विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः विश्व राजनीति में भारत की सक्रिय भूमिका बढ़ानी होगी

By विश्वनाथ सचदेव | Published: October 7, 2020 02:36 PM2020-10-07T14:36:29+5:302020-10-07T14:36:29+5:30

यह सही है कि एक बार फिर 190 में से 187 राष्ट्रों ने भारत को सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में वोट दिया है, पर अस्थायी और स्थायी सदस्य का अंतर बहुत बड़ा है.

Blog of Vishwanath Sachdev: Indias active role in world politics will have to be increased | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः विश्व राजनीति में भारत की सक्रिय भूमिका बढ़ानी होगी

विश्व राजनीति में भारत की सक्रिय भूमिका बढ़ानी होगी

पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री मोदी का भाषण विशेष था ही- एक तो अवसर विशेष था, सारी दुनिया के सर्वोच्च राजनेता मिलकर विश्व की समस्याओं पर चर्चा कर रहे थे, और दूसरे, हमारे प्रधानमंत्री ने खुल कर विश्व-राजनीति में भारत की भूमिका को रेखांकित करते हुए यह पूछा था-‘आखिर कब तक भारत संयुक्त राष्ट्र में अपने उचित स्थान की प्रतीक्षा करता रहेगा?’

ऐसा नहीं है कि पहले कभी भारत ने सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने के अपने दावे को नहीं रखा, पर यह भी सही है कि दुनिया के ताकतवर माने जाने वाले देशों ने अब तक इस दावे की उपेक्षा ही की है. यह सही है कि एक बार फिर 190 में से 187 राष्ट्रों ने भारत को सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में वोट दिया है, पर अस्थायी और स्थायी सदस्य का अंतर बहुत बड़ा है. परिषद के पांच स्थायी सदस्यों को मिला ‘वीटो’ का अधिकार संयुक्त राष्ट्र के क्रिया-कलापों पर उनके नियंत्रण का औजार बना हुआ है. इसी के चलते भारत को अबतक उसका देय नहीं मिला है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1945 में यूएनओ का गठन हुआ था. स्वाभाविक है युद्ध जीतने वाला पक्ष इस संगठन पर हावी रहता. पर आज स्थितियां बदल चुकी हैं. पचास देशों वाले इस संगठन में अब दुनिया के 193 देश सदस्य हैं. फिर, इस बीच दुनिया का भूगोल और इतिहास दोनों बदले हैं. भारत जैसे देश की स्थिति, ताकत और दावे बदले हैं. अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों को भी इस दौरान वह सब नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था.

जहां तक भारत के दावे का सवाल है, प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व-राजनीति में भारत की महत्ता का जिक्र तो किया है, पर अपने भाषण में उन्होंने जिस बात पर विशेष जोर दिया वह इस दौरान हुई भारत की प्रगति का दावा है. उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति का जिक्र किया, छह लाख गांवों में इंटरनेट पहुंचने की बात कही, भारत के ग्रामीणों के बैंक खातों की दुहाई दी, साठ करोड़ लोगों के लिए शौचालयों के निर्माण का उल्लेख किया, भारत की आत्म-निर्भरता के दावे को रेखांकित किया. उन्होंने अपने भाषण में यह भी बताया कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश है, दुनिया की अठारह प्रतिशत आबादी भारत में है, भारत विश्व के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है. यह सब गिनाते हुए ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत के उपयुक्त स्थान और हैसियत का दावा प्रस्तुत किया था. उम्मीद ही की जा सकती है कि दुनिया भर के देशों की पंचायत भारत के दावे पर गौर करेगी. पर हमारे लिए गौर करने की बात यह भी है कि विश्व-राजनीति में, विश्व की अर्थ-व्यवस्था में हम अब तक क्या और कैसी भूमिका निभाते रहे हैं.

वर्ष 1945 में, जब संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ तो भारत अपनी आजादी की लड़ाई के आखिरी चरण में था. दो साल बाद जब भारत आजाद हुआ तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भारत दुनिया भर के शोषितों-वंचितों की बेहतरी और आजादी के लिए लड़ता रहेगा. आजादी मिलने वाली रात को ‘नियति से साक्षात्कार’ वाले अपने प्रसिद्ध भाषण में जब उन्होंने सपनों को पूरा करने की बात कही तो उन्होंने यह कहना भी जरूरी समझा था कि हमारे सपने सिर्फ भारत के लिए नहीं हैं, दुनिया के लिए भी हैं. उन्होंने कहा था, ‘आज दुनिया भर के देश और लोग एक-दूसरे के इतना नजदीक हैं कि कोई भी यह नहीं सोच सकता कि वह अकेला रह सकता है. न आजादी का बंटवारा हो सकता है, न शांति का और न ही समृद्धि का.’ उनके ये शब्द दुनिया भर के लिए एक आश्वासन बन गए थे. बाद के वर्षो में इसी वैश्विक विकास की नीति पर चलते हुए नेहरू ने शीतयुद्ध की चुनौती का मुकाबला करने का अभियान छेड़ा. उनके ‘निगरुट आंदोलन’ ने विश्व-राजनीति में न केवल भारत की भूमिका को स्पष्ट किया, बल्कि भारत को एक विशिष्ट स्थान भी दिया.

आज फिर दुनिया नए संकटों से जूझ रही है. फिर दुनिया पर नए शीत-युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. यूएन की 75वीं सालगिरह के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने दुनिया भर को चेतावनी देते हुए कहा है कि ‘नए शीत-युद्ध के खतरे को टालने के लिए हमें हर संभव प्रयास
करना होगा.’

सवाल उठता है कि इस बदली हुई दुनिया में और नए खतरों के संदर्भ में उस भारत की भूमिका क्या है जिसने आजादी पाने के मौके पर दुनिया भर के शोषितों-पीड़ितों को आजादी पाने में सहयोग का वचन दिया था? संयुक्त राष्ट्र में उचित स्थान पाने के दावे के समर्थन में प्रधानमंत्री ने जो उपलब्धियां गिनाई हैं, वे भी सही हैं. पर सही यह भी है कि इस बीच हम विश्व-राजनीति में अपना कद बढ़ाने में सफल नहीं हो पाए हैं. आज तो स्थिति यह है कि न तो हमारे पड़ोसी हमारे साथ हैं और न ही दूर-दराज के दुनिया के ताकतवर माने जाने वाले देश. आज न चीन हमारे साथ है न रूस. न तुर्की हमारे साथ है, न ब्रिटेन. इसलिए जरूरी है कि भारत शौचालयों और बैंक खातों की उपलब्धियों से ऊपर उठे. ये विकास की बुनियादी बातें हैं, जरूरी हैं. पर विश्व-राजनीति में सार्थक हस्तक्षेप ही हमें दुनिया की पंचायत में उचित स्थान दिला सकता है. यह बात हमें समझनी होगी.

Web Title: Blog of Vishwanath Sachdev: Indias active role in world politics will have to be increased

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