार के कार्यालयों के साथ-साथ राज्य सरकारों के कार्यो में भी भ्रष्टाचार बढ़ा हुआ है. परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग रिश्वत को एक सुविधा शुल्क के रूप में मान्य करने लगे हैं. ऐसे लोगों की संख्या 2018 में 22 फीसदी थी. वर्ष 2019 में ऐसा मानने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 26 फीसदी हो गई है. सर्वेक्षण में 26 फीसदी लोगों ने यह भी माना कि प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन और जमीन से जुड़े मामलों में उन्हें रिश्वत देनी पड़ी है. इसी तरह 19 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें पुलिस विभाग में रिश्वत देनी पड़ी.
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे 2019 में यह भी बताया गया कि भ्रष्टाचार और रिश्वत के मामले में दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल और ओडिशा कम भ्रष्ट राज्य हैं जबकि राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब सबसे भ्रष्ट राज्य हैं. निश्चित रूप से भारत में भ्रष्टाचार में कुछ कमी आई है. इस परिप्रेक्ष्य में दुनिया की ख्यातिप्राप्त शोध अध्ययन संस्था टॉलबर्ग के हाल ही में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार 97 फीसदी भारतीय मानते हैं कि आधार कार्ड की वजह से सरकारी राशन, सरकार के द्वारा किसानों को दी जाने वाली सहायता राशि और मनरेगा जैसे भुगतान काफी हद तक भ्रष्टाचार शून्य हो गए हैं. इसमें दो मत नहीं है कि देश में नवंबर, 2016 में नोटबंदी के बाद कालाधन जमा करने वाले लोगों में घबराहट बढ़ी है.
नोटबंदी के बाद आयकरदाताओं की संख्या भी बढ़ी. वर्ष 2016-17 की तुलना में वर्ष 2018-19 में आयकर रिटर्न फाइल होने की संख्या करीब दोगुनी हो गई. नि:संदेह सरकार ने पिछले पांच वर्षो के दौरान कर के दायरे में ज्यादा लोगों को लाने के लिए कई कदम उठाए हैं. अब कर विभाग निवेश एवं बड़े लेनदेन समेत कई स्रोतों से आंकड़े जुटाता है. आयकर और जीएसटी नेटवर्क को आपस में जोड़ दिया गया है. डाटा एनालिटिक्स से लोगों के खर्चो और बैंक लेन-देन पर नजर रखी जा रही है.
हम आशा करें कि केंद्र और राज्य सरकारें देश के विकास के मद्देनजर ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट 2019 के तहत भारत में अभी भी भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के चिंताजनक 78वें क्रम को ध्यान में रखते हुए भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को नियंत्रित करने के लिए और अधिक कारगर प्रयास करेंगी.