ब्लॉग: चुनावी लोकतंत्र को दलबदलुओं का खेल बनने से बचाएं

By राजकुमार सिंह | Published: May 24, 2024 11:15 AM2024-05-24T11:15:12+5:302024-05-24T11:19:10+5:30

सभी दल जब-तब दलबदल को लोकतंत्र और राजनीति के लिए नुकसानदेह बताते रहते हैं, लेकिन दलबदल का खेल खेलने में संकोच नहीं करते।

Blog: Save electoral democracy from becoming a game of turncoats | ब्लॉग: चुनावी लोकतंत्र को दलबदलुओं का खेल बनने से बचाएं

फाइल फोटो

Highlightsसभी दल जब-तब दलबदल को लोकतंत्र और राजनीति के लिए नुकसानदेह बताते रहते हैंलेकिन बावजूद उसके नेता दलबदल का खेल खेलने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं बेशक देश में दलबदल रोकनेवाले कानून भी हैं, लेकिन नेता अक्सर उन्हें धता बताते नजर आते हैं

सभी दल जब-तब दलबदल को लोकतंत्र और राजनीति के लिए नुकसानदेह बताते रहते हैं, लेकिन दलबदल का खेल खेलने में संकोच नहीं करते। बेशक देश में दलबदल रोकनेवाले कानून भी हैं, पर जिन पर उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी होती है, वे ही अक्सर उन्हें धता बताते नजर आते हैं। महाराष्ट्र में जो हुआ, सबके सामने है। दलबदलुओं के विरुद्ध लंबित याचिकाओं पर फैसला विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर ही आने के उदाहरण तो तमाम हैं।

लोकसभा चुनाव में दलबदलुओं को टिकट की बात करें तो भाजपा ने सबसे ज्यादा 23 दलबदलुओं को उस उत्तर प्रदेश में टिकट दिया है, जो उसका सबसे बड़ा शक्ति स्रोत माना जाता है। प्रतिशत की बात करें तो आंध्र प्रदेश बाजी मार ले गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की तरह भाजपा का भी खाता नहीं खुल पाया था। सो, इस बार भाजपा ने पुराने दोस्त चंद्रबाबू नायडू और उनके दोस्त फिल्म अभिनेता पवन कल्याण से हाथ मिलाया है।

नायडू की टीडीपी और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी से गठबंधन में भाजपा के हिस्से आंध्र की कुल 25 लोकसभा सीटों में से छह आई हैं। आश्चर्यजनक यह है कि इनमें पांच सीटों पर उसने दलबदलुओं को टिकट दिया है। यह जानकर आपकी हैरत और बढ़ सकती है कि अपने सहयोगी दल टीडीपी से आए नेताओं को भी भाजपा ने टिकट दिया है। तेलंगाना में लोकसभा की कुल 17 सीटें हैं, जिनमें से 11 पर भाजपा ने दलबदलू उम्मीदवार उतारे हैं।

इनमें से छह उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जो चुनाव से पहले ही भाजपा में आए। जिस कांग्रेस और बीआरएस के विरुद्ध भाजपा ने तेलंगाना में चुनाव लड़ा, उनसे दलबदल कर आए उम्मीदवारों को भी टिकट दिया गया। शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूट जाने के बाद भाजपा पंजाब में पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही है। पंजाब में लोकसभा की कुल 13 सीटें हैं और उसे सात दलबदलुओं पर दांव लगाना पड़ा है।

जिस हरियाणा में भाजपा की पिछले दस साल से सरकार है, वहां भी उसने आधा दर्जन दलबदलुओं पर दांव लगाया है। ये सभी पूर्व कांग्रेसी हैं। अन्य राज्यों पर भी नजर डालें तो भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 10, महाराष्ट्र में सात, झारखंड में सात, ओडिशा में छह, तमिलनाडु में पांच, कर्नाटक में चार, बिहार में तीन तथा राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और केरल में दो-दो दलबदलुओं को टिकट दिया है।

बेशक उम्मीदवारों की किस्मत का अंतिम फैसला मतदाता ही करते हैं, पर राजनीतिक दलों और नेताओं ने तो दिखा दिया है कि सत्ता के खेल में उनके लिए नीति, निष्ठा और नैतिकता कोई मायने नहीं रखती। मायने रखती है तो सिर्फ जीत- चाहे वह जैसे मिले।

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