ब्लॉगः मेडिकल कॉलेजों की फीस 2 लाख प्रति महीने...इसका दुष्परिणाम यह होगा कि...
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 11, 2022 04:20 PM2022-11-11T16:20:11+5:302022-11-11T16:20:48+5:30
किसी मरीज की एक बीमारी के कारण का पता करने के लिए कई डॉक्टर दर्जनों ‘टेस्ट’करवा देते हैं। हमारे डॉक्टर अपना धंधा शुरु करने के पहले यूनानी दार्शनिक के नाम से चली ‘हिप्पोक्रेटिक शपथ’ लेते हैं, जिसमें आदर्श और नैतिक आचरण की ढेरों प्रतिज्ञाएं हैं।
कर्नाटक और गुजरात के मेडिकल कॉलेजों ने गजब कर दिया है। उन्होंने अपने छात्रों की फीस बढ़ाकर लगभग दो लाख रु. प्रति मास कर दी है। यानी हर छात्र और छात्रा को डॉक्टर बनने के लिए लगभग 25 लाख रु. हर साल जमा करवाने पड़ेंगे। यदि डॉक्टरी की पढ़ाई पांच साल की है तो उन्हें सवा करोड़ रु. भरने पड़ेंगे। देश में कितने लोग ऐसे हैं, जो सवा करोड़ रु. खर्च कर सकते हैं? लेकिन चाहे जो हो, उन्हें बच्चों को डॉक्टर तो बनाना ही है। तो वे क्या करेंगे? बैंकों, निजी संस्थाओं, सेठों और अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेंगे, उसका ब्याज भी भरेंगे और बच्चों को किसी तरह डॉक्टर की डिग्री दिला देंगे। फिर वे अपना कर्ज कैसे उतारेंगे? या तो वे गैरकानूनी हथकंडों का सहारा लेंगे या उनका सबसे सादा तरीका यह होगा कि वे अपने डॉक्टर बने बच्चों से कहेंगे कि तुम मरीजों से खूब पैसा वसूलो और कर्ज चुकाओ। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए आजकल कई निजी अस्पतालों में लूट-पाट मची हुई है। उनके कमरे पांच सितारा होटलों के कमरों से भी ज्यादा सजे-धजे होते हैं।
किसी मरीज की एक बीमारी के कारण का पता करने के लिए कई डॉक्टर दर्जनों ‘टेस्ट’करवा देते हैं। हमारे डॉक्टर अपना धंधा शुरु करने के पहले यूनानी दार्शनिक के नाम से चली ‘हिप्पोक्रेटिक शपथ’ लेते हैं, जिसमें आदर्श और नैतिक आचरण की ढेरों प्रतिज्ञाएं हैं। लेकिन क्या वे उनका पालन सच्चे मन से कभी करते हैं? उनका उल्लंघन ही ज्यादातर डॉक्टर करते हैं। उन डॉक्टरों की पढ़ाई की यह लाखों रु. फीस इस उल्लंघन का सबसे पहला कारण है। हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर घोर आपत्ति की है। उसने एक याचिका पर अपना फैसला देते हुए कहा है कि जिन कॉलेजों ने अपनी फीस में कई गुना वृद्धि कर दी है, यह शुद्ध लालच का प्रमाण है। यह कॉलेज के प्रवेश और फीस-निर्णायक नियमों का सरासर उल्लंघन है। इस तरह की फीस के दम पर बने डॉक्टरों से सेवा की उम्मीद निरर्थक है। इसका दुष्परिणाम यह भी होगा कि गरीब, ग्रामीण और मेहनतकश तबकों के बच्चे डॉक्टरी शिक्षा से वंचित रह जाएंगे।