ब्लॉगः सत्ता की खातिर बेमेल गठबंधन!, तमाशा बनी सियासत
By राजकुमार सिंह | Published: July 8, 2023 01:17 PM2023-07-08T13:17:19+5:302023-07-08T13:17:51+5:30
राष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो दो ही दीर्घजीवी और सफल गठबंधन रहे हैं: भाजपानीत एनडीए और कांग्रेसनीत यूपीए। यह एनडीए का रजत जयंती वर्ष है तो मोदी सरकार को तीसरे कार्यकाल से वंचित करने के लिए अब विपक्ष नया गठबंधन बनाने में जुटा है।
महाराष्ट्र ने देश में गठबंधन राजनीति की विद्रूपताओं को बेनकाब कर दिया है। सत्ता की खातिर किस तरह सुविधानुसार लोकतंत्र और राष्ट्र हित के तर्क गढ़ लिए जाते हैं- महाराष्ट्र ज्वलंत उदाहरण है।
शिंदे प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां आईना दिखानेवाली हैं। फिर भी सत्ता का खेल वैसे ही जारी है। पहला गठबंधन समृद्ध आर्थिकीवाले महाराष्ट्र की सत्ता से विरोधियों को बेदखल कर खुद काबिज होने के लिए था, तो अब दूसरा उस सत्ता को बनाए रखने के लिए है। गठबंधन की जरूरत तभी पड़ती है, जब संसद या विधानसभा में किसी एक दल अथवा चुनाव पूर्व के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता, पर हमारे देश में गठबंधन राजनीति का आधार समान विचारधारा के बजाय येन-केन-प्रकारेण सत्ता का जुगाड़ बना लिया गया है। सत्ता की खातिर बेमेल गठबंधन हम पहली बार नहीं देख रहे हैं। झारखंड में एक निर्दलीय विधायक को ही मुख्यमंत्री बनवा देना विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीतिक दलों के चरित्र पर अनुत्तरित सवालिया निशान है। सत्ता के लिए गठबंधन का पाला बदलने में माहिर दल और नेता भी कम नहीं हैं।
विडंबना है कि गठबंधन बनाते समय जोर चेहरे पर रहता है, चाल और चरित्र पर नहीं। कई बार जनता को दिखाने के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम भी बनाया जाता है, पर वास्तव में साझा कार्यक्रम सत्ता की बंदरबांट ही होता है। याद करिए कि मनमोहन सिंह के दूसरे प्रधानमंत्रित्वकाल की शुरुआत में घटक दलों के बीच मलाईदार मंत्रालयों के बंटवारे का तमाशा कितने दिन चला था?
राष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो दो ही दीर्घजीवी और सफल गठबंधन रहे हैं: भाजपानीत एनडीए और कांग्रेसनीत यूपीए। यह एनडीए का रजत जयंती वर्ष है तो मोदी सरकार को तीसरे कार्यकाल से वंचित करने के लिए अब विपक्ष नया गठबंधन बनाने में जुटा है। कुनबा बढ़ाने की भाजपाई कवायद बताती है कि गठबंधन राजनीति का दौर लंबा चलनेवाला है। यह सही समय है कि हम जनता के बीच गठबंधन राजनीति की तेजी से गिरती साख की सुध लें और उसे त्रिशंकु सदन में सत्ता के जुगाड़ के बजाय स्थिर सरकार और सुशासन का आधार बनाएं।