छिंदवाड़ा ‘कफ सिरप’ मामलाः जानलेवा और नशे का साधन बनतीं खांसी की दवाइयां
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: October 6, 2025 05:39 IST2025-10-06T05:39:15+5:302025-10-06T05:39:15+5:30
Chhindwara 'cough syrup' case: ‘कफ सिरप’ की जांच की गई तो उसमें ‘डायएथिलीन ग्लाइकोल’ की मात्रा निर्धारित सीमा 0.10 प्रतिशत से करीब 480 गुना ज्यादा पाई गई. ‘डायएथिलीन ग्लाइकोल’ को एक विषैला पदार्थ कहा जाता है, जिसकी अधिक मात्रा से शरीर में गंभीर नुकसान हो सकता है.

सांकेतिक फोटो
Chhindwara 'cough syrup' case:मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में ‘कफ सिरप’ पीने से करीब दर्जन भर बच्चों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. सरकार ने कार्रवाई करते हुए ‘कोल्ड्रिफ सिरप’ पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही जिले के परासिया में पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ प्रवीण सोनी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है. इतना सब करने में एक माह का समय लगा. बच्चों की मौत का कारण समझने में लापरवाही की सभी सीमाएं पार कर दी गईं. जिन बच्चों की मौत हुई उनकी जांच रिपोर्ट में साफ था कि ‘सिरप’ पीने के कारण ‘किडनी फेल’ हुई.
जब ‘कफ सिरप’ की जांच की गई तो उसमें ‘डायएथिलीन ग्लाइकोल’ की मात्रा निर्धारित सीमा 0.10 प्रतिशत से करीब 480 गुना ज्यादा पाई गई. ‘डायएथिलीन ग्लाइकोल’ को एक विषैला पदार्थ कहा जाता है, जिसकी अधिक मात्रा से शरीर में गंभीर नुकसान हो सकता है. चिकित्सा और दवा के क्षेत्र में इस प्रकार की घटनाएं लगातार होती रहती हैं.
इन दिनों ‘कफ सिरप’ केवल बच्चों के लिए जानलेवा नहीं बन रहे हैं, बल्कि नशे के बड़े स्रोत बनते जा रहे हैं. कुछ में अल्कोहल की मात्रा अधिक होती है और उन्हें सरलता से मेडिकल स्टोर में पाया जा सकता है. किशोरवयीन और युवा अपनी आस-पड़ोस की दुकानों से ‘कफ सिरप’ पीकर नशे के आदी होते जा रहे हैं.
सवाल यह है कि दवाइयों के निरीक्षक से नियंत्रक तक होने के बावजूद इतनी आसानी से जहरीली और नशीली दवाइयां सहज उपलब्ध कैसे हो जाती हैं? दूसरी ओर चिकित्सक केवल दवा कंपनियों की अपेक्षा अनुसार दवा लिखकर आम आदमी की जिंदगी से खिलवाड़ करते रहते हैं. सरकार और प्रशासन जब तक किसी मामले की अति नहीं होती, तब तक कुंभकर्ण की नींद से जागते नहीं हैं.
छिंदवाड़ा के मामले में एक ही प्रकार की बीमारी से बच्चों की मौत हो रही थी. दवा देने के बाद लक्षण भी समान थे, लेकिन प्रशासन ने न दवा पर रोक लगाई, न उसकी जांच ही करवाई. यह दु:खद स्थिति है. सरकार को चाहिए कि वह दवा कंपनियों के स्तर पर जांच को मजबूत बनाए.
चिकित्सा जगत और दवा कंपनियों के बीच मिलीभगत का खेल आंख मूंद कर नहीं देखा जाए. यह केवल ‘कफ सिरप’ का अकेला मामला नहीं है. अनेक घटिया दवाइयां, कुछ अधिक ही महंगी दवाइयां बाजार और अस्पतालों में उपलब्ध हैं. किंतु डॉक्टर के पर्चे के आगे मरीज विवश हैं, जिससे गड़बड़ियां सामने हैं. जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
नशा और जहर का व्यापार खुलेआम चलने नहीं दिया जा सकता. सरकार को कड़ी कार्रवाई के साथ रोकथाम के लिए पक्के कदम उठाने चाहिए. यदि ऐसे मामले आए-गए कर दिए जाएंगे तो लोग अपनी जान को हमेशा खतरे में पाते नजर आएंगे. डाॅक्टर को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित किया गया है. इस पूरे मामले में शासन और प्रशासन स्तर पर भी गलतियां सामने आई हैं.