साथ-साथ चलते हैं आजादी और अनुशासन
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 15, 2023 10:11 IST2023-08-15T10:10:55+5:302023-08-15T10:11:28+5:30
अंग्रेजों के दमन चक्र के बावजूद अगर स्वतंत्रता संग्राम की लौ धीमी नहीं पड़ी तो उसका सबसे बड़ा कारण अनुशासन था। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें किसी हथियार का उपयोग नहीं किया गया और देशवासियों ने एकजुटता एवं अनुशासन की अभूतपूर्व मिसाल विश्व के सामने पेश की।

साथ-साथ चलते हैं आजादी और अनुशासन
देश आज स्वतंत्रता प्राप्ति के 76 वर्ष पूर्ण कर 77 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। आजादी के बाद अपने देश के सफर पर हम जब नजर डालते हैं तो गर्व की अनुभूति होती है। हमारी झोली में अनगिनत उपलब्धियां हैं और एक गरीब समझा जानेवाला राष्ट्र आज विकसित देशों की कतार में खड़ा होने के लिए तैयार हो गया है। आजादी हमें बहुत बड़ी कुर्बानी देने के बाद मिली। अंग्रेजों के दमन चक्र के बावजूद अगर स्वतंत्रता संग्राम की लौ धीमी नहीं पड़ी तो उसका सबसे बड़ा कारण अनुशासन था। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें किसी हथियार का उपयोग नहीं किया गया और देशवासियों ने एकजुटता एवं अनुशासन की अभूतपूर्व मिसाल विश्व के सामने पेश की। स्वतंत्रता के बाद हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि हम अपने देश को अपने पैरों पर कैसे खड़ा करें। इसके लिए साधन और समर्पण की बेशक जरूरत थी लेकिन अनुशासन की भी आवश्यकता थी।
अनुशासन का व्यक्तिगत जीवन में जितना महत्व है, उतना ही महत्व देश एवं समाज के हर क्षेत्र में भी है। स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सबसे बड़ी जरूरत होती है अनुशासन की। अनुशासन के बिना अराजकता फैल जाती है। भारत के साथ या उसके कुछ समय बाद कई देश आजाद हुए लेकिन उसमें से कई राष्ट्रों की विफलता आज हमारे सामने है। ये राष्ट्र गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, आतंकवाद के साथ-साथ भयावह गृहयुद्ध से जूझ रहे हैं क्योंकि उनके राजनीतिक, सैनिक तथा अन्य क्षेत्रों के नेतृत्व में अनुशासन नहीं था। जब नेतृत्व अनुशासनहीन हो जाता है तो समाज भी दिशाहीन तथा अनियंत्रित हो जाता है। जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ता है। भारत के साथ एक सकारात्मक पहलू यह रहा कि देश हर क्षेत्र में अनुशासित रहा। स्वतंत्रता संग्राम में अनुशासन का पाठ पढ़ने वाले योद्धाओं ने जब देश की कमान संभाली, तब उन्होंने शासन के साथ अनुशासन को सबसे ज्यादा महत्व दिया और फलस्वरूप भारत हर क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करता गया। आजादी के बाद के इतने लंबे सफर में उपलब्धियों के कीर्तिमान के बीच पिछले कुछ अर्से से यह देखकर पीड़ा होने लगी है कि अनुशासन के महत्व को हम भूलते जा रहे हैं। नई पीढ़ी यह समझ नहीं पा रही है कि आजादी, उपलब्धियां और अनुशासन एक साथ चलते हैं।
निजी जीवन को भी यदि व्यवस्थित रखना है, उसे सफल बनाना है तथा जीवन में कुछ हासिल करना है तो अनुशासन बहुत जरूरी होता है। आजादी का दिन सिर्फ जश्न मनाने, वाहनों को तेज रफ्तार से चलाते हुए शोर मचाने, उत्पात करने या व्यसन करने के लिए नहीं है। यह दिन मंथन करने के लिए है कि लाखों-करोड़ों लोगों की कुर्बानियों के बाद हासिल स्वतंत्रता को सुरक्षित कैसे रखा जाए, हम एक अनुशासित देश का हिस्सा कैसे बनें और अनुशासन के बल पर व्यक्तिगत सफलता हासिल करने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में कैसे योगदान दें। अनुशासन जीवन के हर क्षेत्र में जरूरी है। दुर्भाग्य से नई पीढ़ी के एक वर्ग के साथ-साथ समाज के हर क्षेत्र में अनुशासन को तोड़ने वाले तत्वों की संख्या बढ़ने लगी है। यह सब हो रहा है आचरण और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर।
मणिपुर और हरियाणा की ताजा शर्मनाक घटनाओं के लिए मानसिक विकृति तथा वैचारिक उच्छृंखलता सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। मणिपुर और हरियाणा में हिंसा को टाला जा सकता था बशर्ते समाज का एक वर्ग खुद को संयमित एवं अनुशासित रखता। ज्यादा दिन नहीं हुए जब भारत ने कोविड-19 जैसी महामारी का सामना किया, कोविड को परास्त करने में सफलता इसलिए मिली क्योंकि देशवासियों ने अभूतपूर्व एकता, अनुशासन एवं संयम का परिचय दिया। बेहद अनुशासित रूप से कोविड नियमों का पालन किया, अभावों का सामना किया और सरकार को पूरा सहयोग दिया। अगर हम व्यक्तिगत आजादी के नाम पर मनमानी करते तो शायद आज भी उस महामारी से मुक्त नहीं हो पाते। महिलाओं के साथ यौन अपराध हो या बच्चों का खौफनाक शोषण, किसी समुदाय विशेष व्यक्ति के साथ घृणित व्यवहार हो या आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता, शिक्षा संस्थानों में रैगिंग हो या अन्य निंदनीय कृत्य, इन सब के मूल में अनुशासनहीनता सबसे बड़ा तत्व रहती है। जब हम आजादी की 80वीं सालगिरह मनाएंगे, तब हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके होंगे। कृषि हो या तकनीक या अंतरिक्ष विज्ञान या सैन्य क्षमता, भारत महाशक्ति बन चुका है। प्रगति की इस यशोगाथा को अनुशासन के बल पर ही साकार किया जा सका है। स्वतंत्रता दिवस को उल्लास से मनाएं लेकिन साथ ही यह संदेश भी दें कि देश की उन्नति हमारे लिए सर्वोपरि है और हम एक गौरवशाली देश की विरासत को समृद्ध करनेवाले अनुशासित नागरिक हैं।