जब पहली बार वजूद में आया 'पाकिस्तान' का नाम, इस शख़्स ने किया था टाइप!
By मोहित सिंह | Published: May 7, 2018 01:42 PM2018-05-07T13:42:39+5:302018-05-11T15:54:34+5:30
'पाकिस्तान' का वजूद कैम्ब्रिज स्थित हम्बरस्टोन रोड के कॉटेज नंबर 03 में एक 40 साल के अधेड़ पुरुष द्वारा साढ़े चार पेज के एक डॉक्यूमेंट में प्रस्तुत किया गया था जो आगे चलकर भारत के लिए एक नासूर बन कर रह गया.
28 जनवरी 1933। एक ऐसा दिन जो शायद इतिहास में लिखा ना गया हो लेकिन उसने एक देश का इतिहास बदल दिया। इस दिन ही लिखी गयी थी भारत के एक हिस्से को काटने की तैयारी 'पाकिस्तान' के नाम से। 28 जनवरी 1933 के दिन ही कैम्ब्रिज के हम्बरस्टोन रोड स्थित कॉटेज नंबर 03 में 40 साल के शख़्स चौधरी रहमत अली ने भारत से अलग एक देश 'पाकिस्तान' बनाने का प्रस्ताव रखा था।
साढ़ें चार पन्ने का ये छोटा सा प्रस्ताव एक बहुत बड़ा देश ज़ख्म दे गया और इस एक प्रस्ताव की वजह से एक देश दो अलग मुल्कों में बात गया और ना जाने कितने परिवारों से उनका आसरा छीन लिया, ना जाने कितने ही लोगों की बलि चढ़ गयी इस एक छोटे से प्रस्ताव से। किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट', जिसके लेखक उपन्यासकार डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स थे, में इस घटना का उल्लेख किया गया था।
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किताब के अनुसार रहमत अली ने प्रस्ताव में साफ़ तौर पर लिखा था, 'भारत को अखंड रखने की बात हास्यास्पद और फूहड़ है। भारत के जिन उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों की बहुसंख्या है, उन्हें अलग करके मिला दिया जाए। पंजाब, कश्मीर, सिंध, सीमान्त प्रदेश, बलूचिस्तान को मिलाकर एक नया देश बने जिसका नाम हो पाकिस्तान। प्रस्ताव के अंत में लिखा था ''हिंदू राष्ट्रीयता की सलीब पर हम ख़ुदकुशी नहीं करेंगे।''
मोहम्मद अली जिन्ना को खुद इस बात का पता नहीं था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों के इस प्रस्ताव को पूरा करने का माध्यम बनने वाली थी। रहमत अली ने इस प्रस्ताव को मोहम्मद अली जिन्ना को पेश करने के लिए एक ख़ास डिनर पार्टी का वोल्फर्ड होटल में आयोजन किया था। पाकिस्तान के पहले वज़ीरे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने 1933 में डिनर के दौरान प्रस्ताव को सिरे से अस्वीकार कर दिया था। मोहम्मद अली जिन्ना के अनुसार अलग पाकिस्तान एक असंभव ख़्वाब की तरह से था जो कभी भी पूरा नहीं होना था।
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चूंकि भारत के मुसलामानों मोहम्मद अली जिन्ना की पकड़ बेहद मजबूत थी इसलिए रहमत अली इस काम की बागडोर जिन्नाह को ही देना चाहते थे। पार्टी के दौरान काफी बहस और जिरह के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने इस काम की जिम्मेदारी लेने से साफ़ मना कर दिया था। किसे पता था जो मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज़ कर चुके थे वो ही एक दिन देश के बंटवारे के जिम्मेदार होंगे और इतिहास में उनका न एक राष्ट्रद्रोही और विलेन के तौर पर लिया जायेगा।
देश की आजादी में मुस्लीम लीग कांग्रेस के साथ मिल कर आंदोलन चला रहा था लेकिन कांग्रेस में गाँधी के बढ़ते कद की वजह से जिन्नाह ने कांग्रेस से दूरी बनाना शुरू कर दिया। गाँधी के विचारों से असहमत जिन्ना 1937 के चुनाव से कांग्रेस से पूरी तरह नफरत करने लगे। १९३७ के इलेक्शन में कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से उन राज्यों में सहयोग लेने से बिलकुल मना कर दिया था जहां मुसलमानों की संख्या बेहद काम थी। कांग्रेस के इस हरकत ने आग में घी का काम किया और जिन्ना एक ऐसे देश की ख़्वाहिश रखने लगे जो कांग्रेस मुक्त हो।
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एक समय पर हिन्दू-मुसलमान एकता की नुमाइंदगी करने वाले जिन्ना ने इस दौरान अलग देश 'पाकिस्तान' बनाने की पुरजोर कोशिश करना शुरू कर दिया था। उनकी यह कोशिश एक आंदोलन के रूप में पूरे देश के मुसलमानों के दिलों में अगस्त 1946 तक फैल गयी।
जिन्ना अलग पाकिस्तान के लिए डायरेक्ट एक्शन का नारा दे चुके थे। लैपियर और कॉलिन्स की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट के अनुसार, "बम्बई से बाहर लगे एक तंबू में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग के समर्थकों के सामने स्पष्ट किया था कि 'डायरेक्ट एक्शन' का अर्थ क्या है। उसने घोषणा की थी कि अगर कांग्रेस भारत के मुसलमानों को युद्ध के लिए ललकार रही है, तो इसका जवाब देने के लिए हम सहर्ष सामने आएंगे। 'हम भारत को बांटकर रहेंगे', 'या फिर...हम इसे नष्ट कर देंगे।"
16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने देशव्यापी आंदोलन का दिन घोषित किया। इस दिन अलग देश पाकिस्तान के नारे के साथ बहुत सी संख्या में मुसलमान सड़कों पर उतर आये ताकि अंग्रेज शासन को यह सन्देश पहुंच सके कि अब भारत के मुसलमान अलग होकर एक नए देश - पाकिस्तान का निर्माण करना चाहते हैं।
इसी आंदोलन के दौरान कलकत्ता में एक ऐसा दंगा भड़का जिसका ज़िक्र इतिहास में काले अक्षरों में वर्णित होगा। 16 अगस्त की सुबह से ही सभी मुसलमान अपने हाथों में हथियार लिए हुए दंगे-फसाद कर रहे थे और पूरा कलकत्ता दंगे की आग में जल रहा था।
फ्रीडम एट मिडनाइट के लेखकों डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स के अनुसार उस समय तक लॉर्ड लुई माउन्टबेटन भारत के वॉयसराय बन कर दिल्ली आ चुके थे और उनके और मोहम्मद अली जिन्ना के बीच अलग देश बनाने को लेकर लगभग 6 बार मुलाकात भी हो चुकी थी। किताब के अनुसार, ''देश का विभाजन करने पर जिन्ना इस कदर आमादा थे कि मेरे शब्द उनके कान में ही नहीं पड़ रहे थे। हालांकि मैंने ऐसी हर चाल चली जो मैं चल सकता था। ऐसी हर अपील की जो मेरी कल्पना में आ सकती थी। पाकिस्तान को जन्म देने का सपना उन्हें घुन की तरह लग चुका था। कोई तर्क किसी काम न आया।"
मई-जून 47 तक भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का पूरा ख़ाका खिंच चुका था। देश के बंटवारे का पूरे देश को पता चल चुका था। लोग अपनी पुश्तैनी जायदाद औने पौने दामों में बेचकर सुरक्षित जगहों पर जाना शुरू कर चुके थे। देश की आज़ादी और बंटवारे के चंद दिनों पहले खुद जिन्ना ने कराची असेंबली में लोगो को संबोधित करते हुए बोला था -
"आप मंदिर में जाने के लिए आज़ाद हैं, आप मस्जिद में जाने के लिए, या फिर पाकिस्तान में किसी भी पूजा स्थल पर जाने के लिए आज़ाद हैं। आप किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय से हों इससे सरकार को कुछ नहीं लेना।" आखिरकार, अगस्त 1947 को भारत ने एक बेहद बड़ा दंश झेला। भारत के एक टुकड़े को उससे काट कर एक नया नाम - पाकिस्तान दे दिया गया।