शहरी भारत की चुनौतियां

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 15, 2018 07:17 PM2018-09-15T19:17:05+5:302018-09-15T19:17:05+5:30

संयुक्त राष्ट्र विश्व शहरीकरण आकलन, 2018 में कहा गया है कि भारत की करीब 34 फीसदी आबादी शहरों में रहती है। यह साल 2011 के मुकाबले 3 फीसदी ज्यादा है।

Challenges in urban india | शहरी भारत की चुनौतियां

शहरी भारत की चुनौतियां

वरुण गांधी

अहमदाबाद से करीब 15 किमी की दूरी पर स्थित भावनगर के किसान स्थानीय शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अपने गांव को शहरी सीमा में शामिल किए जाने का विरोध कर रहे हैं। ऐसा ही विरोध सूरत, हिम्मतनगर और मोरबी-वांकानेर के करीबी गांवों में भी देखने में आया है। यह असामान्य रु ख है। ऐसा लग रहा है कि शहरीकरण के फायदों को ठुकराया जा रहा है। इस दौरान भारत के शहरी इलाकों में प्रदूषण ने एक रिवर्स माइग्रेशन की शुरुआत कर दी है।

हरियाणा के गांवों के किसान, जो खेती पर आए संकट से खुद को बचाने के लिए ड्राइवर-क्लीनर बनने दिल्ली, गुरुग्राम चले गए थे, जहरीला प्रदूषण बर्दाश्त नहीं कर पाने के चलते सर्दियों में अपने खेतों को लौटने लगे हैं। और अब सिर्फ महानगर ही नहीं- कानपुर या ग्वालियर जैसे छोटे शहर भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में नाम दर्ज कराने लगे हैं। डब्ल्यूएचओ की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 9 अकेले भारत में हैं। भारत का शहरीकरण का मॉडल अब बदलाव के लिए तैयार है।

संयुक्त राष्ट्र विश्व शहरीकरण आकलन, 2018 में कहा गया है कि भारत की करीब 34 फीसदी आबादी शहरों में रहती है। यह साल 2011 के मुकाबले 3 फीसदी ज्यादा है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि मौजूदा महानगरों (ऐसे नगर जिनकी आबादी 50 लाख से ज्यादा है) की आबादी 2005 के बाद से आमतौर पर स्थिर है, और इस दौरान 10-50 लाख आबादी वाले छोटे शहरों की संख्या बढ़कर 34 से 50 हो गई है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुमान के मुताबिक शहरों में रहने वाली आबादी बढ़ते हुए वर्ष 2050 में 81।4 करोड़ तक पहुंच जाएगी। फिर भी भारत के शहर बदहाल, गरीबी में लिपटे, खराब बुनियादी ढांचे के चलते योजना (अगर कोई है!) का बहुत मामूली भौतिक अहसास देते हैं। भारत के ज्यादातर शहर अपनी क्षेत्नीय, भौगोलिक या सांस्कृतिक पहचान की नुमाइंदगी करने के बजाय धीरे-धीरे एक दूसरे की प्रतिकृति बनते जा रहे हैं और ऐसा लगता है कि विश्व के मॉल कल्चर से प्रभावित हैं। 

शहरी आबादी बढ़ने के साथ ही साफ पानी, सार्वजनिक परिवहन, सीवर ट्रीटमेंट और अफोर्डेबल हाउसिंग जैसी बुनियादी सेवाओं की मांग में भी बढ़ोत्तरी होगी। इस बीच, स्मार्ट सिटी के तहत 90 स्मार्ट सिटी में 2,864 परियोजाएं तय की गई हैं, लेकिन जैसा कि अमल के मोर्चे पर यहां हमेशा होता है, सिर्फ 148 परियोजनाएं पूरी हुईं, और 70 फीसदी से अधिक अभी भी तैयारी के विभिन्न चरणों में हैं। मुंबई में नियमित अंतराल पर आने वाली बाढ़, दिल्ली में डेंगू, बेंगलुरु की झील में आग चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। दिल्ली मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर और आने वाली बुलेट ट्रेन का काम निश्चय ही धीमी रफ्तार के साथ जारी है, लेकिन शहरी भारत की चौतरफा चुनौतियां अपनी जगह कायम हैं।

एक और मुद्दा है, शहरों के बुनियादी ढांचे में बहुत कम निवेश और कौशल विकास का। इस समय भी शहरी बुनियादी ढांचे पर भारत सालाना प्रति व्यक्ति करीब 17 डॉलर (करीब 1166 रु।) खर्च करता है; यह वैश्विक स्तर 100 डॉलर (6862 रु ।) और चीन 116 डॉलर (7,960 रु।) की तुलना में काफी कम है। 

Web Title: Challenges in urban india

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