डॉ. एसएस मंठा का ब्लॉग: राजनीतिक दलों के मूल्यांकन का बने तंत्र

By डॉ एसएस मंठा | Published: April 27, 2019 07:18 AM2019-04-27T07:18:57+5:302019-04-27T07:18:57+5:30

लोकतांत्रिक देशों में युद्ध का उन्माद नहीं होता, क्योंकि जनता युद्ध पसंद नहीं करती और उसके देश को युद्ध में झोंकने वाली सत्ता का समर्थन करने की संभावना नहीं होती।

Blog of Dr. SS Mantha: Mechanism for evaluating political parties | डॉ. एसएस मंठा का ब्लॉग: राजनीतिक दलों के मूल्यांकन का बने तंत्र

डॉ. एसएस मंठा का ब्लॉग: राजनीतिक दलों के मूल्यांकन का बने तंत्र

जिन मूल्यों के आधार पर कोई राष्ट्र शासित होता है, उन्हीं से वह पहचाना जाता है। राज्य करने की सभी प्रकार की प्रणालियों में लोकतांत्रिक प्रणाली को सवरेत्कृष्ट समझा जाता है। लोकतांत्रिक प्रणाली किसी को लोकलुभावन लग सकती है तो किसी को प्रातिनिधिक, किसी को उदारवादी लग सकती है तो किसी को कठोर, किसी को प्रत्यक्ष लग सकती है तो किसी को अप्रत्यक्ष, किसी को पार्टी आधारित लग सकती है तो किसी को प्रतिक्रियावादी- अर्थात आप इसे चाहे जिस नजर से देख सकते हैं। यहां तक कि पाकिस्तान में नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों में कटौती वाले लोकतंत्र के एक रूप को भी देखा जा सकता है। फिर भी लोकतांत्रिक प्रणाली सबसे बेहतर है क्योंकि यह नागरिकों को अधिकार देती है कि अपना नेतृत्व करने के लिए वे किसे चुनें। 

लोकतांत्रिक प्रणाली में भ्रष्टाचार नियंत्रण में रहता है क्योंकि उस पर विपक्ष की नजर रहती है। लोकतांत्रिक देशों में युद्ध का उन्माद नहीं होता, क्योंकि जनता युद्ध पसंद नहीं करती और उसके देश को युद्ध में झोंकने वाली सत्ता का समर्थन करने की संभावना नहीं होती। हालांकि ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि लोकतांत्रिक प्रणाली में सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता है।

लोकतांत्रिक प्रणाली में दूरदृष्टि में कमी देखने को मिल सकती है, क्योंकि राजनीतिक दलों को यह विश्वास नहीं होता कि वे फिर से सत्ता में आएंगे या नहीं। इसके अलावा अल्पसंख्यकों में बहुसंख्यकों का भय भी पैदा हो सकता है। धनाढय़ लोगों, पक्षपाती मीडिया और निहित स्वार्थ वाले समूहों द्वारा लोकतंत्र के स्वरूप को विकृत किए जाने की आशंका भी रहती है। 

तब क्या अच्छा लोकतंत्र और खराब लोकतंत्र भी हो सकते हैं? क्या हम अभी भी एक लोकतंत्र के रूप में विकसित हो रहे हैं? क्या न्यूनतम प्रदर्शनों के आधार पर लोकतंत्र को परिभाषित किया जा सकता है? वास्तव में  लोकतंत्र की गुणवत्ता का मूल्यांकन कानून के शासन, जिम्मेदारी की भावना, स्वातंत्र्य और समता के आधार पर किया जा सकता है। हालांकि नागरिकों द्वारा व्यक्त की गई संतुष्टि की भावना से भी कई बार लोकतंत्र का मूल्यांकन किया जा सकता है। 

क्या मतदान से पहले लोगों को इस बात के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है कि वे गलत अथवा साजिशपूर्ण जानकारी से दिग्भ्रमित न हों? क्या हम सरकार का मूल्यांकन करने की कोई प्रक्रिया विकसित कर सकते हैं? जैसे शिक्षण संस्थाओं का मूल्यांकन करके उन्हें दर्जा प्रदान किया जाता है वैसे ही क्या सरकार को भी दर्जा दिया जा सकता है?

लोगों को कितनी तकलीफें सहन करनी पड़ीं, चुनाव सही तरीके से हुआ या नहीं, मतदान में कितने लोगों ने भाग लिया, कामकाज में कितनी पारदर्शिता थी, लोगों की अपेक्षा के अनुरूप सरकार ने काम किया या नहीं, इस तरह के मापदंडों के आधार पर लोकतांत्रिक सरकार और दलों का मूल्यांकन किया जा सकता है। नौकरशाही के आधार पर लोकतांत्रिक व्यवस्था टिकती है। उसी पर कानूनों का पालन कराने की जिम्मेदारी होती है। कार्यक्षम पुलिस बल पर लोगों को कानून द्वारा मिले अधिकारों की रक्षा करने की जिम्मेदारी होती है। इन सभी विभागों के कार्यो का मूल्यांकन किया जा सकता है और उन्हें मिलने वाले अंकों के आधार पर लोकतांत्रिक सरकारें अपने भीतर बदलाव ला सकती हैं। 

इसके अलावा और भी कई मापदंडों के आधार पर मूल्यांकन किया जा सकता है। जैसे- मतदाता सूची से मतदाताओं का नाम गायब होना, ईवीएम मशीन से छेड़छाड़, मतदान केंद्रों पर कब्जा, राष्ट्रीय संसाधनों का दुरुपयोग, राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति करना, रोजगार निर्माण में असफलता, किसानों की परेशानी आदि के आधार पर भी  मूल्यांकन किया जा सकता है, क्योंकि इन मूल्यों पर ही लोकतंत्र का उत्थान या पतन निर्भर करता है। इन मूल्यांकनों के निष्कर्ष के आधार पर लोग तय कर सकते हैं कि किसे वोट देना है।

फर्जी खबरों के प्रसारण और सूचनाओं की चोरी को रोकना आसान नहीं है। साइबर सुरक्षा संबंधी व्यवस्थाएं पूरी तरह से सक्षम नहीं हैं। हैकिंग का खतरा पिछले एक दशक में बढ़ा है और अगर इस पर काबू नहीं पाया गया तो आशंका है कि अगले एक दशक में यह लोकतंत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
चुनावों से लोगों को भारी अपेक्षाएं रहती हैं। इसलिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर उम्मीदवार अपने पक्ष में ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। साइबर माध्यम से मानसिक युद्ध खेला जाना संभव हो गया है। इसलिए किस पर विश्वास किया जाए और किस पर नहीं, यह मतदाताओं को खुद अपने विवेक से ही तय करना होगा। साइबर तकनीक का इस्तेमाल कर लोग उम्मीदवार के विषय में पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं, जिससे उन्हें योग्य उम्मीदवार के चयन में मदद मिल सकती है।

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