विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः प्रार्थना पर विवाद पैदा करना स्वीकार्य नहीं

By विश्वनाथ सचदेव | Published: October 24, 2019 09:02 AM2019-10-24T09:02:05+5:302019-10-24T09:02:05+5:30

अल्लामा इकबाल वही शायर हैं जिन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ गीत लिखा था. जब देश के राष्ट्रगान के बारे में संविधान सभा में निर्णय लिया जा रहा था तो ‘जन-गण-मन’ का एक विकल्प इकबाल का यह तराना भी था.

Controversy over prayer is not acceptable, prayer issue of Bisalpur Primary School in Pilibhit District | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः प्रार्थना पर विवाद पैदा करना स्वीकार्य नहीं

File Photo

नहीं, अल्लामा इकबाल की ‘प्रार्थना’ मैंने पहले नहीं पढ़ी थी. यह तो जब पीलीभीत जिले की बीसलपुर प्राथमिक शाला में एक प्रार्थना गवाने के आरोप में निलंबन का विवाद मीडिया में उभरा तो मैंने वह प्रार्थना खोजी थी- लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी. गूगल किया तो एक बच्ची की आवाज में यह प्रार्थना सुनी. फिर, कैलिफोर्निया में ‘हिंदी-उर्दू बैठक’ के एक आयोजन में वहां उपस्थित लोगों को सामूहिक रूप से यह प्रार्थना गाते हुए सुना. 

कैलिफोर्निया वाले इस कार्यक्रम में वहां रहने वाले हिंदू-मुसलमान दोनों थे. इस प्रार्थना के साथ ही वहां ‘हम को मन की शक्ति देना...’  वाली प्रार्थना का पाठ भी हुआ था. भारत की उस बच्ची के पाठ के साथ कैलिफोर्निया के इस कार्यक्र म को सुनने के बाद मैं सोच रहा था, आखिर क्यों किसी को इस प्रार्थना से शिकायत हो सकती है? क्या केवल इसलिए कि यह प्रार्थना इकबाल की लिखी हुई है? या कि पाकिस्तान के स्कूलों में यह प्रार्थना होती है? या इसलिए कि बीसलपुर वाले जिस स्कूल में यह प्रार्थना पढ़ी जाती है, उसका हेडमास्टर एक मुसलमान है? यदि इनमें से एक भी कारण विवाद के पीछे है तो यह बात हमारे विवेक पर सीधा सवालिया निशान है.  

बारह पंक्तियों की इस प्रार्थना में शम्मा की तरह अपनी जिंदगी होने की तमन्ना की गई है, ताकि ‘दूर दुनिया का मिरे दम से अंधेरा हो जाए’. इस सारी प्रार्थना में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसपर किसी विवेकशील व्यक्ति को एतराज होना चाहिए. पर कुछ लोगों को एतराज हुआ. 

उन्हें यह शिकायत है कि यह प्रार्थना मदरसों में गाई जाती है, इसलिए सरकारी स्कूल में नहीं गाना चाहिए. बताया गया है कि एक कथित हिंदूवादी संगठन के किसी सदस्य ने शिकायत की थी और बिना किसी जांच के संबंधित हेडमास्टर, फुरकान अली को निलंबित भी कर दिया गया. स्कूल के विद्यार्थियों के विरोध पर यह निलंबन तो फिलहाल वापस ले लिया गया है, पर हेडमास्टर का तबादला भी कर दिया गया है! 

जबकि हकीकत यह है कि पैंतालीस वर्षीय फुरकान अली ने सन 2011 में इस स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था. तब इस स्कूल में प्राथमिक शाला में कुल 71 छात्र थे. फुरकान अली छात्रों के प्रिय अध्यापक इसलिए भी हैं कि वे तन-मन-धन से स्कूल की बेहतरी में लगे हैं. अली का कहना है कि ‘मैंने एक-एक र्इंट जोड़कर यह स्कूल बनाया है. यहां बच्चों के बैठने की जगह भी नहीं थी.’ 

उनका यह भी कहना है कि इकबाल की लिखी यह प्रार्थना पांचवीं कक्षा में पढ़ाई जाने वाली किताब में है, फिर बच्चे इस कविता का पाठ क्यों नहीं कर सकते? सुना है राज्य का शिक्षा विभाग अब सारे प्रकरण की जांच कर रहा  है. क्या जांच इस बात की भी होगी कि क्यों कुछ तत्वों द्वारा इकबाल की लिखी इस प्रार्थना पर आपत्ति की गई और क्यों किसी जांच के बिना हेडमास्टर को निलंबित कर दिया गया?

अल्लामा इकबाल वही शायर हैं जिन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ गीत लिखा था. जब देश के राष्ट्रगान के बारे में संविधान सभा में निर्णय लिया जा रहा था तो ‘जन-गण-मन’ का एक विकल्प इकबाल का यह तराना भी था. आज भी यह गीत राष्ट्रीय त्यौहारों पर बड़ी शान से गाया जाता है और गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजमार्ग पर इस गीत की धुन भी गूंजती है. ‘लब पे आती है दुआ... ’  वाला गीत भी इकबाल ने 1902 में लिखा था, यानी सौ साल से भी अधिक समय से यह गीत हमारे देश में गाया जा रहा है, और कुछ पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ाया भी जा रहा है. 

जिस स्कूल में फुरकान अली पढ़ाते हैं, वहां की कक्षा पांच के एक छात्र से जब पूछा गया कि क्या वह इस गीत का मतलब जानता है तो उसने जवाब दिया था, ‘वो एकता के बारे में है’. छात्रों का यह भी कहना है कि जब हम ‘वह शक्ति हमें दो दयानिधे’ गा सकते हैं तो ‘लब पे आती है दुआ’ क्यों नहीं गा सकते?  

यह सवाल उस एक अधिकारी से ही नहीं पूछा गया है जिसने फुरकान अली के खिलाफ कार्रवाई की है, यह सवाल इस देश की समूची चेतना के सामने है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ का संदेश दिया था और ईश्वर या अल्लाह से प्रार्थना की थी कि वह हमें सन्मति दे. आज हम उस संदेश को भी भूल गए और, लगता है,  सन्मति का मतलब ही भुला बैठे हैं. एक अजीब-सी हवा बहाने की कोशिश हो रही है देश में धार्मिक अलगाव का माहौल बनाने के लिए? 

यह सही है कि 1947 में जब हम आजाद हुए तो देश का बंटवारा हुआ था, पर हमारे नेतृत्व ने धर्म के आधार पर यह बंटवारा नहीं स्वीकारा था. हमारा संविधान देश के हर नागरिक को, भले ही वह किसी भी धर्म में विश्वास करता हो, समान अधिकार देता है. हमारी संस्कृति सब धर्मों को समान आदर देने की प्रेरणा देने वाली है. हमारी सभ्यता धर्म के नाम पर किसी प्रकार का भेद-भाव करने की अनुमति नहीं देती. पर इस सबके बावजूद हम देख रहे हैं कि जब-तब देश में धर्म के नाम पर दीवारें उठाने की कोशिशें होती रहती हैं. ‘लब पे आती है दुआ’ का विरोध भी ऐसी ही किसी कोशिश का हिस्सा है. सवाल उठता है कि यदि यह प्रार्थना गवाने वाला मुख्याध्यापक मुसलमान की जगह हिंदू होता तब भी क्या इस कविता का विरोध होता?

क्यों जरूरी हो कि देशभर के स्कूलों में एक ही प्रार्थना की जाए? कैलिफोर्निया की हिंदी-उर्दू बैठक में ‘लब पे आती है दुआ’ और ‘हम को मन की शक्ति देना’ साथ-साथ गाई जाती हैं तो बीसलपुर की प्राथमिक शाला में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? वह हर चीज जो देश को, समाज को, बांटने की कोशिश करती है राष्ट्र के विरुद्ध एक अपराध है. ऐसा अपराध किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. आवश्यकता देश के हर नागरिक को एक-दूसरे से जोड़ने की है, धर्म के नाम पर बांटने की हर कोशिश का हर संभव विरोध होना चाहिए. ऐसी कोशिशों का हारना ही देश की जीत है. 

Web Title: Controversy over prayer is not acceptable, prayer issue of Bisalpur Primary School in Pilibhit District

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