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चीन सीमा पर तनाव के पीछे की आखिर क्या है वजह? राजेश बादल का ब्लॉग

By राजेश बादल | Updated: June 30, 2021 18:47 IST

हिंदुस्तान से लगती सीमा पर उसने पचास हजार सैनिक तैनात कर दिए हैं. जवाब में भारत को भी ऐसी ही कार्रवाई करनी पड़ी है.

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ठळक मुद्देचीन ने तिब्बत में अपनी बुलेट ट्रेन दौड़ा कर भारत को सीधा संदेश दिया था. पूर्वी लद्दाख के मिमांग चेतोन में उसने नया फौजी ठिकाना और प्रशिक्षण शिविर बनाया है.तिब्बती नौजवानों को भर्ती किया जा रहा है. आम तौर पर तिब्बतियों की सहानुभूति भारत के साथ रहती है.

करीब 20-22 बरस पहले प्रधानमंत्नी अटल बिहारी वाजपेयी ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था, ‘आप देश की तकदीर बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसियों को नहीं बदल सकते.’

 

यह सर्वकालिक कथन है. विडंबना है कि भारत के दो पड़ोसी चीन और पाकिस्तान इस हकीकत को नहीं समझ रहे हैं. पाकिस्तान तो दुनिया भर में झोली फैलाए भटक रहा है लेकिन बदहाली उसका पीछा नहीं छोड़ रही है. उसे समझना होगा कि उसकी सारी मुश्किलों का समाधान भारत की देहरी पर ही है. लेकिन दूसरा पड़ोसी चीन समझ कर भी हालात को अनदेखा कर रहा है.

भारत को भी ऐसी ही कार्रवाई करनी पड़ी

उसकी साम्राज्यवादी भूख शांत नहीं हुई है. इसीलिए जब तब पड़ोसियों से पंगा लेते रहना उसका शगल बन गया है. साल भर बाद भारत के साथ सीमा पर गंभीर तनाव उसकी इसी मनोवृत्ति का परिणाम है. ताजा जानकारी यह है कि हिंदुस्तान से लगती सीमा पर उसने पचास हजार सैनिक तैनात कर दिए हैं. जवाब में भारत को भी ऐसी ही कार्रवाई करनी पड़ी है.

इससे पहले चीन ने तिब्बत में अपनी बुलेट ट्रेन दौड़ा कर भारत को सीधा संदेश दिया था. चंद रोज पहले उसने अपनी सीमा में ब्रह्वपुत्न नद (जिसे चीन यारलुंग जांगबो कहता है) के किनारे एक लंबा राजमार्ग बनाया था. इसी दरम्यान पूर्वी लद्दाख के मिमांग चेतोन में उसने नया फौजी ठिकाना और प्रशिक्षण शिविर बनाया है. यह शिविर वास्तविक नियंत्नण रेखा से सटा हुआ है.

चीनी सैनिक अक्सर मात खाते थे

इसमें तिब्बती नौजवानों को भर्ती किया जा रहा है. आम तौर पर तिब्बतियों की सहानुभूति भारत के साथ रहती है. पर इस शिविर में उन्हें निंदनीय जानकारियां देकर भारत के खिलाफ भड़काया जा रहा है. प्रशिक्षित तिब्बतियों को सिक्किम और भूटान सीमा पर तैनात भी कर दिया गया है. चीन को इसका लाभ यह है कि इस पहाड़ी क्षेत्न में जंग जैसी स्थिति में चीनी सैनिक अक्सर मात खाते थे.

तिब्बती नौजवानों के साथ ऐसा नहीं है. वह तिब्बती युवकों का वैसा ही इस्तेमाल कर रहा है, जैसा पाक कश्मीरी नौजवानों का कर रहा है. वैसे तो किसी भी संप्रभु राष्ट्र को यह अधिकार है कि वह अपने देश की धरती पर विकास का कोई भी काम करे और अपने प्रत्येक नागरिक की हिफाजत करे. लेकिन जब ऐसे कार्यों के पीछे मंशा पड़ोसियों को परेशान करने की हो तो उसे कतई जायज नहीं माना जा सकता.

शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान अलग से मुलाकात की

जब भारत अपनी सीमा में इस तरह के काम करता है तो उसे ऐतराज होता है. भारत के साथ पिछले साल गलवान घाटी में खूनी टकराव में चीन के सैनिक भी बड़ी संख्या में मारे गए थे. उसके बाद सितंबर में बनी सैनिक और कूटनीतिक सहमतियों का भी पालन चीन की ओर से नहीं किया गया है. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान अलग से मुलाकात की थी.

इसमें पांच बिंदुओं पर सहमति बनी थी. इनमें सेनाओं की शीघ्र वापसी, भड़काऊ कार्रवाई से बचना, सीमा प्रबंधन पर सहमतियों और प्रोटोकॉल का सम्मान तथा नियंत्नण रेखा पर शांति बहाली शामिल थे. यह भी तय हुआ था कि दोनों देश वास्तविक नियंत्नण रेखा से अपनी-अपनी सेनाएं पीछे ले जाएंगे. दस फरवरी से शुरुआत होनी थी, लेकिन चीन ने उस पर भी अमल नहीं किया.

चीन के साथ तनाव की वजह दो बड़े मसले हैं

आज भी हिंदुस्तान और चीन की फौजें आमने-सामने डटी हैं. भारतीय विदेश मंत्नी जयशंकर के इस कथन में क्या आपत्तिजनक है कि भारत और चीन के बीच अच्छे रिश्तों का निर्धारण सीमा पर स्थिति के अनुरूप ही होगा. एस. जयशंकर ने कहा था कि चीन के साथ तनाव की वजह दो बड़े मसले हैं.

एक तो सीमा पर सेनाओं की आमने-सामने तैनाती और दूसरा यह भरोसा नहीं है कि चीन बड़ी संख्या में फौजियों को तैनात नहीं करने के लिखित वादे पर कायम रहेगा. चीन के विदेश मंत्नालय ने अगले दिन ही कठोर शब्दों में जवाब दिया कि भारत उसकी सीमा में अतिक्रमण करता है और उसके सैनिक सरहद पार करके चीन में आ जाते हैं.

चीन मनोवैज्ञानिक दबाव भारत पर डालना चाहता है

उसके प्रवक्ता ने कहा कि चीन सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से जोड़ने के खिलाफ है. जाहिर है उसका इशारा कारोबार की ओर है. भारत के चीन के साथ व्यापार सीमित करने से उसे झटका लगा है. लेकिन उसे समझना होगा कि व्यापार और तकरार एक साथ नहीं चल सकते. चीन अपनी सैनिक क्षमता और अर्थव्यवस्था का मनोवैज्ञानिक दबाव भारत पर डालना चाहता है.

पर जरूरी नहीं है कि कागजों पर बड़े दिखने वाले आंकड़े जमीन पर भी भारी पड़ें. वह अक्सर हिंदुस्तान को 62 की जंग का स्मरण कराता है, लेकिन उसे याद रखना चाहिए कि किस तरह जापान जैसे छोटे से राष्ट्र ने हमला कर उसे बर्बाद कर दिया था. घायल सैनिकों की चिकित्सा के लिए तब चीन ने हिंदुस्तान से ही प्रार्थना की थी.

चीन के साथ बेहतर संबंध रखना चाहेगा

असल में कोरोना के बाद उपजी परिस्थितियों के मद्देनजर चीन आज शेष विश्व में अलग-थलग पड़ गया है. अपने खिलाफ अनेक देशों की मोर्चाबंदी से बौखलाया हुआ है. वह उम्मीद करता था कि अमेरिका में ट्रम्प की हार के बाद नए राष्ट्रपति और उनका प्रशासन चीन के साथ बेहतर संबंध रखना चाहेगा.

कई देशों के संग उसका व्यापार सिकुड़ गया है. वह उधार देकर या अपनी शर्तो पर पूंजी निवेश कर एशिया का चौधरी बनने का सपना देख रहा था, जो धूल धूसरित हो गया है. भारत के साथ तनाव पैदा कर अमेरिका को भी संदेश देना उसका एक मकसद हो सकता है.

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