ब्लॉग: कर्तव्य पालन से ही सार्थक होगी आजादी
By आलोक मेहता | Published: August 15, 2023 09:28 AM2023-08-15T09:28:48+5:302023-08-15T09:36:39+5:30
हम आजादी के 76 वर्ष पूरे होने और लोकतंत्र को बनाए रखने के साथ आर्थिक महाशक्ति का सपना साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
लाल किले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब तिरंगा झंडा फहराने के साथ भारत की नई शक्ति और उज्ज्वल भविष्य पर देश -दुनिया को संबोधित किया, तो उससे हर सामान्य भारतीय गौरवान्वित हुआ है। हम आजादी के 76 वर्ष पूरे होने और लोकतंत्र को बनाए रखने के साथ आर्थिक महाशक्ति का सपना साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
इस संदर्भ में मुझे देश के प्रतिष्ठित उद्योगपति और आर्थिक स्वप्नदर्शी जेआरडी टाटा द्वारा 1992 में भारत रत्न का सम्मान मिलने के बाद कही गई एक बात ध्यान में आती है। टाटा ने कहा था कि ‘मैं नहीं चाहता कि भारत आर्थिक महाशक्ति बने। मैं चाहता हूं कि भारत एक सुखी देश बने।’
तब प्रधानमंत्री नरसिंहा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह आर्थिक नीतियों में बदलाव ला रहे थे। 30 वर्षों में बहुत कुछ बदला है। मोदी ने भी नौ वर्षों में आर्थिक क्रांति के कई बड़े निर्णय लिए हैं लेकिन उन्होंने संपन्नता से अधिक सामान्य नागरिक को सुखी देखने को सर्वाधिक प्राथमिकता दी है।
अमेरिका और चीन जैसे देशों के साथ प्रतियोगिता करते हुए इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि भौतिक दृष्टि से कोई भी सफलता या उपलब्धि तब तक सार्थक नहीं होगी जब तक वह देश और उसकी जनता की आवश्यकताओं या हितों को पूरा न करे तथा उचित और ईमानदार ढंग से प्राप्त न की गई हो।
बाजार में उछाल या भव्य शॉपिंग माल की ऊंचाइयों से सुपर पावर और सुखी भारत नहीं कहलाया जा सकता है। असमानता की खाई पाटना असली लक्ष्य रखना होगा। आजादी का उत्सव मनाने के साथ सत्ता व्यवस्था, संसद , न्याय पालिका और सेना से बड़ी अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है लेकिन अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों का अहसास क्या जरूरी नहीं है?
आजकल कई नेता आजादी पर खतरे की बात कर रहे हैं। इसलिए 13 अगस्त 1954 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा संपादकों के एक कार्यक्रम में कही गई महत्वपूर्ण बात का उल्लेख उचित होगा। नेहरू ने कहा - ‘मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि अमूर्त स्वतंत्रता जैसी कोई वस्तु नहीं होती। स्वतंत्रता दायित्व से सम्बद्ध है, चाहे वह राष्ट्र की स्वतंत्रता हो या व्यक्ति की स्वतंत्रता या समूह की स्वतंत्रता या प्रेस की स्वतंत्रता। इसलिए जब कभी हम स्वतंत्रता के प्रश्न पर विचार करें, तब हमें कर्तव्य के बारे में भी अनिवार्य रूप से विचार करना चाहिए, जो स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। यदि इससे उत्तरदायित्व और प्रतिबद्धता जुड़ी हुई नहीं है तो स्वतंत्रता भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।’
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उपयोग में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन भारत जैसे विशाल देश में अब भी आबादी का एक हिस्सा अंधविश्वास , कम शिक्षित और बेहद गरीबी से प्रभावित है। उसे भ्रामक प्रचार से उत्तेजित कर हिंसक उपद्रव में शामिल करने के लिए निहित स्वार्थी संगठनों और विदेशी एजेंसियों के षड्यंत्र होते रहते हैं।
मणिपुर में भयावह हिंसा और समस्या को और भड़काने तथा मिजोरम जैसे राज्य को चपेट में लाने के प्रयास सोशल मीडिया के बल पर हुए हैं। इसलिए चाहे राजनीति हो अथवा मीडिया, आजादी और अभिव्यक्ति के अधिकारों पर एक हद तक सीमा रेखा तय करना आवश्यक है।
सरकार और संसद ने इस उद्देश्य से नए नियम कानून का प्रावधान किया है। न्यायालय को भी इस तरह की सीमाओं को रेखांकित करना चाहिए। उम्मीद है कि इस बार 15 अगस्त पर लाल किले के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपलब्धियों और भावी प्रगति की चर्चा के साथ आजादी और अभिव्यक्ति के अधिकारों पर गौरव के साथ देशवासियों को अपने कर्तव्यों के पालन, अनुशासन के लिए भी संकल्प लेने का आग्रह करेंगे।